लद्दाख (जम्मू कश्मीर)। राज्य के छह संसदीय चुनाव क्षेत्रों में सिर्फ लद्दाख का निर्वाचन क्षेत्र ही ऐसा है जहां इस बार मुकाबला दो राजनीतिक दलों के बीच नहीं बल्कि बौद्ध और मुस्लिम बहुल इलाकों में है।भाजपा ने लद्दाख लोकसभा सीट से तुप्सटेन चिवांग को अपना उम्मीदवार घोषित किया है वहीं कांग्रेस ने अपने जिला अध्यक्ष शेयरिंग सैम्फल को खड़ा किया है। यह दोनों मूलतः लेह के हैं और बौध धर्म अनुयायी हैं। उधर दो निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में हैं। इनमें एक सईम मुहम्मद काजमी साबरी हैं, वहीं दूसरे आजाद उम्मीदवार कांग्रेस के विद्रोही गुलाम रजा बतौर चौथे प्रत्याशी चुनावी दंगल में हैं। यह दोनों प्रत्याशी कारगिल से हैं।लद्दाख संसदीय क्षेत्र ने नए-नए लोगों को मैदान मारने का अवसर प्रदान किया है, लेकिन इस बात को भुलाया नहीं जा सकता कि मतदाताओं में राजनीतिक जागरूकता होने से उन्होंने व्यक्ति को देखा है न कि पार्टी को। यही कारण है कि चुनाव मैदान में उतरने वाले दलों ने भी टिकट देने के मामले में व्यक्तित्व का चुनाव करके हमेशा ही मैदान मारा है। इसमें सिर्फ पांच बार छोड़कर कांग्रेस ही विजयी होती रही है। यह भी सच है कि ’77 में जनता पार्टी की लहर भी इस क्षेत्र के लोगों को रिझा नहीं पाई।लद्दाख की चार विधानसभा सीटें नोबरा, लेह, कारगिल और जंसकार हैं। निर्दलीय सईद मुहम्मद काजमी साबरी को कारगिल के एक प्रमुख इस्लामिया स्कूल का समर्थन प्राप्त है वहीं कांग्रेस के बागी उम्मीदवार गुलाम रजा इमाम हुमैनी को मैमोरियल ट्रस्ट का भारी समर्थन है।लेह जिले में कुल मतदाता 79,042 हैं, जबकि कारगिल जिले में 80,589 मतदाता हैं। अगर समूची संसदीय सीट पर नजर डालें तो 1 लाख 59 हजार मतदाता मैदान में उतरे चार प्रत्याशियों का भाग्य तय करेंगे। वर्ष 2009 के चुनाव में निर्दलीय हसन खान ने कांग्रेस के पी नामग्याल को हराया था। बाद में हसन खान ने यूपीए को बिना शर्त अपना समर्थन दिया था।हालांकि यहां पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का सयुंक्त प्रत्याशी चुनाव मैदान में है जिसका नाम शेयरिंग सैम्फल है। लेकिन कहा जा रहा है कि सूबे के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के सलाहकार कांग्रेस के प्रत्याशी के खिलाफ, निर्दलीय सैयद मुहम्मद काजमी साबरी की मदद में लगे हैं। यह सलाहकार कमर अली आखून हैं जो चुनाव प्रचार में साबरी के हक में मतदाताओं को वोट डालने की गुहार लगा रहे हैं।इतना ही नहीं, कारगिल से विधायक फीरोज खान जो कि सूबे की सरकार में मंत्री हैं वह भी साबरी के समर्थन में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं बल्कि कांग्रेस के बागी उम्मीदवार रजा को जिताने के लिए लद्दाख स्वायत्त पवर्तीय विकास परिषद कारगिल के चेयरमैन एवं मुख्य कार्यकारी असगर अली करबलाई उन्हें मदद कर रहे हैं।चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लद्दाख सीट के लिए 7 मई को मतदान होना निश्चित है। इस सीट के लिए कुल 4 प्रत्याशी अपने भाग्य को आजमा रहे हैं। चुनाव में लेह और कारगिल जिले के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। कहने को तो इस संसदीय सीट पर 4 प्रत्याशी चुनावी दंगल में डटे हुए हैं, लेकिन मुकाबला कांग्रेस तथा लद्दाख यूनियन टेरीटरी फ्रंट अर्थात एलयूटीएफ द्वारा समर्थित उम्मीदवारों के बीच माना जा रहा है। हालांकि यह सीट पारंपारिक तौर पर कांग्रेस की ही रही है। पिछले दो चुनावों में नेकां ने इस सीट पर कब्जा जमाया था।जहां तक मौजूदा चुनावी परिदृश्य का सवाल है लद्दाख में हमेशा की तरह इस बार भी यह दो जिलों की अलग-अलग राजनीति और अलग अलग धर्मों पर टिकी हुई है। मुस्लिम उम्मीदवार कारगिल के मतदाताओं पर निर्भर हैं तो बाकी सीधे बौद्ध मतों पर निर्भर हैं।जम्मू-कश्मीर राज्य के सबसे बड़े क्षेत्र लद्दाख के कुल 1.59 लाख मतदाताओं में आधे से अधिक महिला मतदाता हैं, जो किस्मत आजमाने वाले चारों उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करने में अपनी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। अभी तक इस क्षेत्र से, 1977 में लद्दाख की महारानी श्रीमती पार्वती देवी कांग्रेस की टिकट पर विजयी हुई थीं।
क्या है इस सीट का इतिहास पढ़े अगले पेज पर...
राज्य के छह संसदीय क्षेत्रों में से लद्दाख ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां दमचोक में 12 मतदाताओं के लिए मतदान केंद्र स्थापित किया जाएगा और सबसे ऊंचाई पर स्थित होने वाला मतदान केंद्र पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर होगा जो हनफलो में होगा। जबकि लद्दाख ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां राज्य में सबसे कम मतदान केंद्र स्थापित किए जाएंगे। अधिकारियों के अनुसार लद्दाख में कुल 476 मतदान केंद्र होंगे। इनमें से सबसे कम नोब्रा में, उसके बाद जंसकार में मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं।वर्ष | निर्वाचित सांसद | दूसरे स्थान पर रहे |
1967 | खुशोक जी बकुला-कांग्रेस | निर्विरोध |
1971 | खुशोक जी बकुला-कांग्रेस | सोनम वांगचुक- (स्वतंत्र) |
1977 | पार्वती देवी-कांग्रेस | मोहम्मद-(स्वतंत्र) |
1980 | पी नामग्याल-स्वतंत्र | काचु मोहम्मद खान-(नेकां) |
1984 | पी नामग्याल-कांग्रेस | कमर अली-(नेशनल कांफ्रेंस) |
1989 | मुहम्मद हसन-स्वतंत्र | पी नामग्याल-(कांग्रेस) |
1991 | चुनाव नहीं हुए | |
1996 | पी नामग्याल-कांग्रेस | कमर अली अखून-(स्वतंत्र) |
1998 | सईद हसन खान-नेकां | पी नामग्याल- (कांग्रेस) |
1999 | हसन खान-नेकां | थुपस्टन छेवांग-कांग्रेस |
2004 | थुप्स्टन छेवांग-स्वतंत्र | हसन खान-नेकां |
2009 | हसन खान-निर्दलीय | पी नामग्याल-कांग्रेस |