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ड्रीम लाइक ए डेवि‍ल

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उज्जैन के कर्मवीर ने संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा 2009 में अभा स्तर पर 28 वाँ व हिन्दी माध्यम से मध्यप्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त कर प्रदेश का गौरव बढ़ाया है। कर्मवीर बचपन से ही मेधावी छात्र रहे है। अभा स्तर पर विभिन्न निबंध प्रतियोगिताएँ जीतने के साथ ही महामहिम राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से भी वे पुरस्कार प्राप्त कर चुके है। कर्मवीर का कहना है कि‍ राक्षसों जैसे बड़े सपने देखों और उन्‍हें पूरा करने के लि‍ए जी-जान लगा दो। कर्मवीर ने यह सफलता कैसे प्राप्त की और कितनी लगन और धैर्य की जरुरत होती है जानि‍ए उनसे ही।

प्र. आप आपकी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे? आपकी सफलता का रहस्य या मूलमंत्र क्या है?

- परिवार और ईश्वर को धन्यवाद देना चाहूँगा। इसके अलावा कठिन परिश्रम , गुरुजन एवं मित्रों की शुभकामनाओं के बल पर यह सफलता प्राप्त की है। सकारात्मक सोच और लक्ष्यकेन्द्रित सही दिशा में परिश्रम, ईश्वर में अटूट विश्वास ही सफलता का मूलमंत्र है।

प्र. क्या आप अपनी सफलता के प्रति आश्वस्त थे ?

- मेरी लगातार मेहनत, मुख्य परीक्षा के पेपर्स अच्छे जाने व उत्साहवर्धक साक्षात्कार होने के कारण मैं सफलता को लेकर आश्वस्त था परंतु 28 वी रैंक ने मुझे अतिरिक्त खुशी दी।

प्र. आपको कब सिविल सेवाओं की गरिमा व महत्व का अनुभव हुआ?

- मेरे पिताजी डॉ देवकरण शर्मा प्रोफेसर रहे है व बड़े भाई धर्मपाल शर्मा (सहायक आयुक्त , वाणिज्यिक कर विभाग) म.प्र शासन में सिविल सेवा में है। इन्हीं के विचारों एवं कार्यों ने मुझे भी इस सेवा की गरिमा व महत्व का अनुभव कराया।

प्र. क्या सिविल सर्विसेस ही आपका एक मात्र लक्ष्य था अथवा साथ साथ अन्य करियर विकल्पों की तैयारी कर रहे थे?

- नहीं, मेरे ग्रेज्युएशन के समय (2002) से एक मात्र लक्ष्य आईएएस बनना ही था। मैंने अपने लिए दूसरे विकल्प जान बूझकर खड़े नहीं किये ताकि भटकाव न हो। मेरे दिमाग में रामचरित मानस में सप्तऋषि परीक्षा प्रसंग में पार्वती जी का वह कथन- 'वरऊ शंभु न तो रहँऊ कुवारी' अर्थात शिव से विवाह करुँगी अन्यथा कुंवारी रहूँगी को मैंने आईएएस के साथ जोड़कर देखा और एक मात्र लक्ष्य आईएएस रखा और वही मैंने प्राप्त किया।

प्र. आपके ऐच्छिक विषय क्या थे? उनके चयन का आधार क्या था?

- मेरे विषय थे - प्रारंभिक परीक्षा में इतिहास व मुख्य परीक्षा में इतिहास तथा दर्शनशास्त्र । बचपन से निबंध लेखन मेरी रुचि रही है, इसमें मुझे राष्ट्रपति जी द्वारा पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। इस कारण मेरा इतिहास, संस्कृति, दर्शन आदि के प्रति झुकाव हुआ। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी इतिहास एवं दर्शनशास्त्र की रही थी। बड़े भैया इतिहास विषय में गोल्ड मेडलिस्ट है और पिताजी वाणिज्य के प्रोफेसर होते हुए धर्म एवं दर्शन के प्रति लगाव होने से मुझे भी इन्हीं विषयों की और अभिरुचि हुई इसके साथ साथ विषयवस्तु की उपलब्धता एवं उच्चकोटि का मार्गदर्शन होने से इन विषयों को मैंने आईएएस परीक्षा के लिए चुना।

-प्रारंभिक परीक्षा, मुख्यपरीक्षा तथा साक्षात्कार की तैयारी के लिए आपकी क्या योजना थी ?

