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बरेली में चतुष्कोणीय मुकाबले के आसार

हमें फॉलो करें बरेली में चतुष्कोणीय मुकाबले के आसार
बरेली , रविवार, 6 अप्रैल 2014 (11:09 IST)
बरेली। उत्तरप्रदेश के बरेली संसदीय क्षेत्र में आगामी 17 अप्रैल को होने वाले चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार और राज्य के पूर्व मंत्री प्रवीण सिंह ऐरन के बीच एक बार फिर से दिलचस्प मुकाबला हो रहा है।

भारत के प्रथम रक्षा उपमंत्री सतीश चंद्र और पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की पत्नी बेगम आबिदा अहमद के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रहे बरेली क्षेत्र के मतदाताओं ने लोकसभा के अब तक हुए 15 चुनावों और 1 उपचुनाव में 8 बार तत्कालीन जनसंघ और भाजपा, 6 बार कांग्रेस तथा भारतीय लोकदल, जनता पार्टी और जनता पार्टी (एस) उम्मीदवार को 1-1 बार जीत का सेहरा पहनाया है।

लंबे अर्से तक कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ रहे इस क्षेत्र में आगामी चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ने के लिए राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार आयशा इस्लाम और बहुजन समाज पार्टी के उमेश गौतम ने मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने के लिए दिन-रात एक कर रखा है। बरेली सीट से गंगवार 7वीं बार लोकसभा में प्रवेश करने के लिए मैदान में हैं।

अपने पतंग-मांझे, झुमके और सूरमे के साथ जरी-जरदोजी के काम के लिए दुनियाभर में मशहूर बरेली क्षेत्र में 16वीं लोकसभा के चुनाव के लिए 15 लाख 84 हजार से ज्यादा मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें से करीब सवा 7 लाख महिला मतदाता हैं।

बरेली संसदीय क्षेत्र के तहत बरेली शहर, बरेली कैंट, मीरगंज, नवाबगंज और भोजीपुरा क्षेत्र आते हैं। सन् 2012 में हुए राज्य विधानसभा के चुनाव में इनमें से शहर और कैंट क्षेत्रों में भाजपा, नवाबगंज में सपा, मीरगंज क्षेत्र में बसपा और भोजीपुरा क्षेत्र में इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) प्रत्याशी जीते थे।

इस मुस्लिम, कुर्मी, दलित, मौर्य, वैश्य, ब्राह्मण और कायस्थ मतदाता बाहुल्य क्षेत्र में लोकसभा के अब तक हुए 15 चुनाव और 1 उपचुनाव में वैश्य एवं कुर्मी उम्मीदवारों ने 6-6 बार, 3 बार मुस्लिम और 1 बार क्षत्रिय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है।

कुर्मी बिरादरी के प्रत्याशी के रूप में संतोष गंगवार 1989 से लगातार 6 बार तथा वैश्य उम्मीदवार के रूप में इस क्षेत्र से 3 बार सतीश चन्द्र तथा बीबी लाल, राममूर्ति एवं प्रवीण सिंह ऐरन ने 1-1 बार जीत का परचम फहराया।

बरेली सीट से मुस्लिम प्रत्याशी के रूप में 2 बार बेगम आबिदा अहमद और 1 बार मिसिर यार खां तथा क्षत्रिय उम्मीदवार के रूप में ब्रजराज सिंह आछू बाबू एक बार चुनाव जीते।

1951, 52 और 1957 में हुए पहली एवं दूसरी लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के सतीश चंद्र ने बरेली लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी लेकिन 1962 में वे जनसंघ के ब्रजराज सिंह आछू बाबू और 1967 में बीबीलाल से चुनाव हार गए।

सन् 1971 में सतीश बरेली से तीसरी बार लोकसभा सदस्य चुने गए लेकिन 1977 में वे भारतीय लोकदल, जनता पार्टी के राममूर्ति से चुनाव हार गए।

1980 में जनता पार्टी (सेक्यूलर) के मिसिर यार खां चुनाव जीते। उनके निधन के बाद 1981 में हुए उपचुनाव और 1985 में कांग्रेस की बेगम आबिदा अहमद बरेली सीट से निर्वाचित घोषित हुईं लेकिन 1989 में वे भाजपा के संतोष गंगवार से चुनाव हार गईं।

गंगवार इसके बाद 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में हुए चुनावों में लगातार 6 बार लोकसभा में बरेली का प्रतिनिधित्व किया। सन् 2009 में हुए चुनाव में गंगवार कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन से 9,338 मतों से पराजित हो गए थे।

सपा उम्मीदवार आयशा इस्लाम भोजीपुरा क्षेत्र के विधायक एवं प्रदेश के पूर्व मंत्री शहजिल इस्लाम की पत्नी हैं। आयशा के ससुर इस्लाम साबिर 1996, 1998 और 2004 में सपा, 1999 में कांग्रेस तथा 2009 में बसपा के टिकट पर बरेली लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं।

शहजिल इस्लाम 2002 में सपा और 2007 में बसपा, उनके पिता इस्लाम साबिर 1991 में कांग्रेस और दादा अशफाक अहमद 1969, 1974, 1977, 1980 में कांग्रेस और 1996 में सपा के टिकट पर बरेली कैंट से विधायक रहे।

बसपा उम्मीदवार उमेश गौतम बरेली स्थित इन्वर्टिस यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं और पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। भाजपा के दिग्गज उम्मीदवार संतोष गंगवार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पेट्रोलियम राज्यमंत्री रहे।

2 दशक के बाद 2009 में बरेली सीट पर कांग्रेस का परचम फहराने वाले ऐरन 1989 में जनता दल और 1993 में सपा के टिकट पर बरेली कैंट क्षेत्र से विधायक और 1995 में सत्ता में मायावती सरकार में चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री थे।

वैसे, बरेली सीट से कुल मिलाकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कॉमरेड मसर्रत वारसी उर्फ पप्पू भाई, आम आदमी पार्टी के सुनील कुमार और पीस पार्टी के असलम एडवोकेट समेत कुल 14 प्रत्याशी मैदान में हैं।

बरेली के चुनावी घमासान की तपिश फिजां में महसूस होने लगी है और राजनीतिक विश्लेषकों की राय में अगर मुस्लिम मतों का विभाजन हुआ तो निश्चित तौर पर भाजपा को फायदा होगा। (वार्ता)

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