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सैफोलॉजिस्ट : ब्रिलियंट जॉब

चुनाव रुझानों के भविष्यवक्ता

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हमें फॉलो करें सैफोलॉजिस्ट : ब्रिलियंट जॉब
- अशोक सिंह
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गैर परंपरागत कॅरियर ऑप्शन के तौर पर सैफोलॉजिस्ट या चुनावी विश्लेषकों का महत्व दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। केंद्र, राज्य अथवा म्यूनिसिपल के चुनावों तक में अखबारों से लेकर टीवी चैनलों तक में चुनावी नतीजों के बारे में अखबारों का दौर शुरू हो जाता है। जाहिर है, पाठकों और दर्शकों का बहुत बड़ा वर्ग इस प्रकार के विश्लेषणों में दिलचस्पी लेता है।

इनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के अलावा स्थानीय मतदाताओं को भी शुमार किया जा सकता है। जनसंचार माध्यमों को इस दौरान बड़ी संख्या में पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों का साथ मिल जाता है और इसी वजह से उन्हें विज्ञापन और स्पॉन्सरशिप से पैसा बटोरने का मौका मिलता है। कमर्शियल कंपनियाँ होने के कारण ये सभी जनसंचार माध्यम भरसक प्रयास करते हैं कि उनके सर्वेक्षणों और विश्लेषकों के नतीजे अंतिम चुनावी परिणामों के ज्यादा से ज्यादा करीब हों।

इसका लाभ बेहतर साख और अगले चुनावों में ज्यादा कमाई के रूप में उन्हें साल-दर-साल मिलता रहता है। देश में नामचीन सैफोलॉजिस्ट की संख्या अभी उँगलियों पर गिनाई जा सकती है। आम लोगों की नजरों में यह प्रोफेशन अभी ज्यादा आया नहीं है। इसके पीछे एक वजह यह भी हो सकती है कि इस प्रकार का कोई विशिष्ट कोर्स देश में फिलहाल उपलब्ध नहीं है।

इसके अलावा अभिभावकों और अध्यापकों के बीच भी इस प्रोफेशन को लेकर कोई स्पष्ट समझ की स्थिति देखने में नहीं मिलती है लेकिन आगामी चंद वर्षों में न सिर्फ सैफोलॉजिस्ट की माँग में तेजी आने की पूरी-पूरी संभावनाएँ हैं बल्कि ट्रेनिंग के अवसर भी उपलब्ध हो सकेंगे।

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ऐसे युवा जिनकी अभिरुचि देश-विदेश या स्थानीय राजनीति में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर है और समाज के जातिगत ताने-बाने के अलावा धर्म-संप्रदाय एवं क्षेत्रवार तरीके से देश की राजनीति को समझने की क्षमता है उनके लिए यह प्रोफेशन सफलता की बुलंदियों को छूने का मौका दे सकता है। देश में दो-चार महीने के अंतराल पर कोई न कोई चुनाव होते ही रहते हैं इनमें केंद्र सरकार के चयन से लेकर पंचायती चुनावों तक की बात की जा सकती है।

यह सही है कि सैफोलॉजिस्ट का काम इतना सरल नहीं होता है और जो लोग सही विश्लेषण के बिना आकलन करने की कोशिश करते हैं उनके लिए कॅरियर सँवारना आसान नहीं रह जाता है। सैफोलॉजिस्ट बनने के लिए सांख्यिकी, राजनीति विज्ञान और कंप्यूटर के विभिन्न सॉफ्टवेयरों का जानकार होना सबसे आवश्यक शर्त है। महज डिग्रियाँ हासिल करने के बाद इस क्षेत्र में उतरने वालों को अकसर मुँह की खानी पड़ती है।

उन्हें पहले किसी ऐसे सैफोलॉजिस्ट के साथ काम करना चाहिए जिसकी साख उनके चुनावी सर्वेक्षणों के कारण हो। ऐसे कार्यानुभवों से सैद्धांतिक पहलुओं के अलावा व्यावहारिक पक्ष को भी समय रहते मजबूत बनाया जा सकता है और चुनावों को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों के आपसी संबंधों को जोड़कर देखने की क्षमता विकसित की जा सकती है।

सैफोलॉजिस्ट शब्द की परिभाषा पर जाएँ तो यह मूलतः राजनीतिक चुनावों और मतदाताओं के व्यवहार के बीच का आपसी संबंध पर आधारित विज्ञान है। जैसा कि ऊपर भी जिक्र किया गया है कि इसके तमाम तरह के कारकों का आपसी समन्वयन शामिल होता है जिनका सही परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। जनमानस की सोच और उनकी नब्ज का ज्ञान होना इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए निहायत जरूरी है।

अगर देखा जाए तो मार्केट रिसर्च भी इसी प्रोफेशन से जुड़ा हुआ क्षेत्र है। इसमें भी समाज संस्कृति, धर्म-संप्रदाय, पसंद-नापसंद, आर्थिक स्तर, रहन-सहन स्तर इत्यादि से संबंधित डेटा सर्वेक्षण के जरिए जुटाया जाता है और फिर उपभोक्ता उत्पादकों के लिए मार्केटिंग स्ट्रेटजी बनाने के लिए उपलब्ध कराया जाता है। मार्केट रिसर्च, मीडिया रिसर्च आदि का दायरा सैफोलॉजिस्ट के कार्यकलापों की तुलना में कहीं अधिक व्यापक होता है।

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ऐसे युवा जो गाँव-शहर घूमना, लोगों से मिलना-जुलना, विभिन्न समुदायों-संस्कृतियों से उपजी सोच को समझना, स्थानीय आवश्यकताओं के मुताबिक मतदाताओं के रुझान को परखने में दिलचस्पी रखते हैं उनके लिए सैफोलॉजिस्ट का प्रोफेशन एक अच्छा कॅरिअर विकल्प साबित हो सकता है। इसके लिए मास-मीडिया में भी नाम कमाने का इनके लिए बेहतरीन मौका मिल सकता है। अनुभव और समय के साथ पैसा इस पेशे में स्वयं आता है।

भारत में सैफोलॉजिस्ट की शुरुआत करने का श्रेय प्रणव रॉय को जाता है। पेशे में अर्थशास्त्री श्री रॉय ने राजनीति विज्ञान की इस विशिष्ट धारा का सर्वेक्षणों के आंकड़ों के साथ समन्वय कर खासतौर से टेलीविजन पर सैफोलॉजी के एक्सपर्ट्स को एक नई पहचान 80 के दशक में दी।

देश के नामी सैफोलॉजिस्ट में जी वी एल नरसिम्हा राव, योगेंद्र यादव आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। टीवी चैनलों के विस्तार और प्रिंट मीडिया में ऐसे एक्सपर्ट्स की बढ़ती माँग को देखते हुए सैफोलॉजिस्ट पेशे से जुड़े लोगों का उज्ज्वल भविष्य स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

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