गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में अराजक आंदोलन से शर्मसार लोकतंत्र !
आंदोलन के नाम पर लालकिले की प्राचीर पर झंडा फहराना कितना सहीं ?
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत और भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व गणतंत्र दिवस। 26 जनवरी 1950 से आज तक दिल्ली में आज के दिन होने वाले ऐतिहासिक गणतंत्र दिवस समारोह पर दुनिया की नजर टिकी होती थी लेकिन आज 72 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली,दुनियाभर में गणतंत्र दिवस समारोह नहीं बल्कि एक अराजक प्रदर्शन के चलते सुर्खियों में है।
नए कृषि कानून के विरोध में पिछले दो महीने से पूरी तरह शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे किसानों ने आज जिस तरह अराजक होकर गणतंत्र दिवस पर लाल किले की प्राचीर तक पहुंचकर अपना झंडा लहराया उसे हमारे लोकतंत्र की भावना को कहीं न कहीं ठेस जरूर पहुंची है।
भारतीय लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात रखने,प्रदर्शन करने का जो अधिकार देश का संविधान देता है आज उसी संविधान को लागू होने के दिन जिस तरह से आंदोलन के अधिकार के नाम पर दिल्ली की सड़कें दिन भर जंग के मैदान में तब्दील दिखाई दी उसको किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता।
गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में किसान आंदोलन के नाम पर जिस तरह प्रदर्शनकारियों ने उग्र और हिंसक तेवर दिखाकर अराजक प्रदर्शन किया उससे एक नहीं कई सवाल खड़े हो गए है।
1-आंदोलन के नाम पर पुलिस से भिड़े प्रदर्शनकारी- गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान प्रदर्शनकारी दिल्ली के कई इलाकों में पुलिस से सीधे भिड़ गए। सुबह सबसे पहले अक्षरधाम फिर आईटीओ और उसके बाद ऐतिहासिक लालकिले पर पुलिस से सीधी भिड़ंत हुई है। किसानों ने पुलिसकर्मियों पर पथराव के साथ उनकी गाड़ी और बस को अपना निशाना साधा। किसानों को काबू में करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े तो किसानों ने पुलिस पर जमकर पथराव किया। वहीं दोपहर बाद नांगलोई में ट्रैक्टर परेड के लिए निकले किसान पुलिस से सीधे भिड़ गए।
2-नेताओं के कंट्रोल से बाहर हुए प्रदर्शनकारी-किसान आंदोलन का पिछले दो महीने से नेतृत्व कर रहा संयुक्त किसान मोर्चा के सभी नेता आज पूरे दिन असहाय से नजर आए। जब दिल्ली की सड़कों पर आंदोलन के नाम पर किसान या किसान के भेष में प्रदर्शनकारी खुलेआम कानून को चुनौती देकर पुलिस के बेरिकेट्स तोड़कर दिल्ली में एंट्री कर रहे थे तब पूरा आंदोलन नेतृत्व विहीन नजर आया।
पूरी तरह से नेतृत्व विहीन दिखाई दी आज किसानों की ट्रैक्टर परेड आज पूरी तरह बेकाबू नजर आई। जिस दौरान दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शनकारी गुंडागर्दी कर रहे थे उस वक्त किसान नेता केवल शांति बनाए रखने की अपील कर रहे थे। संयुक्त किसान मोर्चा के अहम सदस्य योगेंद्र यादव भी असहाय होकर केवल शांति बनाए रखने की अपील करते नजर आए। वहीं किसान नेता शिवकुमार शर्मा अपने बयानों में पहले तो पुलिस पर ही स्थिति बिगड़ने का आरोप लगाते नजर आए लेकिन बाद में उन्होंने प्रदर्शनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील की।
3-सरकार को सीधे चुनौती देता आंदोलन-ऐतिहासिक लालकिले की प्राचीर पर आज जिस तरह आंदोलनकारियों ने अपना झंडा फहराने के साथ उत्पात मचाया उससे अब यह पूरा आंदोलन भटक कर सीधे सरकार को चुनौती देने की स्थिति में आ चुका है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या किसान आंदोलन अब किसान नेताओं के हाथ से निकलकर अब हिंसक दौर की ओर आगे बढ़ गया है।
किसान नेता जो कल तक पूरी ट्रैक्टर परेड के शांतिपूर्वक और ऐतिहासिक होने का दावा कर रहे थे कि क्या वह अब आंदोलन को आगे बढ़ा पाएंगे। सवाल यह भी है कि किसान क्या अब किसी संगठन के काबू में है और क्या वह उनकी बात मानेंगे।
4-गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड की परमिशन क्यों?-आज जिस तरह किसान आंदोलन के नाम पर उत्पात हुआ उससे अब दिल्ली पुलिस भी कठघरे में आ गई है। सुप्रीम कोर्ट जिसने ट्रैक्टर परेड को लेकर अंतिम फैसला लेने का अधिकार दिल्ली पुलिस को सौंपा था क्या वह पूरी स्थिति का अंदाजा नहीं लगा पाई थी। दिल्ली पुलिस के काबिल अफसर नहीं जानते थे एक बार जब किसान दिल्ली की अंदर एंट्री कर जाएंगे तो उनको कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा। क्या दिल्ली पुलिस का खुफिया विभाग अपने काम में बुरी तरह फेल हो गया। अगर दिल्ली पुलिस को यह सब पता था उसने गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड की इजाजत क्यों दी।