तीनों स्तर की परीक्षा के लिए मेरी रणनीति इस प्रकार थीः-

प्रारंभिक परीक्षा
बेसिक बुक्स का बार-बार अध्ययन किया तथा अपने स्वयं के द्वारा प्वाइंट वाइस नोट्स बनाए। अध्ययन को विस्तिृत किया। रिवीजन पर फोकस करते हुए कई टेस्ट दिए।

मुख्य परीक्षा
सर्वप्रथम अध्ययन सामग्री को परीक्षा की उपयोगिता के आधार पर विभाजित किया और प्रत्येक टॉपिक्स के बीच अंतरसंबंध को समझकर तुलनात्मक विवेचन किया।

इसके आधार पर घर पर उत्तर लेखन की प्रेक्टिस की और इसके बाद टेस्ट दिए तथा अभिव्यक्ति पक्ष को अधिकाधिक ठोस, संश्लिष्ट, प्रवाहपूर्ण एवं प्रश्न-केंद्रित बनाने पर बल दिया।

उत्तर-लेखन में मौलिकता लाने के लिए अपनी एक विशिष्ट शैली विकसित करने का प्रयास किया।

सामान्य अध्ययन में सांख्यिकी के प्रश्नों को हल करने का प्रतिदिन अभ्यास किया, फिर अपनी गलतियों को सुधार कर पुनः टेस्ट दिए।

इस पूरी प्रक्रिया में विश्लेशषणात्मक दृष्टि, समय प्रबंधन एवं उत्तर को सरल, सुबोध,सटीक एवं प्रभावपूर्ण प्रस्तुतिकरण पर विशेष ध्यान दिया।

साक्षात्कार
इसके लिए मैंने अपने बॉयोटाटा के एक-एक प्वाइंट के संभावित प्रश्नों को बनाया। उसके प्रभावपूर्ण उत्तर तैयार किए और कोचिंग क्लास जाकर कृत्रिम साक्षात्कार (मॉक-इंटरव्यू) के रूप में प्रस्तुत किया। ऐसा करने से मुझे इंटरव्यू में अतिरिक्त दबाव महसूस ही नहीं हुआ।

-परीक्षा की तैयारी तथा परीक्षा में उत्तर लिखने के संबंध में आपने क्या नीति अपनाई?

इस परीक्षा में समय प्रबंधन का विशेष महत्व होता है। इस हेतु मैंने समय तत्व का सजगतापूर्वक ध्यान रखा।

तैयारी करते समय अपनी क्षमता और परीक्षा की माँग का ध्यान रखा।

अध्ययन के क्रम में बड़े टारगेट बनाए और उसे छोटे-छोटे खंडों में विभाजित कर उन्हें दक्षतापूर्ण ढंग से पूर्ण किया।

परीक्षा के पूर्व व परीक्षा के दौरान यह ध्यान रखा कि किन प्रश्नों को कितने समय में पूर्ण करना है और इस पद्धति का सख्ती से पालन किया।

आपका साक्षात्कार कब था तथा आपसे क्या-क्या प्रश्न पूछे गए?

मेरा साक्षात्कार ले. जनरल निर्भय शर्मा सर के बोर्ड में 12 अप्रैल 2010 की सुबह में पहले नम्बर पर ही था। इंटरव्यू 25 मिनट तक चला और बोर्ड का माहौल सहयोगात्मक एवं सकरात्मक था।

मुझसे लगभग 50 प्रश्न पूछे गए जिनमें मुख्य निम्न हैं :-

आपने बीएससी किया, उसके बाद इतिहास, दर्शनशास्त्र क्यों चुना ?

आपने 2002-2010 तक क्या किया?

मूल अधिकार कौन से हैं और उनका महत्व

डिजिटर डिवाइड क्या होता है?

ई-गवर्नेंस क्या होता है? यह डिजिटल डिवाइड को दूर करने में कैसे सहयोगी है?

आज के समाचार पत्र की मुख्य खबर

भारत-अमेरिका संबध

कोबाल्ट-60 क्या होता है एवं इसके लाभ/हानि

भारत-इण्डिया के बीच अंतर।

सत्यमेव जयते का क्या अर्थ है?

इन सभी प्रश्नों के उत्तर मैंने दिए "सत्य की हमेशा विजय होती है।'

तब उन्होंने प्रश्न किया कि आप कि -क्या आप ऐसा मानते हैं।

मेरा उत्तर था, मेरा निश्चित रूप से मानना है कि 'सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं।'

इस उत्तर को सुनकर सब स्तब्ध थे। मुझे लगता है कि यह मेरे पूरे इंटरव्यू की पंचलाइन थी।

- शिक्षा के किस स्तर से सिविल सर्विसेज की तैयारी आरंभ करनी चाहिए? इसकी तैयारी में कितना न्यूनतम समय लगता है?

