Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पार्वती पुत्र गणेशजी के ये 10 रहस्य, जो आप अब तक नहीं जानते?

Advertiesment
हमें फॉलो करें ganeshotsav

अनिरुद्ध जोशी

पार्वती शिव पुत्र गजानन भगवान गणेश के बारे में यूं तो पुराणों में कई रहस्यों का उल्लेख मिलता है। गणपतिजी के उन्हीं रहस्यों में से जानिए प्रमुख 10 रहस्य।
 
 
1. गणेशजी की उत्पत्ति का रहस्य : पुराणों में गणेशजी की उत्पत्ति की विरोधाभासी कथाएं मिलती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया। इस पर दु:खी पार्वती (सती नहीं) से ब्रह्मा ने कहा- 'जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो।' पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश 'गजानन' बन गए।
 
 
दूसरी कथा के अनुसार गणेशजी को द्वार पर बिठाकर पार्वतीजी स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेशजी ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उनका सिर काट दिया। इन गणेशजी की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के मिश्रण से की थी। जब पार्वतीजी ने देखा कि उनके बेटे का सिर काट दिया गया तो वे क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया और वह जी उठा।
 
 
श्री गणेश का जन्म भाद्रप्रद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर 12 बजे हुआ था। कहते हैं कि माता पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास किया था। इसी उपवास के चलते माता पार्वती को श्री गणेश पुत्र रूप में प्राप्त हुए। शिव महापुराण के अनुसार माता पार्वती को गणेशजी का निर्माण करने का विचार उन्हीं की सखी जया और विजया ने दिया था। उनकी सखियों ने उनसे कहा था कि नंदी और सभी गण सिर्फ महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं इसलिए आपको भी एक ऐसे गण की रचना करनी चाहिए, जो सिर्फ आपकी ही आज्ञा का पालन करे। इस विचार से प्रभावित होकर माता पार्वती ने श्री गणेश की रचना अपने शरीर के मैल से की।
 
 
2. गणेशजी की पत्नी, पुत्र और पुत्री : गणेशजी की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं, जो प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के 2 पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही 'शुभ-लाभ' कहा जाता है। शास्त्रों में तुष्टि और पुष्टि को गणेशजी की बहुएं कहा गया है। गणेशजी के पोते आमोद और प्रमोद हैं।
 
 
मान्यता के अनुसार गणेशजी की एक पुत्री भी है जिसका नाम संतोषी है। एक कथा के अनुसार भगवान गणेशजी अपनी बुआ से रक्षासूत्र बंधवा रहे थे। इसके बाद गिफ्ट का लेन-देन देखने के बाद गणेशजी के पुत्रों ने इस रस्म के बारे में पूछा। इस पर गणेशजी ने कहा कि यह धागा नहीं, एक सुरक्षा कवच है। यह रक्षासूत्र आशीर्वाद और भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।
 
 
यह सुनकर शुभ और लाभ ने कहा कि ऐसा है तो हमें भी एक बहन चाहिए। यह सुनकर भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्प‍न्न की और उनकी दोनों पत्नियों की आत्मशक्ति के साथ उसे सम्मिलित कर लिया। इस ज्योति ने कन्या का रूप धारण कर लिया और गणेशजी की पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम संतोषी रखा गया। यह पुत्री माता संतोषी के नाम से विख्यात है।
 
 
3. गणेशजी के भाई-बहन : गणेशजी के यूं तो कार्तिकेय ही एकमात्र भाई हैं जिन्हें सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। जब देवताओं में प्रथम होने की होड़ हुई तो कार्तिकेय धरती का चक्कर लगाकर जीत गए थे, लेकिन गणेशजी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करके ही यह सिद्ध कर दिया था कि वे ही प्रथम हैं। कार्तिकेय के अलावा गणेशजी के अन्य भाइयों के नाम हैं- सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। उनकी एक बहन भी है। गणेशजी की बहन का नाम अशोक सुंदरी है। कहते हैं कि शिवपुत्र गणेश के भाई कार्तिकेय ने विवाह नहीं किया था।
 
 
गणेशजी की पसंद : जल तत्व के अधिपति गणेशजी का सिर हाथी का है। उनकी प्रिय वस्तु दूर्वा, लाल रंग के फूल, अस्त्र पाश और अंकुश, प्रिय भोजन बेसन और मोदक का लड्डू, केला आदि हैं। शिव महापुराण के अनुसार श्री गणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है, वह जड़रहित 4 अंगुल लंबी और 3 गांठों वाली होनी चाहिए।
 
