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Complete introduction of Lord Ganesha : भगवान गणेश जी का संपूर्ण परिचय

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अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 21 अगस्त 2020 (10:49 IST)
ॐ गं गणपतये नमः
 
भगवान गणेशजी को भारतीय धर्म और संस्कृति में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। सभी मांगलिक कार्य में पहले गणेश जी की स्थापना और स्तुति की जाती है। आओ जानते हैं भगवान गणेशजी के संबंध में संपूर्ण परिचय।
 
गणेश जन्म : माता पार्वती द्वारा पुण्यक व्रत के फलस्वरूप गणेशजी का जन्म हुआ था। बाद के पुराणों में उनके जन्म के संबंध में कहा गया है माता ने अपनी सखी जया और विजया के कहने पर एक गण की उत्पति अपने मैल से की थी। जन्म समय माथुर ब्राह्मणों के इतिहास अनुसार अनुमानत: 9938 विक्रम संवत पूर्व भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था। पौराणिक मत के अनुसार सतुयग में हुआ था।
 
 
गणेश जन्म स्थान : उत्तरकाशी जिले के डोडीताल को गणेशजी का जन्म स्थान माना जाता है। यहां पर माता अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर हैं जहां गणेशजी अपनी माता के साथ विराजमान हैं। डोडीताल, जोकि मूल रूप से बुग्‍याल के बीच में काफी लंबी-चौड़ी झील है, वहीं गणेश का जन्‍म हुआ था। यह भी कहा जाता है कि केलसू, जो मूल रूप से एक पट्टी है (पहाड़ों में गांवों के समूह को पट्टी के रूप में जाना जाता है) का मूल नाम कैलाशू है। इसे स्‍थानीय लोग शिव का कैलाश बताते हैं। केलसू क्षेत्र असी गंगा नदी घाटी के सात गांवों को मिलाकर बना है। गणेश भगवान को स्‍थानीय बोली में डोडी राजा कहा जाता हैं जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश है। मान्यता अनुसार डोडीताल क्षेत्र मध्‍य कैलाश में आता था और डोडीताल गणेश की माता और शिव की पत्‍नी पार्वती का स्‍नान स्‍थल था। स्‍वामी चिद्मयानंद के गुरु रहे स्‍वामी तपोवन ने मुद्गल ऋषि की लिखी मुद्गल पुराण के हवाले से अपनी किताब हिमगिरी विहार में भी डोडीताल को गणेश का जन्‍मस्‍थल होने की बात लिखी है। वैसे कैलाश पर्वत तो यहां से सैंकड़ों मील दूर है परंतु स्थानीय लोग मानते हैं कि एक समय यहां माता पार्वती विहार पर थी तभी गणेशजी का जन्म हुआ था।
 
 
गणेश के नाम : कहते हैं कि गणेशजी का मूल नाम विनायक है। इसके बाद गणेश और गणों के ईश गणपति हुए। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया। दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ ऋग्वेद में भी भगवान गणेशजी का जिक्र है। ऋग्वेद में 'गणपति' शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है। बाद के नाम किसी न किसी कथा से जुड़े हैं। गणेशजी नाम : सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब, गजानन, अरुणवर्ण, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन। उन्हें एकदंत इसलिए कहा जाता है क्योंकि परशुरामजी ने उनका एक दांत तोड़ दिया था। उन्हें गजानन इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे गज (हाथी) के मुख के थे।
 
गणेश जी का मस्तक : उन्हें गजानन इसलिए कहा गया कि उनके सिर को भगवान शंकर ने काट दिया था। बाद में उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उन्हें पुन: जीवित किया गया। यह भी कहा जाता है कि शनिदेव जब बाल गणेश को देखने गए तो उनकी दृष्टि से उनका मस्तक भस्म हो गया था बाद में विष्णुजी ने एक हाथी का सिर उनके धड़ पर लगाकर उन्हें पुनर्जिवित कर दिया था।
 
अग्रपूजक कैसे बने : एक बार देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता हुई जिसमें जो सबसे पहले परिक्रमा करके आ जाता उसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता। प्रतियोगिता प्रारंभ हुई परंतु गणेश जी का वाहन तो मूषक था तब उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और उन्होंने अपने माता पिता शिव एवं पार्वती की ही परिक्रमा कर ली। ऐसा करके उन्होंने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ही परिक्रमा कर ली। तब सभी देवों की सर्वसम्मति और ब्रह्माजी की अनुशंसा से उन्हें अग्रपूजक माना गया। इसके पीछे और भी कथाएं हैं। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं। 
 
गणेश जी का परिवार : उनकी माता का नाम पार्वती और पिता का नाम शिव। भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी है। उनकी पत्नी प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि हैं। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। शुभ और लाभ के पुत्र आमोद और प्रमोद हैं।
 
गणेशजी की पसंद : उनका प्रिय भोग मोदक लड्डू, प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दुर्वा (दूब), प्रिय वृक्ष शमी-पत्र, केल, केला आदि हैं। केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है। उनको मोदक का लड्डू अर्पित किया जाता है। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
 
गणेशजी का स्वरूप : जल तत्व के अधिपति, बुधवार और चतुर्थी के स्वामी और केतु एवं बुध के ग्रहाधिपति गणेश जी के प्रभु अस्त्र पाश और अंकुश है। वे मूषक वाहन पर सवार रहते हैं। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं।
 
भगवान गणेशजी का सतयुग में वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 हैं तथा नाम विनायक। श्री गणेशजी का त्रेतायुग में वाहन मयूर है इसीलिए उनको मयूरेश्वर कहा गया है। उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत। द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है।कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है।
 
गणेशजी के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंग : मस्तक प्रसंग, पृथ्‍वी प्रदक्षिणा प्रसंग, मूषक (गजमुख) वाहन प्राप्ति प्रसंग, गणेश विवाह प्रसंग, संतोषी माता उत्पत्ति प्रसंग, विष्णु विवाह में उन्हें नहीं बुलाने का प्रसंग, असुर (देवतान्तक, सिंधु दैत्य, सिंदुरासुर, मत्सरासुर, मदासुर, मोहासुर, कामासुर, लोभासुर, क्रोधासुर, ममासुर, अहंतासुर) वध प्रसंग, महाभारत लेखन प्रसंग आदि। उन्होंने अपने भाई कार्तिकेय के साथ कई युद्धों में लड़ाई की थी।
 
 
गणेश ग्रंथ : गणेश का गाणपतेय संप्रदाय है। उनके ग्रंथों में गणेश पुराण, गणेश चालीसा, गणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेशजी की आरती, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणपति अथर्वशीर्ष, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र आदि।

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