मुझे न करना या द, तुम्हारा आंगन गीला हो जाएगा! रोज रात को नींद चुरा ले जाएगी पपीहों की टोल ी, रोज रात को पीर जगाने आएगी कोयल की बोल ी, रोज दुपहरी में तुमसे कुछ कथा कहेंगी सूनी गलिया ँ रोज साँझ को आँख भिगो जाएँगी कुछ मुरझाई कलिया ँ, यह सब होग ा, पर न दु:खी तुम होना मेरी मुक्त-केशिनी! तुम सिसकोगी वहा ँ, यहाँ यह पग बोझिला हो जाएगा! मुझे न करना या द, तुम्हारा आँगन गीला हो जाएगा!
कभीलगेगा तुम्हें कि कैसे दूर कहीं गाता हो को ई, कभी तुम्हें मालूम पड़ेगा अंचल छू जाता हो को ई, कभी सुनोगी तुम कि कहीं से किसी दिशा ने तुम्हें पुकार ा, कभी दिखेगा तुम्हें कि जैसे बात कर रहा हो हर तार ा पर न तड़पना पर न बिलखन ा, पर न आँख भर-भर लाना तु म तुम्हें तड़पता देख विरह-शुक और हठीला हो जाएगा! मुझे न करना या द, तुम्हारा आँगन गीला हो जाएगा!
याद सुखद उसकी बस जग में होकर भी जो दूर पास ह ो, किंतु व्यर्थ उसकी सुधि करना जिसके मिलने की न आस ह ो, मैं अब इतनी दूर कि जितनी सागर से मरुस्थल की दूर ी, और अभी क्या ठीक कहाँ ले जाए जीवन की मजबूर ी, गीत-हंस के हाथ इसलिए मुझको मत भेजना संदेश ा, मुझको मिटता दे ख, तुम्हारा स्वर दर्दीला हो जाएगा! मुझे न करना या द, तुम्हारा आँगन गीला हो जाएगा!
मैंने कब चाहा मुझको याद कर ो, जग को तुम भूल ो? मेरी यही रही ख्वाहिश बस मैं जिस जगह झरू ँ, तुम फूल ो, शूल मुझे दो जिससे वे चुभ सकें न किसी अन्य के पग मे ं, और फूल जाओ-ले जाओ बिखराओ जन-जन के मन मे ं यही प्रेम की रीति कि सब कुछ देत ा, किंतु कुछ न लेता ह ै, यदि तुमने कुछ दिया प्रेम का बंधन ढीला हो जाएगा ! मुझे न करना या द, तुम्हारा आँगन गीला हो जाएगा !!