Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

ग़ालिब का ख़त-43

हमें फॉलो करें ग़ालिब का ख़त-43
मियाँ,

WDWD
तुम्हारा ख़त रामपुर पहुँचा और रामपुर से दिल्ली आया। मैं 23 शाबान को रामपुर से चला और 30 शाबान को दिल्ली पहुँचा। उसी दिन चाँद हुआ। यक शंबा रमज़ान की पहली, आज दो शंबा 9 रमज़ान की है। सो नवां दिन मुझे यहाँ आए हुए है। मैंने हुसैन मिर्जा़ साहिब को रामपुर से लिखा था कि यूसुफ़ मिर्जा़ को मेरे अलवर तक न जाने देना। अब उनकी ज़बानी मालूम हुआ कि वह मेरा ख़त उनको तुम्हारी रवानगी के बाद पहुँचा।

जो मुझको अपने मामू के मुक़द्दमे में लिखते हो, क्या मुझको उनके हाल से ग़ाफिल और उनकी फिक्र से फा़रिग़ जानते हो? कुछ बिना डाल आया हूँ। अगर ख़ुदा चाहे तो कोई सूरत निकल आए। अब तुम कहो कि कब तक आओगे। सिर्फ़ तुम्हारे देखने को नहीं कहता। शायद तुम्हारे आने पर कुछ काम भी किया जाए। मुज़फ़्फ़र मिर्जा़ का और अमशीरा साहिबा का आना, तो कुछ जरूर नहीं, शायद आगे बढ़कर कुछ हाजत पड़े। बहरहाल, जो होगा वह समझ लिया जाएगा। तुम चले आओ। हमशीरा अज़ीज़ा को मेरी दुआ़ कह देना। मुज़फ़्फ़र मिर्जा़ को दुआ़ पहुँचे।

भाई तुम्हार ख़त रामपुर पहुँचा। इधर के चलने की फिक्र में जवाब न लिख सका। बख़्शी साहिबों का हाल यह है कि आग़ा सुलतान पंजाब को गए, जगराऊँ में मुंशी रज्जब अ़ली के मेहमान हैं। सफ़दर सुलतान और यूसुफ सुलतान वहाँ हैं। नवाब मेहदी अ़ली खा, ब-क़दर-ए-क़लील बल्कि अक़ल कुछ उनकी ख़बर लेते हैं। मीर जलालुद्दीन ख़ुशनवीस और वे दोनों भाई बाहम रहते हैं। मैं वहीं था कि सफ़दर सुल्तान दिल्ली को आए थे।

अब जो मैं यहाँ आया तो सुना कि वे मेरठ गए। ख़ुदा जाने, रामपुर जाएँ या किसी और तरफ़ का क़स्द करें। तबाही है, क़हर-ए-इलाही है। मुझको लड़कों ने बहुत तंग किया। वरना चंद रोज़ और रामपुर में रहता। ज़्यादा क्या लिखूँ।

2 अप्रैल 1860 रा‍क़िम,
ग़ालिब

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi