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ब्रजेश कानूनगो
यह गाँधी मार्ग है
जिस पर उमड़ता है पूरा शहर
चमचमा रही हैं दुकानें
धरती पर जगह नहीं रही तो
बना ली गई नई जगहें हवा में
सामान और खरीददार इतने सज-धजे
कि मुश्किल था उनमें भेद करना
हालाँकि अभी इतना मुश्किल भी नहीं है यहाँ
अपने मतलब की दुकान खोजना
रोशनी की भव्य अट्टालिकाओं के बीच
छोटे-छोटे अँधेरों में दिखाई देते हैं कुछ पेट्रोमेक्स
लालटेन के मद्धिम प्रकाश में
मिल जाती है मूँगफली और भुना हुआ चना
गाँधी मार्ग पर बने ओवरब्रिज के नीचे से
गुजरते हैं दूसरे रास्ते
बिछी हुई हैं रेल पटरियाँ
जिन पर से पहुँचा जा सकता है कहीं भी
गाँधी मार्ग को छुए बगैर
पुस्तक बाजार भी है एक गाँधी मार्ग पर
जुटी रहती है युवा सपनों की भीड़ वहाँ
सफलता की गारंटी दिलाती पोथियों से भरे हैं गोदाम
लेकिन मिलती नहीं अज्ञेय या मुक्तिबोध की किताब
बड़ी मेहनत के बाद पुरानी किताबों का जानकार विक्रेता
खोज पाता है ढाई रुपए वाला 'सूर सागर सार'
'सत्य के प्रयोग' तो फिर भी नहीं मिल पाती इस बाजार में
यातायात इतना एकांगी है कि
दूसरे रास्तों पर चलने वालों को
आना ही पड़ता है गाँधी मार्ग पर
बच्चे, बूढ़े और बीमार कृपया नहीं चलें सड़क पर
अदृश्य सूचनाएँ चिपकी हैं जगह-जगह
महानगर में बदलते शहर में
ऐसे ही होते हैं मुख्य बाजार
जहाँ जलने लगती हैं आँखें
मुश्किल होती है ताजी हवा।