जैसा मैंने कहा यह व्यक्तित्व की परीक्षा गै इस कारण अप्रत्यक्ष तैयारी बचपन से ही शुरू हो जाती है। फिर भी प्रत्यक्ष तैयारी ग्रेजुएशन के समय से शुरू कर देनी चाहिए। तैयारी में लगने वाला समय विद्यार्थी की क्षमता, विषय की पकड़ तथा सहयोगी परिस्थितियों के समामेलन पर निर्भर करती है। यदि सबकुछ सकारात्मक एवं सहयोगात्मक हो तो दो-तीन वर्ष पर्याप्त होते हैं।

- सिवल सर्विसेज जैसी परीक्षाओं में परीक्षा के माध्यम का क्या महत्व होता है? हिन्दी माध्यम से तैयारी करने में आपके क्या विचार हैं?

इस परीक्षा के लिए माध्यम कम महत्वपूर्ण है, ज्यादा महत्वपूर्ण स्मार्ट तैयारी, सिविल सेवक बनने के गुण एवं प्रशासनिक एटीट्यूड को विकसित करना है। हिन्दी माध्यम के विद्यार्थी ही हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों ने इस कमी को पहचाना है और उसे दूर करने की कोशिश की है। इसके प्रमाण विगत वर्षों में हिन्दी माध्यम से बने आईएएस एवं इस वर्ष मेरे सन्दर्भ में दिखाई देते है।

प्र. साधारणतः यह विचार है कि मानविकी विषयों की अपेक्षा विज्ञान के विषय लेने में सफलता ज्यादा मिलती है?

- नहीं मेरा ऐसा मानना नहीं है, बल्कि मैंने विज्ञान विषय को छोड़कर मानविकी विषयों का चयन किया। वस्तुतः विषयवस्तु की उपलब्धता, विषय की आत्मा एवं दशर्न की समझ, सही मार्गदर्शन एवं प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति ही सफलता में सहयोगी होते है।

प्र. अपने दैनिक दिनचर्या के कुछ कार्यों को क्रमबद्ध कर बताये जो आपकी सफलता में सहायक रहे।

मेरी दिनचर्या इस प्रकार रहती थी :

1 सुबह जल्दी उठना एवं नियमित रुप से व्यायाम , प्राणायाम एवं भ्रमण।

2 अध्ययन के मामले में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं

3 नियमित रुप से दोस्तों एवं गुरुजन से विचार विमर्श किया ताकि मेरी कमजोरी एवं सकारात्मक पक्ष सामने आए

4 ईश्वर एवं खुद पर विश्वास को प्रत्येक दिन दोहराया।

प्र. आपने निबन्ध के लिए क्या कोई विशेष तैयारी की? आपने किस विषय पर निबन्ध लिखा एवं उस विषय को ही चुनने का क्या कारण था?

निबंध लेखन मेरा रुचि का विषय रहा है, इसमें मुझे राष्ट्रीय स्तर के 4, राज्य स्तर के 5 सहित कुल 70 पुरस्कार प्राप्त हुए है। साथ ही निबंध पर मेरी पुस्तक निबन्ध सर्वस्व भी प्रकाशित हुई है। अतः मुझे ज्यादा परेशानी नहीं हुई। फिर भी मैंने निबंध प्रश्नपत्र की गंभीरता को देखते हुए कई विषयों पर निबंध तैयार किए इसमें मेरे पिताजी का सहयोग मुझे मिला। साथ ही इसके लिखने का अभ्यास भी मैंने लगाता किया। मैंने वैश्वीकरण बनाम राष्ट्रवाद विषय पर निबंध लिखा। विषय चयन का आधार विषय की प्रासंगिकता एवं उस पर मेरी समझ होना था।

प्र. क्या कोई सुझाव या संदेश आगामी अभ्यर्थियों को देना चाहेंगे?

- दैत्यों के समान विशाल सपनें बुने और उसे पूरा करने के लिए जौहरी के समान सूक्ष्मता एवं दक्षता प्राप्त करे।

धैर्य, दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास सफलता के तीन आधार स्तम्भ है, इन्हे साथ लेकर दुनिया की समस्त कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। मै इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हूँ।

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