Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Flashback 2020: रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन व किसानों के आंदोलन से सुर्खियों में रहा कृषि क्षेत्र

हमें फॉलो करें Flashback 2020: रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन व किसानों के आंदोलन से सुर्खियों में रहा कृषि क्षेत्र
, शुक्रवार, 1 जनवरी 2021 (00:19 IST)
नई दिल्ली। कोरोनावायरस महामारी के बावजूद भारतीय कृषि क्षेत्र ने रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन और सकारात्मक वृद्धि हासिल की। लेकिन नए कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर बड़े पैमाने पर किसानों के विरोध प्रदर्शन ने कृषि क्षेत्र के उल्लेखनीय प्रदर्शन को फीका कर दिया।
 
ठंड के मौसम और महामारी की चिंताओं के बावजूद, मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों का विरोध प्रदर्शन नवंबर के अंत में शुरू हुआ और यह अभी तक जारी है। गतिरोध को तोड़ने के लिए सरकार और लगभग 40 किसान यूनियनों के बीच अभी तक छह दौर की औपचारिक बातचीत हो चुकी है।
किसान यूनियनों के साथ वार्ता का नेतृत्व कर रहे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर साल की समाप्ति से पहले कोई समाधान निकलने को लेकर आशान्वित थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बाद में, तोमर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नए साल में संकट को समाप्त करने के लिए समाधान निकलेंगे। सरकार और यूनियनों के बीच बुधवार को हुई आखिरी बैठक में, दोनों पक्ष प्रस्तावित बिजली संशोधन विधेयक तथा वायु प्रदूषण संबंधी अध्यादेश के बारे में चिंताओं के संदर्भ में आम सहमति पर पहुंचे हैं। यह अध्यादेश, किसानों को फसल अवशेष जलाने की स्थिति में उन्हें दंडित करता है।
 
सरकार ने किसानों द्वारा फसल अवशेषों को जलाने को गैर-आपराधिक करने का और बिजली सब्सिडी जारी रखने का भी आश्वासन दिया है। लेकिन 2 विवादास्पद मुद्दों पर अभी कोई सहमति नहीं बन पाई है। ये 2 मुख्य मांगे हैं- सितंबर में लागू किए गए 3 नए कृषि कानूनों को रद्द करना तथा एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) खरीद प्रणाली के लिए कानूनी गारंटी। अब, दोनों पक्षों को नए साल में इन 2 मुद्दों का समाधान निकलने की उम्मीद है तथा इसके लिए दोनों पक्षों के बीच अगली वार्ता चार जनवरी को होने वाली है।
ALSO READ: राजस्थान-हरियाणा की सीमा पर पुलिस ने किसानों पर की पानी की बौछार, आंसू गैस के गोले छोड़े
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 15 प्रतिशत का योगदान और लगभग आधी से अधिक आबादी को रोजगार देने वाला कृषि क्षेत्र में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। विभिन्न चुनौतियों के बावजूद यह क्षेत्र, महामारी की मार से पीड़ित भारतीय अर्थव्यवस्था में एकमात्र वृद्धि हासिल करने वाला क्षेत्र बना रहा।
 
ऐसे समय में जब लगभग सभी उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए थे, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में इस वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि अर्थव्यवस्था में इसी अवधि के दौरान क्रमशः 23.9 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत का संकुचन हुआ। देश में फसल वर्ष 2019-20 (जुलाई-जून) में 29 करोड़ 66.5 लाख टन का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन किया तथा अच्छे मानसून के कारण वर्तमान फसल वर्ष 2020-21 में उत्पादन 30 करोड़ टन के स्तर को पार कर सकता है।
 