 
4. गणेशजी प्रथम पूज्य देवता : सभी धर्मों में गणेश की किसी न किसी रूप में पूजा या उनका आह्वान किया ही जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप में जाना जाता है। गणेश पूजा से बुध और केतु ग्रह का बुरा असर नहीं होता। प्रत्येक शुभ और मांगलिक कार्य में लाभ और शांति हेतु सबसे पहले गणेश स्तुति और पूजा ही की जाती है। ऐसा करने से किसी भी प्रकार के विघ्‍न नहीं आते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार जब भगवान शिव त्रिपुर का नाश करने जा रहे थे, तब आकाशवाणी हुई कि जब तक आप श्री गणेश का पूजन नहीं करेंगे, तब तक तीनों पुरों का संहार नहीं कर पाएंगे। तब भगवान शिव ने भद्रकाली को बुलाकर गजानन का पूजन किया और युद्ध में विजय प्राप्त की।
 
 
5. गणेशजी की महिमा : गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। गणेशजी सतयुग में सिंह, त्रेता में मयूर, द्वापर में मूषक और कलिकाल में घोड़े पर सवार बताए जाते हैं। कहते हैं कि द्वापर युग में वे ऋषि पराशर के यहां गजमुख नाम से जन्मे थे। उनका वाहन मूषक था, जो कि अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था। इस गंधर्व ने सौभरि ऋषि की पत्नी पर कुदृष्टि डाली थी जिसके चलते इसको मूषक योनि में रहने का श्राप मिला था। इस मूषक का नाम डिंक है। उनके 12 प्रमुख नाम हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन। उनके प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा है।
 
 
6. सभी देवताओं की शक्तियां : गणेशजी को सभी देवताओं की शक्तियां प्राप्त हैं। जिस तरह हनुमानजी को सभी देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियां दी थीं उसी तरह गणेशजी को भी सभी देवताओं की शक्तियां प्राप्त हैं। इसके बावजूद उनके पास अपनी खुद की शक्तियां भी हैं।
 
 
7. शिव को मिले श्राप के कारण कटा मस्तक : भगवान श्री गणेश के सिर कटने की घटना के पीछे भी एक प्रमुख किस्सा है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार किसी कारणवश भगवान शिव ने क्रोध में आकर सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार कर दिया था। इस प्रहार से सूर्यदेव चेतनाहीन हो गए। सूर्यदेव के पिता कश्यप ने जब यह देखा तो उन्होंने क्रोध में आकर शिवजी को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुम्हारे त्रिशूल से मेरे पुत्र का शरीर नष्ट हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे पुत्र का मस्तक भी कट जाएगा। इसी श्राप के फलस्वरूप भगवान श्री गणेश के मस्तक कटने की घटना हुई।
 
 
8. शनि के देखने से कटा मस्तक : ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब सारे देवी-देवता श्री गणेश को आशीर्वाद दे रहे थे, तब शनिदेव सिर नीचे किए खड़े थे। माता पार्वती द्वारा पूछने पर शनिदेव ने कहा कि मेरे द्वारा देखने पर आपके पुत्र का अहित हो सकता है। लेकिन जब माता पार्वती के कहने पर शनिदेव ने बालक को देखा, तो उसके कुछ समय बाद ही उनका सिर कटने की घटना घटी।
 
 
9. गणेशजी का रंग : शिवपुराण के अनुसार गणेशजी के शरीर का रंग लाल तथा हरा है। इसमें लाल रंग शक्ति और हरा रंग समृद्ध‍ि का प्रतीक माना जाता है। इसका आशय है कि जहां गणेशजी हैं, वहां शक्ति और समृद्ध‍ि दोनों का वास है।
 
 
10. प्रथम लेखक : गणेशजी को पौराणिक पत्रकार या लेखक भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही 'महाभारत' का लेखन किया था। इस ग्रंथ के रचयिता तो वेदव्यास थे, परंतु इसे लिखने का दायित्व गणेशजी को दिया गया। इसे लिखने के लिए गणेशजी ने शर्त रखी कि उनकी लेखनी बीच में न रुके। इसके लिए वेदव्यास ने उनसे कहा कि वे हर श्लोक को समझने के बाद ही लिखें। श्लोक का अर्थ समझने में गणेशजी को थोड़ा समय लगता था और उसी दौरान वेदव्यासजी अपने कुछ जरूरी कार्य पूर्ण कर लेते थे।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

श्री गणेश महोत्सव की शुरुआत कब, कैसे और कहां हुई, जानिए इतिहास