गाँधीजी का प्राकृतिक रेखाचित्र

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- छाया एवं विवरण : बंशीलाल परमा र

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चित्रकारों ने गाँधीजी को रेखाचित्रों में अपनी-अपनी शैली में प्रस्तुत किया है। गाँधीजी का सिर, चश्मा, धोती एवं लाठी मात्र इनके जरिए गाँधीजी को व्यक्त करने के अनूठे प्रयास चित्रकारों ने किए हैं। मदर टेरेसा की बॉर्डर वाली साड़ी, इंदिरा गाँधी की सफेद बालों की लट, लंबी नाक एवं रुद्राक्ष की माला... इन विशेष बिन्दुओं के आधार पर चित्रकारों ने इनके स्केच तैयार किए हैं।

कभी-कभी यही सब चीजें सीलन भरी दीवार, उखड़े हुए फर्श या अन्य प्राकृतिक रूप से संयोजित हो जाएँ तो उसे क्या कहेंगे? फर्शी पर ये प्राकृतिक रूप से उभरे गाँधी राजस्थान के झालावाड़ जिले की गंगधार तहसील के क्यासरा नामक स्थान पर कायावर्णेश्वर शिव मंदिर के मुख्य द्वारपर दिखाई दिए।
चित्रकारों ने गाँधीजी को रेखाचित्रों में अपनी-अपनी शैली में प्रस्तुत किया है। गाँधीजी का सिर, चश्मा, धोती एवं लाठी मात्र इनके जरिए गाँधीजी को व्यक्त करने के अनूठे प्रयास चित्रकारों ने किए हैं।


गाँधी और भगवा वस्त्र!
- प्रेमनारायण नागर

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बात आजादी के आंदोलन के समय की है। स्वामी सत्यदेवजी, जिन्हें बाद में स्वामी सत्यदेव परिव्राजक के नाम से जाना जाता रहा, महात्मा गाँधी की कार्यशैली से बहुत प्रभावित थे। स्वामीजी अमेरिका से नए-नए आए थे। एक दिन उन्होंने बापू से कहा, 'हम आपके आश्रम में रहकर आपके साथ ही जनता की सेवा करना चाहते हैं।' गाँधीजी ने अत्यंत आत्मीयता से

स्वामीजी से कहा, 'सत्यदेवजी! यदि मेरे साथ रहकर आप जनता की सेवा करना चाहते हैं तो आपको संन्यास के ये भगवा वस्त्र उतारना पड़ेंगे।' गाँधीजी के ये शब्द सुनते ही भगवा वस्त्रधारी स्वामी सत्यदेवजी को बड़ा आघात लगा। वे बोले, 'यह कैसे हो सकता है? मैं संन्यासी हूँ। भगवा वस्त्र कैसे उतारूँ?'

गाँधीजी ने पुनः समझाया, 'मैं सन्यास छोड़ने की बात नहीं कहता। मेरी बात समझिए। इस भारत देश की जनता भगवा वस्त्रधारियों की सेवा करती आई है, उनसे सेवा नहीं करवाती। वह आपसे सेवा नहीं करवाएगी। संन्यास तो मानसिक चीज है। संकल्प की वस्तु है। मेरे कथन पर विचारकीजिए।' भगवा वस्त्र और जनसेवा को लेकर गाँधीजी के इन वचनों से स्वामी सत्यदेवजी को विचलित देख काका कालेलकर ने स्वामीजी से कहा, 'बापू के वचनों का शांति से मनन करें।

इसमें संदेह कहाँ है कि देश की जनता सदियों से भगवा वस्त्र धारण करने वालों पर अगाधश्रद्धा रखती आई है। स्वार्थ एवं अज्ञानवश इसका दुरुपयोग कर जनभावना का शोषण भी किया है।

रावण का उदाहरण सामने है। साधु के वेश में आए रावण से सीता माता तक धोखा खा गई थीं।' स्वामी सत्यदेव ने तनावमुक्त होकर मुस्कराते हुए कहा, 'वस्त्रों से सेवा और श्रद्धा के मध्य मुझे बापू के वचनों पर पुनः आत्मचिंतन करना पड़ेगा।'
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