दक्षिण अफ्रीका के संस्थापक वास्तुविद् हरमन कालेनबेक (1871-1945) और गाँधीजी मित्रता की मिसाल बन गए। यह 'फ्रैंडशिप डे' से उपजी बाहरी दोस्ती नहीं थी बल्कि पहली मुलाकात में ही अपने भीतर के रंग में रंग लेने वाली दोस्ती थी।
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1908 में कालेनबेक ने एक कार खरीदी और गाँधीजी को चकित करने के लिए वे जोहानसबर्ग जेल गए। गाँधी जेल से छूटे थे और नई कार में बैठकर घर आए। रास्तेभर कुछ नहीं बोले। हरमन ने कहा- नई कार के बारे में, गाँधी ने सिर्फ यही कहा कि यह 'अनावश्यक खर्चा' है। हरमन ने कहा- मेरी कार सालभर बगैर उपयोग के गैरेज में पड़ी रही, फिर मैंने उसे बेच दिया।
एक दिन गाँधीजी को जनरल स्मट्स से साक्षात्कार के लिए जाना था। वे तैयारी में व्यस्त थे और साथ ही हरमन को कई छोटी-छोटी घरेलू लापरवाहियों के लिए सीख भी दे रहे थे। हरमन ने कहा- आप बड़े काम से जाने वाले हैं, घरेलू छोटे कामों में अपना समय क्यों बिगाड़रहे हैं, यह सब तो हो जाएगा।
हरमन कहते हैं- गाँधी में बदलाव की कतई गुंजाइश नहीं थी, बदलना सिर्फ हमें ही था। उनके रंग में रंग जाओ बस। रंग पक्के थे, लग जाएँ तो मिटें नहीं। कई योरपीय दोस्त गाँधी के संपर्क में आकर उनके ही रंग में रंग गए। 1945 में हरमन चल बसे। गाँधी ने जेल से हरमन कालेनबेक को कई पत्र लिखे। गाँधीजी हरमन के प्रशंसक थे और अंतरंग मित्र भी। हरमन की भतीजी इशा सरीद ने अपनी पुस्तक 'हरमन कालेनबेक, महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीकी दोस्त' नामक पुस्तक में हरमन और गाँधीजी की मित्रता को मित्रता की एक अद्भुत मिसाल कहाहै। इंदौर के प्रोफेसर महेंद्र नागर को इसराइल में इशा ने यह पुस्तक भेंट की थी।