महेन्द्र ितवारी
दोस्ती बदल देती है जिंदगी का रूप
जैसे सरसों के खेत में चमकीली धूप।
रिश्तों के बाग में इसकी खूबसूरती अनूप
जैसे पूनम की रात में चाँद का स्वरूप।
मौजूदगी इसकी बनाती अशुभ को भी शुभ
जैसे पनघट के सिरहाने सजी मखमली दूब
मुश्किलों के सूखे में यह राहत का कूप
जैसे बरखा के आते ही बादल जाते हैं छुप।
आँचल में इसके इठलाता जीवन
सँवरती जवानी, बल खाता बचपन
सेवा और समर्पण पखारते इसके चरण
झुठ के लिए जगह नहीं, हों चाहे कितने जतन।
दुनिया दे दर्द तो बन जाती है दवा
जैसे झुलसाते ज्येष्ठ में ठंडी पूर्वा।
इससे मिलते ही मन हो जाता चमन
भर आता है दिल, भीग जाते हैं नयन।
विश्वास ही इसकी मजबूती का आधार
यह नहीं तो समझो अधूरा है संसार।