देश में महामारी के प्रकोप फैलने से ठीक पहले, फरवरी में बजट में केंद्र सरकार ने कृषि और संबद्ध क्षेत्र के लिए आवंटन को 30 प्रतिशत बढ़ाकर इस वित्त वर्ष के लिए 1,42,761 करोड़ रुपए कर दिया। इसके अलावा, कई नए कार्यक्रमों की घोषणा की गई। जैसे ही सरकार किसान रेल और किसान उडान सहित बजट के फैसलों को लागू करने की तैयारी में जुटी थी, कोरोनोवायरस संक्रमण के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए मार्च के अंत से 2 महीने तक देशव्यापी लॉकडाऊन करना पड़ा।
लॉकडाउन उस समय लगाया गया जब गेहूं जैसे रबी फसल कटाई के लिए तैयार थी। सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि गतिविधियों को लॉकडाउन के प्रतिबंधों से छूट प्रदान की। कई किसान, जो विशेष रूप से जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों को उगा रहे थे उन्हें लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और उन्हें अपनी फसलों को किसी तरह खपाने को मजबूर होना पड़ा, जबकि धान और गेहूं उत्पादक अपनी फसल बेचने में कामयाब रहे।
 
सरकार ने एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर रिकॉर्ड 3.9 करोड़ टन गेहूं की खरीद की। अच्छे दक्षिण-पश्चिम मानसून और लॉकडाउन मानदंडों में ढील दिए जाने से विभिन्न कच्चे माल की समय पर उपलब्धता कराई जा सकी। किसानों ने धान जैसे खरीफ फसल की समय पर बुवाई की और उसकी कटाई की। गेहूं की ही तरह, सरकार चालू खरीफ विपणन सत्र में अभी तक रिकॉर्ड 4.5 करोड़ टन धान की खरीद कर चुकी है।
पिछले कई वर्षों के बंपर उत्पादन और खरीद के कारण खाद्यान्नों के विशाल बफर स्टॉक के साथ सरकार ने अप्रैल से नवंबर तक 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त में राशन मुहैया कराया। यह महामारी से प्रभावित लोगों के लिए एक बड़ी राहत थी। जब गेहूं की खरीद चल रही थी, केंद्र ने पाया कि महामारी के दौरान किसानों को अन्य वस्तुओं के विपणन में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे उचित कृषि-बुनियादी ढांचे के अभाव में बेहतर दरों की प्रतीक्षा किए बिना विनियमित मंडियों में अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर हैं।
 
इसने सरकार को कृषि क्षेत्र और संबद्ध गतिविधियों के लिए मई में प्रोत्साहन की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें एक लाख करोड़ रुपए के कृषि बुनियादी ढांचा कोष की स्थापना भी शामिल है।कोविड-19 संकट से लड़ने के लिए यह घोषणा केंद्र के 20 लाख करोड़ रुपए के राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज का हिस्सा थी।
 
सरकार ने अनाज भंडार को विनियमन के दायरे से बाहर करने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की घोषणा की और किसानों को अपनी उपज आकर्षक मूल्य पर कहीं भी बेचने, कृषि उत्पादों की ई-ट्रेडिंग के लिए ढांचा बनाने तथा बाधा मुक्त अंतर-राज्य व्यापार के पर्याप्त विकल्प प्रदान करने के लिए केंद्रीय कानून की घोषणा की।
 
यह सुनिश्चित करने के लिए कि अक्टूबर से कटाई शुरू होने पर किसानों को खरीफ की उपज को बेचने में कोई समस्या न आए, जून में सरकार, चुनिंदा खाद्य जिंसों (अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, प्याज और आलू) को विनियमन के दायरे से बाहर करने, विनियमित मंडियों के बाहर कृषि जिंसों के व्यापार को अनुमति देने और ठेका खेती को प्रोत्साहित करने के लिए, 3 अध्यादेशों को लेकर आई।
 
लॉकडाउन के दौरान जब इन अध्यादेशों को लाया गया था तो बहुत विरोध नहीं हुआ था, लेकिन जब इन्हें सितंबर में संसद द्वारा पारित कानूनों के साथ बदल दिया गया, तो स्थिति पलट गई, क्योंकि विपक्ष ने चिंता व्यक्त की कि ये विधेयक कृषि के संबंध में राज्य के कानूनों का उल्लंघन करने का प्रयास है। राजग सरकार में हिस्सेदार शिरोमणि अकाली दल ने विधेयकों का विरोध किया और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। बाद में अकाली दल एनडीए से भी बाहर हो गया। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दिल्ली के गुरुद्वारों में साल की अंतिम प्रार्थना आधी रात से 2 घंटे पहले होगी