Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ग़ालिब का ख़त-32

Advertiesment
हमें फॉलो करें ग़ालिब का ख़त-32
हाय-हाय वह नेक बख़्त न बची। वाक़ई यह कि तुम पर और उसकी सास पर क्या गुज़री होगी। लड़की तो जानती ही न होगी कि मुझ पर क्या गुज़री। लड़का शायद याद करेगा और पूछेगा कि अम्मा कहाँ हैं। सो उसका पूछना और तुमको रुलाएगा।

बहरहाल, चारा जुज़ सब्र नहीं है। ग़म करो, मातम रखो, रोओ-पीटो, आख़िर ख़ून-ए-जिगर खाकर चुप रहना पड़ेगा। हक़ तआ़ला अ़ब्दुल लतीफ़ को और तुमक और यतीमों की दादी और फूफियों को सलामत रखे और तुम्हारे दामन-ए-अ़तूफ़त-ओ-आगोश-ए-राफ़त में उनको पाले।...

जुमा, 27 अक्टूबर 1854 ई.

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi