* सच्चा मित्र कैसा हो? जानिए इन बातों से...
मित्र उसी को जानना चाहिए जो उपकारी हो, सुख-दुःख में हमसे समान व्यवहार करता हो, हितवादी हो और अनुकम्पा करने वाला हो। बुद्ध कहते हैं कि पराया धन हरने वाले, बातूनी, खुशामदी और धन के नाश में सहायता करने वाले मित्रों को अमित्र जानना चाहिए।
मित्र और अमित्र की पहचान निम्न बिन्दुओं पर हो सकती है-
*जो बुरे काम में अनुमति देता है, सामने प्रशंसा करता है, पीठ-पीछे निंदा करता है, वह मित्र नहीं, अमित्र है।
*जो मद्यपान जैसे प्रमाद के कामों में साथ और-आवारागर्दी में प्रोत्साहन देता है और कुमार्ग पर ले जाता है, वह मित्र नहीं, अमित्र है। ऐसे शत्रु-रूपी मित्र को खतरनाक रास्ते की भाँति छोड़ देना चाहिए।
*जो मद्यपानादि के समय या आंखों के सामने प्रिय बन जाता है, वह सच्चा मित्र नहीं। जो काम निकल जाने के बाद भी मित्र बना रहता है, वही मित्र है।
*जो प्रमत्त अर्थात भूल करने वाले की और उसकी सम्पत्ति की रक्षा करता है, भयभीत को शरण देता है और सदा अपने मित्र का लाभ दृष्टि में रखता है, उसे उपकारी सुहृदयी समझना चाहिए।
*जो अपना गुप्त भेद मित्र को बतला देता है, मित्र की गुप्त बात को गुप्त रखता है, विपत्ति में मित्र का साथ देता है और उसके लिए अपने प्राण भी होम करने को तैयार रहता है, उसे ही सच्चा सुहृदय समझना चाहिए।
*जो पाप का निवारण करता है, पुण्य का प्रवेश कराता है और सुगति का मार्ग बताता है, वही 'अर्थ-आख्यायी', अर्थात अर्थ प्राप्ति का उपाय बतलाने वाला सच्चा सुहृद है।
*जो मित्र की बढ़ती देखकर प्रसन्न होता है, मित्र की निंदा करने वाले को रोकता है और प्रशंसा करने पर प्रशंसा करता है, वही अनुकंपक मित्र है। ऐसे मित्रों की सत्कारपूर्वक माता-पिता और पुत्र की भाँति सेवा करनी चाहिए।
*जगत में विचरण करते-करते अपने अनुरूप यदि कोई सत्पुरुष न मिले तो दृढ़ता के साथ अकेले ही विचारें, मूढ़ के साथ मित्रता नहीं निभ सकती।
*जो छिद्रान्वेषण किया करता है और मित्रता टूट जाने के भय से सावधानी बरतता है, वह मित्र नहीं है। पिता के कंधे पर बैठकर जिस प्रकार पुत्र विश्वस्त रीति से सोता है, उसी प्रकार जिसके साथ विश्वासपूर्वक बर्ताव किया जा सके और दूसरे जिसे फोड़ न सकें, वही सच्चा मित्र है।
*अकेले विचरना अच्छा है, किन्तु मूर्ख मित्र का सहवास अच्छा नहीं।