प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सितारा देवी का 25 नवंबर को मुंबई के जसलोक अस्पताल में निधन हो गया। वह 94 वर्ष की थीं। उनके निधन से संगीत जगत में शोक की लहर फैल गई।
सितारा देवी का जन्म उनका जन्म 1920 में कोलकाता में हुआ था। इनका मूल नाम धनलक्ष्मी था और उन्हें घर में धन्नो के नाम से बुलाया जाता था। सितारा देवी का विवाह आठ वर्ष की उम्र में हो गया। उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभालें लेकिन वह स्कूल में पढ़ना चाहती थीं।
स्कूल जाने के लिए जिद के कारण उनका का विवाह टूट गया और उन्हें कामछगढ़ हाई स्कूल में दाखिल कराया गया। वहां अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन कर वे जल्द ही लोकप्रिय हो गईं।
एक अखबार में छपी अपनी बेटी की तारीफ से गदगद पिता ने धन्नो का नाम सितारा देवी रख दिया गया और उनकी बड़ी बहन तारा को उन्हें नृत्य सिखाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। सितारा देवी ने शंभू महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज से भी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। दस वर्ष की उम्र में वह एकल नृत्य से लोगों का मन मोह लेती थीं। अधिकतर वह अपने पिता के एक मित्र के सिनेमा हाल में फिल्म के बीच में पंद्रह मिनट के इंटरवल में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थीं।
नृत्य की लगन के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा और ग्यारह वर्ष की आयु में उनका परिवार मुम्बई चला गया। मुम्बई में उन्होंने जहांगीर हाल में अपना पहला सार्वजनिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यहीं से कथक के विकास और उसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में उनके साठ साल लंबे करियर का आरंभ हुआ।
सितारा देवी न सिर्फ कथक बल्कि भरतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोकनृत्यों में पारंगत थीं। वह उस समय की कलाकार हैं जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी।
सितारा देवी ने मधुबाला, रेखा, माला सिन्हा और काजोल समेत कई दिग्गज अभिनेत्रियों को कथक का प्रशिक्षण दिया था। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी काम किया। उस दौर में उन्हें सुपर स्टार का दर्जा हासिल था लेकिन नृत्य की खातिर उन्होंने फिल्मों से किनारा कर लिया।
इन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान 1969 में मिला। इसके बाद इन्हें 1975 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1994 में इन्हें कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया। बाद में इन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण दिया गया जिसे इन्होंने लेने से मना कर दिया और अपने लिए भारत रत्न की मांग की। 16 साल की उम्र की आयु में इनके प्रदर्शन को देखकर भावविभोर हुए गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने इन्हें नृत्य सम्राज्ञी की उपाधि दी थी।