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FlashBack2020 : योग, दर्शन, अध्यात्म और चिंतन को लेकर बदली 10 मान्यताएं

हमें फॉलो करें FlashBack2020 : योग, दर्शन, अध्यात्म और चिंतन को लेकर बदली 10 मान्यताएं

अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 16 दिसंबर 2020 (16:44 IST)
वर्ष 2020 से दुनिया ने जो सपने संजोये और जो सकारात्मक उम्मीद की थी उसे कोविड 19 ने मिट्टी में मिला दिया। 2020 दुनिया के लिए अब तक का सबसे काला वर्ष साबित हुआ। 2019 के अंत में जब कोरोना वायरस चीन के वुहान में रौद्र रूप दिखाने लगा था तब दुनिया इस वायरस से दहल गई और देखते ही देखते फरवरी तक आधी दुनिया बंद जैसे हो गई और मार्च तक तो संपूर्ण दिया में लगभग लॉगडाउन लगा दिया गया। इस दौरा में गरीब, मजदूर, शिक्षण संस्थान, थिएटर और व्यापारी वर्ग ने जो कठिनाईयां झेली उसे बयां नहीं किया जा सकता। कई लोगों की जिंदगी सड़क पर आ गई और लाखों लोग मारे गए। भारत में ही कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों की संख्या 1.5 लाख तक पहुंच गई है। ऐसे संकट के दौर में लोगों को धर्म, दर्शन, अध्यात्म और योग की याद आने लगी। लोगों की इनके प्रति मान्यताएं भी बदली।
 
 
1. धर्म पर और ज्योतिष आ गए संदेह के घरे में : वर्ष 2020 पूरी दुनिया के लिए संकटों से भरा रहा है। एक ओर जहां कोरोनावायरस के चलते दुनिया में लाखों लोगों की जान ही नहीं गई बल्कि जीवन और अर्थव्यवस्था भी बिल्कुल ठप हो गई वहीं तूफान, भूख, भूकंप, आग, ग्लोबल वार्मिंग और आतंक से भी लोग त्रस्त रहे। संकट के इस दौर में कई लोगों का धर्म की ओर झुकाव बढ़ा तो कई लोगों के मन में धर्म और ज्योतिष के प्रति अनास्था हो गई। उनकी दृष्‍टि में धर्म और ज्योतिष एक छलावा साबित हुआ। लोगों का तर्क है कि यदि ज्योतिष भविष्‍य का विज्ञान है तो वह यह क्यों नहीं बता पाया कि विश्‍व में कोरोना महामारी फैलेगी और लॉकडाउन लगेगा। मंदिर, चर्च आदि सभी जगहों पर की गई सारी प्रार्थनाएं असफल सिद्ध हुई है।
 
 
2. योग और आयुर्वेद में जागा विश्‍वास : कोरोना के संकट काल में आयुर्वेद के साथ योग का महत्व अधिक बढ़ गया। योग में भी प्राणायाम को लोगों ने ज्यादा सर्च किया क्योंकि प्राणायाम से फेंफड़ों की कार्य क्षमता बढ़ती है और वह मजबूत भी रहते हैं। कोरोना वायरस फेंफड़ों पर ही अटैक करता है इसीलिए लोग आयुर्वेदिक काढ़े के साथ ही योगासन भी करने लगे हैं। इसके अलावा अब लोगों का धीरे धीरे ऐलोपैथी विश्‍वास उठता जा रहा है जिसके चलते भी आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचलन बढ़ा है। आयुर्वेद के नु्स्खों से लोग जहां अपना इम्युनिटी पावर बढ़ा रहे हैं वहीं वे योग को अपनाकर डॉक्टरों के चक्कर से भी बचने का प्रयास कर रहे हैं। मतलब यह कि अब लोगों में पहले की अपेक्षा अपनी सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
 
