यहां पर श्रीगणेश पूजन की संक्षिप्त विधि सरलीकृत संस्कृत भाषा में दी जा रही है।
नोट - संस्कृत व्याकरण के नियमों को ग्राह्य करने की अपेक्षा उच्चारण सरलता से व शुद्धता से हो सके, यह प्रयास किया है। इसकी सहायता से आप स्वयं ही गणेश पूजन पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए कर सकेंगे।
पूजन शुरू करने के पूर्व अवश्य पढ़े
पूजनकर्ता स्नान करके गणपति पूजन के लिए बैठें।
भगवान गणपति के पूजन का अधिकार सभी वर्गों के लोगों को है।
पूजन पूर्व की दिशा में मुँह करके करें।
पूजन सामग्री की सूची पृथक से दी गई है, वहाँ पर देखें।
पूजन शुरू करने के पूर्व समस्त पूजन सामग्री अपने आसपास इस तरह जमा लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न आए।
पूजन में किन-किन सावधानियों को रखना आवश्यक है, इसकी जानकारी भी पृथक से दी गई है, वहाँ से प्राप्त करें।
पूजन श्री गणेशजी की प्रतिमा पर किया जाता है।
श्री गणेशजी की प्रतिमा न होने पर :-
एक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर, श्री गणेश की भावना करके, पाटे पर अन्न बिछाकर उस पर स्थापित किया जाता है। सुपारी पर ही संपूर्ण पूजन किया जाता है।
श्रीगणेश की मृत्तिका (मिट्टी) की मूर्ति का पूजन कर रहे हों, तो :-
उस मूर्ति के स्थान पर स्नान, पंचामृत स्नान कराने के लिए एक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर, उस सुपारी को गणेशजी की प्रतिमा के सामने स्थापित कर दें। स्नान, पंचामृत स्नान, अभिषेक इत्यादि कर्म उस सुपारी पर ही किए जाते हैं, मृत्तिका की गणेश प्रतिमा पर नहीं।
पूजन प्रारंभ
पूजन प्रारंभ करने हेतु शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करके, इष्ट देवता की दाहिनी दिशा में अक्षत बिछाकर उस पर रखे दें। दीपक प्रज्ज्वलित कर, हाथ धो लें।
दीप पूजन :- (हाथ में गंध एवं पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर दीपक पर गंध-पुष्प अर्पित करें)
मंत्र :- 'ॐ दीप ज्योतिषे नमः'
प्रणाम करें।
(उक्त मंत्र बोलकर गंध व पुष्प, दीपक पर अर्पित करें)
आचमन :- (अब निम्न मंत्र बोलते हुए तीन बार आचमन करें-
ॐ केशवाय नमः स्वाहा (आचमन करें)
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा (आचमन करें)
ॐ माधवाय नमः स्वाहा (आचमन करें)
(निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें)
ॐ हृषीकेशाय नमः हस्तम् प्रक्षालयामि
तत्पश्चात तीन बार प्राणायाम करें।
पवित्रकरण :- (प्राणायाम के बाद अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें)- 'ॐ अपवित्रह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम् गतो-अपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरी-काक्षम् स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि॥
ॐ पुण्डरी-काक्षह पुनातु।'
(पश्चात् निम्न मंत्रों का पाठ करें)-
स्वस्तिवाचन : स्वस्ति न इन्द्रो वृद्ध-श्रवाहा स्वस्ति नह पूषा विश्व-वेदाहा।
(दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले :)
'ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ---*--- नगरे ---**--- ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम् तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम् शुभ पुण्य तिथौ -- +-- गौत्रः --++-- अमुक शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन् महागणपति प्रीत्यर्थम् यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।''
इसके पश्चात् हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।
नोट : ---*--- यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें ---**--- यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें ---+--- यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें ---++--- यहाँ पर अपना नाम बोलकर शर्मा/ वर्मा/ गुप्ता आदि बोलें
विभिन्न नैवेद्य में मोदक, ऋतु के अनुकूल उपलब्ध फल अर्पित करें। नैवेद्य वस्तु का पहले शुद्ध जल से प्रोक्षण करें। धेनु-मुद्रा दिखाकर देवता के सम्मुख स्थापित करें। निम्नांकित मंत्र बोलें :-
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च ।
आहारम् भक्ष्य-भोज्यम् च नैवेद्यम् प्रति-गृह्यताम् ॥