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Saturday, 17 May 2025
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सादगी और नम्रता के पर्याय थे शास्त्रीजी

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हमें फॉलो करें सादगी नम्रता लालबहादुर शास्त्रीजी
- उमा मिश्र

सादगी नम्रता लालबहादुर शास्त्रीजी
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दो अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में एक निर्धन परिवार में जन्मे लालबहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व व कृतित्व ने सारे देश को विस्मित कर दिया। भौतिकता मनुष्य को उच्च पद पर प्रतिष्ठित नहीं कर सकती। उसको महत्वपूर्ण आसन पर पहुँचाती है, उसकी सरलता, सौम्यता व उसकी विनम्रता। अपने इन्हीं गुणों के कारण शास्त्रीजी लोकप्रिय नेता बने।

उन्होंने विशाल जनसहयोग को एकजुट कर ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध असहयोग आंदोलन करने का संकल्प दिलवाया, जिसके कारण उन्हें आठ वर्ष की कैद सुनाई गई। उन्होंने जेल में लिंकन एरिस्टोटल जैसी महान आत्माओं के विचारों का अध्ययन किया। अटल विश्वासी व स्वाभिमानी शास्त्रीजी जो निर्णय लेते, उस पर अडिग रहते।

पं. नेहरू शास्त्रीजी की कार्य कुशलता व उनके व्यक्तित्व से अति प्रभावित थे। असम के भाषा विवाद तथा केरल के कम्युनिस्ट विद्रोह जैसी समस्याओं का समाधान शास्त्रीजी ने अपने वाक्य चातुर्य से फलीतार्थ किया। नेहरूजी सदैव शास्त्रीजी से मुख्य विषयों पर सलाह-मशविरा लेते थे। नेहरूजी के निधन के पश्चात राष्ट्र अनिश्चितता की ओर अग्रसर हुआ। प्रधानमंत्री पद के अनेक दावेदार थे, किंतु सारे विकल्पों को त्यागकर जनमानस ने शास्त्रीजी को ही अपना प्रतिनिधि चुना। उन्होंने अपने अल्प प्रधानमंत्रीत्व काल में निराश जनता के मन में एक ऐसी आशा की किरणबिखेर दी जो देश के इतिहास में अद्वितीय है। पाकिस्तान ने जब 1965 में आक्रमण किया, उस समय उन्होंने भारतीय सेनाध्यक्षों को सही निर्देश देकर आक्रमणकारियों के दाँत खट्टे कर दिए।

विदेशों से भारत को आने वाले खाद्यान्न व शस्त्रों के बंद कर दिए जाने पर उन्होंने 'जय जवान-जय किसान' का नारा दिया। फलतः सैनिकों का आत्मबल बढ़ा और भारतीय कृषकों ने प्रत्येक कठिनाई को सहन करते हुए कण-कण में अन्न का उत्पादन करना शुरू कर दिया, जिसकेफलस्वरूप कृषि क्रांति का सूत्रपात हुआ और हमारा देश खाद्यान्न के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया। हमारे वीर जवानों ने प्राणों का मोह त्याग करके युद्ध क्षेत्र में ऐसे साहसिक कारनामे कर दिखाए जिसे देखकर विदेशी भी अचंभित हो गए और भारत का मस्तक गर्व से ऊँचा हो गया।
लालबहादुर शास्त्री
दो अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में एक निर्धन परिवार में जन्मे लालबहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व व कृतित्व ने सारे देश को विस्मित कर दिया। भौतिकता मनुष्य को उच्च पद पर प्रतिष्ठित नहीं कर सकती। उसको महत्वपूर्ण आसन पर पहुँचाती है, उसकी सरलता, सौम्यता ।
सादगी नम्रता लालबहादुर शास्त्रीजी


भारतीय सेना पाकिस्तानी खेतों, गाँवों को रौंदती हुई लाहौर पहुँच गई जहाँ से उनकी संचार सेवा ठप कर दी गई और लाहौर हवाई अड्डा घेर लिया गया। पस्त दुश्मनों ने संधि का हाथ बढ़ाया। दस जनवरी 1966 को ताशकंद समझौता हुआ। भारतीय जनमानस में विजय की प्रसन्नतामात्र ही रह पाई थी कि ठीक नौ घंटे बाद शांति का दूत, युद्ध का विजेता चिर निद्रा में लीन हो गया। स्वयं मिट गया पर चीनी आक्रमण से लगे धब्बे को मिटाकर गया।

शास्त्रीजी को ग्रामीण जीवन से बेपनाह प्यार था। धरती से जुड़े इस व्यक्तित्व ने भारत की एक-एक इंच धरती को कृषि योग्य बनाने की प्रतिज्ञा की। सोमवार को अन्न बचाने हेतु व्रत रखने का आग्रह करने के साथ-साथ सिंचाई के नए-नए साधनों को उपलब्ध कराया। शास्त्रीजी के संबंध में डॉ. राजेंद्रप्रसाद के विचार उनके जीवन को पूर्णतया स्पष्ट कर देते हैं। लालबहादुर शास्त्रीजी की सादगी और नम्रता ने मुझे सदैव प्रफुल्लता प्रदान की है। उनका रहन-सहन एक सच्चे भारतीय का जीवन है। उन्होंने गाँधीजी की शिक्षाओं को पूरी तरह से उतारा है।

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