 
3. बदल पूजा-पाठ और प्रार्थना का तरीका : कोरोना वायरस से लोगों के पूजा-पाठ, नमाज या पार्थना करने के तरीके भी बदल गए हैं। मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा या मस्जित में अब पहले की अपेक्षा लोग पास पास खड़े नहीं रहते और मंदिरों में तो प्रसाद देने और लेने का नियम भी बदल गया है। अब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्रिसमय की रात या ईस्टर की सुबह जश्न कैसे मनाएंगे? क्या पहले की तरह इकट्ठे होकर सभी चर्च जाएंगे? यहूदी अपने खास दिनों को कैसे मनाएंगे? क्या मुस्लिम परिवार बिना मस्जिद जाए ही रमजान में रोजा रखेंगे? क्या वे तरावी के बिना और सिर्फ अपने परिवार के साथ ही इफ्तारी करेंगे? क्या हिंदू धर्म को मानने वाले नवरात्रों में मंदिर जाएंगे, गरबा करेंगे? दरअसल, मौजूदा समय में सभी मान्यताओं में अब बदलावा होने की संभावना हैं क्योंकि कोरोवा वायरस अभी खत्म नहीं हुआ है और जिन्हें हो गया है वे भी अब एक रिसर्च के अनुसार नई तरह की समस्या से जूझ रहे हैं। अभी जो वैक्सिन लगाई जा रही है उसको लेकर भी लोगों के मन में संदेह है। कहां जा रहा है कि यह वैस्किस कुछ नहीं सिर्फ इम्युनिटी बढ़ाना का डोज है। ऐसे में जब तक संदेह दूर नहीं होते तब तक पुरानी मान्यताओं के साथ नहीं जिया जा सकता। कोरोना वायरस हर धर्म के मानने वालों के पूजा-पाठ के तरीकों को बदलकर दिया है और जिन्होंने इस बदलाव को स्वीकार नहीं किया है उनके वायरस की चपेट में आने के 80 प्रतिशत चांस है। मानवता की बेहतरी के लिए फिलहाल इन तौर-तरीकों का बदल जाना ही बेहतर है। क्योंकि अब चीजों को छूना, समूहों में लोगों के साथ रहना और संक्रमित हवा में सांस लेना भी हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
 
 
4. धर्म की अपेक्षा अध्यात्म की ओर झुकाव बढ़ा : 2020 में योग और धर्म ही नहीं अध्यात्म में भी बदलाव देखने को मिला। अब पहले की अपेक्षा लोग धर्म से ज्यादा अध्यात्म या कहें कि धर्म से ज्यादा धार्मिकता की ओर झुकने लगे हैं। यह सही है किन दुनिया में कट्टरता बढ़ी है परंतु अब सभी धर्म के लोग एक ऐसे विश्‍वास की ओर बढ़ रहे हैं जो सांप्रदायिकता को छोड़कर अध्यात्म और ध्यान की बात करता है। वह जो लोग सत्य को खोजने के मार्ग पर हैं वे अब दूसरे धर्मों को भी पढ़, समझ और जान रहे हैं और वे अब एक सच्चे मार्ग की तलाश में हैं।
 
 
5.बढ़ गई नास्तिकता : 2020 में सबसे बढ़ा बदलावा यह देखने को मिला जो कि आश्चर्य में डालने वाला है वह यह कि विश्‍व में नास्तिकता बढ़ रही है खासकर अब मुस्लिम लोग भी बढ़ी तादाद में नास्तिक होने लगे हैं। ईरान और पाकिस्तान में नास्तिकों की बढ़ती संख्‍या से इस्लामिक कट्टरपंथियों में चिंता की लहर फैल रही है। आपको एक्स मुस्लिम नाम से फेसबुक पर कई पेज मिल जाएंगे या इसी नाम से आप बहुत सारे यूट्यूब चैनल सर्च कर सकते हैं। नास्तिक मुस्लिममों में हारिस सुल्तान, जफर हैरेटिक, स्पार्टकस, अब्दुल्ला गोंदल, गालिब कमाल, अब्दुल्ला समीर, महलीज सरकारी आदि अनगिनत नाम है जिन्होंने इस्लाम छोड़ दिया है। हिन्दुओं में तो कोई नास्तिक हो जाए तो वह खुद को एक्स हिन्दू इसलिए नहीं लिखता क्योंकि हिन्दू धर्म में नास्तिकता भी स्वीकार्य है। इस तरह से मान्यताओं के बदलने में सोशल मीडिया और अन्य संचार माध्यमों ने बढ़ी भूमिका निभाई है। क्योंकि अब नेट पर सभी धर्मों के धर्म ग्रंथ मौजूद है और आमजनों की पहुंच में है तो अब हर कोई पढ़ और समझकर यह तय कर सकता है कि सत्य क्या है।
 
 
7. लोग करने लगे हैं चिंतन : चिंतन के लिहाज से 2020 सबसे महत्वपूर्ण इसलिए सिद्ध हुआ क्योंकि जो लोग पढ़ने के प्रति रुचि रखते थे उनके पास समय नहीं था परंतु पांच माह के लॉकडाउन ने नेट पर उबलब्ध धूल खा रही किताबों को छाड़ फूंक दिया। इंटरनेट का भरपूर उपयोग हुआ और पहले की अपेक्षा लोगों ने ज्यादा अध्ययन किया, फिल्में देखी, वेब सीरिज देखी और पुराने टीवी शो भी देखे, जिसके चलते ज्ञान का एकदम से विस्फोट हुआ और लोग ज्यादा सोचने एवं समझने लगे। वर्ष 2020 यह देखा गया है कि स्वतंत्र चिंतकों की संख्या बढ़ी है। पहले की अपेक्षा अब लोग ज्यादा समझने लगे हैं कि क्या सही है और क्या गलत। क्या करना चाहिए और क्या नहीं। 
 
