कुएं और बावड़ी में बहुत अंतर होता है। भारत में तालाब, जलाशय, कुएं और बावड़ी का बहुत प्रचलन रहा है। यही लोगों की पानी की पूर्ति करते थे। आधुनिक युग के चलते आजकल लोग इसकी जगह बोरवेल कराते हैं। अब बोरिंग और हैंडपंप आपको कई जगह देखने को मिल जाएंगे। बोरिंग के कारण भू जल स्तर बहुत नीचे तक चला गया है। आओ जानते हैं कुएं और बावड़ी में अंतर।
- कुएं अक्सर गोल और नीचे तक गहरे खुदे हुए होते हैं जिनमें नीचे पान के स्रोत तक जाने के लिए सीढ़ियां नहीं होती है। रस्सी में बाल्टी बांधकर पानी को नीचे से ऊपर लाया जाता है। कुएं में जो जल रहता है अधिकतर वह भूमि का जल रहता है।
- अधिकतर बावड़ियां चौकोर होती है और कुछ आयताकार होती है। इनमें बारिश का पानी भरा जाता है। पानी तक पहुंचने के लिए चारों दिशाओं में सीढ़ियां लगी होती है।
- कुएं के भीतर नीचे तक गोल गहराई होती है जबकि बावड़ी ज्यादा गहरी नहीं होती लेकिन उसमें नीचे तक कमरेनुमा जगहें होती है जिसमें पानी भरा रहता है। यानी बावड़ियां एक प्रकार से मंजिलें होती हैं।
- कुएं में नीचे एक निश्चत गहराई तक सिमेंट या पत्थरों की दीवार बनाई जाती है उसके बाद नीचे तल तक सभी कुछ कच्चा होता है। इसी कच्चे क्षेत्र से पानी के आव निकलती रहती है और तल में से भी भू जल निकलता रहता है।
- बावड़ी में चारों ओर की दीवारें और नीचे तक तक फर्श लगा होता है। इसे आप प्राचीन काल का गहरा स्विमिंग पूल मान सकते हैं, जिसमें पानी स्टोर रहता है।
- भारतीय राज्य राजस्थान में सबसे ज्यादा बावड़ियां हैं। राजस्थान के दौसा के आभानेरी में दुनिया की सबसे बड़ी बावड़ी है जिसका नाम चांद बावड़ी है। 13 मंजिला 3500 सीढिय़ों वाली 100 फीट गहरी इस बावड़ी को देखने के लिए देश विदेश से लोग आते हैं।
- कुआं या कूप भूमि के भीतर स्थित जल को निकालकर उसी में स्टोर करने के लिए खोदा जाता है जबकि बावड़ी में बारिश का जल स्टोर किया जाता है।