 
8. बदल गई लाइफ स्टाइल : 2020 वर्ष और इस कोरोना वायरस ने खानपान, काम करने के तरीकों, कारोबार के माध्यमों, यात्रा के तौर तरीकों, घरों के डिजाइन, थिएटर में मूवी देखना, रेस्तरां में खाना, सुरक्षा का स्तर और निगरानी समेत पूरी दुनिया को ज्यादातर मामलों में स्थायी तौर पर बदल कर रख दिया है। लोग भले ही बदले या ना बदलें पर बहुतसी मान्यताएं अब बदल गई है। अब हर किसी प्रकार की चीजों को छूना, समूहों में लोगों के साथ रहना और संक्रमित हवा में सांस लेना हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित होने लगा है। ऐसे में लोग इस बदलाव के साथ ढल जाएगा और नियमों का पालन करेगा वही अपनी और अपनों की जिंदगी को बचाकर रखेगा। हालांकि चीजों को छूने से परहेज करना, लोगों से हाथ मिलाने से कतराना, बार-बार हाथ धोना और सोसाइटी से कटकर रहना आने वाले समय में लोगों को अकेला भी कर देगा। लोग किसी की मौजूदगी के बजाय अकेले रहने में ज्यादा सुकून महसूस करने लगेंगे और जो ऐसा नहीं कर पाएंगे वे अपना वक्त ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन कम्युनिकेशन में बिताएंगे। यह मजेदार बात है कि लॉकडाउन के दौरान घर में रहने के लिए बाध्य और जो लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं शायद वो तैयार होना भूल गए होंगे। और, यह भी कि आजकल हमारे आसपास मुस्कुराते हुए लोगों को देखना मुश्किल है क्योंकि हर कोई मास्क पहने हुए है।
 
 
9. मानसिक तनाव : कोरोना वायरस के चलते कई लोगों का मानसिक तनाव समाप्त हो गया और वे पहले की अपेक्षा खुद को ज्यादा सेहतमंद महसूस करने लगे हैं परंतु अधिकतर लोग घर में ही रहकर मानस्ति तनाव से घिर गए हैं। लोगों के मन में उनकी सेहत, करियर व नौकरी आदि इन तमाम बातों को लेकर चिंता बनी रही जिस वजह से वे मानसिक रूप से खुद स्वस्थ महसूस नहीं कर पाए। पूरी नींद न होने, पूरे वक्त कोरोना से जुड़ी खबरों को सुनने-पढ़ने की वजह से लोगों में चिड़चिड़ापन देखा गया। कुछ लोग उदासी, बोरियत, अकेलापन और निराशा से भी जूझते नजर आए। कई घरों में गृहकलह के चलते पारिवार बिखर गए। दांपत्य जीवन में अलगाव के चलते इस वर्ष तलाक के मामले ज्यादा बढ़ गए। उक्त सभी से यह सिद्ध हुआ कि घर में रहना सुकून से भरा कभी नहीं था। मतलब यह कि घर को सुकून के लिए ही होता है परंतु जब सभी लोग एक ही जगह कैद रहकर जीवन यापन करेंगे तो या तो प्रेम बढ़ेगा या अलगाव होगा। हालांकि इस दौर में मानसिक तनाव ही ज्यादा देखा गया जिसके चलते समझदार लोगों ने अध्यात्म और ध्यान के अलावा परंपरागत खेल जैसे ताश, लूडो, शतरंज और सांपसीड़ि जैसे खेल को अपनाकर भी अपना तनाव दूर किया।
 
 
10. ध्रुवीकरण पर भारी पड़ा राष्‍ट्रवाद : 2020 ने एक बाद यह सिद्ध कर दी की जातिवादी ध्रुवीकरण की राजनीति अब नहीं चलेगी। चलेगा तो राष्ट्रवाद ही। वैश्विक महामारी ने लोगों में राष्ट्रीय एकता को बढ़ाया ही है। अधितकर लोग अब एकजुट होकर सोचने लगे हैं। भले ही मोटे तौर पर धार्मिक विभाजन स्पष्ट देखने को मिलता है परंतु बहुसंख्यकों को एकजुट करने में यह वर्ष ज्यादा महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और इसे यह मान्यता स्थापित हुई है कि राष्ट्रवाद ही सभी मुद्दों का हल है। सामाजिक झटके कई स्तर पर बदलाव लाते हैं। इससे चीजें बेहतर के साथ खराब भी होती हैं। कोविड-19 को लेकर तनाव के कारण सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव होना तय ही था। साफ नजर आ रहा है कि बदलाव होने लगे हैं।

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