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इंदौर का पहला फोटोग्राफर

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अपना इंदौर

इंदौर में सर्वप्रथम फोटो स्टूडियो खोलने वाले लाला दीनदयाल थे। 1838-39 में योरप में फोटोग्राफी का आविष्कार होने के बाद शीघ्र बाद ही फोटोग्राफी का भारत में आगमन हुआ। ग्रेट ब्रिटेन व भारत के बीच समुद्री यातायात बढ़ चला था। समुद्री मार्ग से अंगरेजों के आवागमन के साथ-साथ फोटोग्राफी भारत में आई।
 
जनवरी 1840 में कलकत्ता में 'फ्रेंड ऑव इंडिया' नामक पत्र में विज्ञापन छपता था कि वे डागेरे टाइप के आयातित कैमरे बेचते हैं। 1843 से 1845 के बीच में फ्रेंच कस्टम्स के इंस्पेक्टर जनरल ने पांडिचेरी के मंदिर के डागेरे टाइप के फोटो लिए थे, जो अभी कुछ समय पूर्व ही प्राप्त हुए हैं। उन दिनों भारत में फोटोग्राफी के क्षेत्र में विदेशी लोग ही छाए थे, क्योंकि वे ही साधन संपन्न थे और उन्होंने फोटोग्राफी आयातित भी की थी। अंगरेजों ने फोटोग्राफी को संरक्षण दिया। शासकीय संरक्षण प्राप्त कर फोटोग्राफी ने तेजी से तरक्की की। अधिकारियों, गवर्नरों और वाइसराय की व्यक्तिगत रुचि के कारण आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के लिए फोटोग्राफी आवश्यक करार दे दी गई और फिर इस दिशा में उच्च स्तरीय कार्य हुआ। विदेशियों के अलावा कुछ उच्च कोटि के भारतीय फोटोग्राफर भी इन दिनों हुए।
 
उनमें से एक थे लाला दीनदयाल। वे मेरठ में पास सरदाना में 1844 में जन्मे थे। रुडकी के थामसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। फिर 1866 में वे इंदौर के पी.डब्ल्यू. सेक्रेटरिएट ऑफिस में हेड एस्टियेटर एंड ड्राफ्ट्‌स-मैन नियुक्त हुए। 1874 में उन्होंने फोटोग्राफी शौकिया तौर पर सीखना शुरू की। इस कार्य में उन्हें सर हेनरी डेली, ए.जी., ए.सी.बी. द्वारा प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्राप्त हुआ। इन्हीं की सहायता से उन्होंने गवर्नर जनरल लार्ड नार्थ ब्रुक के इंदौर आगमन पर उनके मित्रों के साथ उनका एक ग्रुप फोटो एवं 1875-76 में प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन पर उनकी पार्टी सहित ग्रुप फोटो लिया था।
 
सर हेनरी डेली के बुंदेलखंड के दौरे पर लालाजी भी उनके साथ गए थे एवं वहां के प्राकृतिक दृश्यों, इमारतों, राजाओं और सामंतों के फोटो उतारे थे। सर डेली की सेवानिवृत्ति के पश्चात उनके उत्तराधिकारी सेंट्रल इंडिया एजेंसी के एजेंटों द्वारा भी लालाजी को संरक्षण दिया गया। 1882-83 में तत्कालीन एजेंट सर लेपेल ग्रिफिन के साथ उन्होंने फिर बुंदेलखंड का विस्तृत दौरा किया और वहां की समस्त प्राचीन शिल्पकृतियों के फोटो लिए। ये सब फोटो बाद में सर लेपेल द्वारा सरकारी खर्च से लंदन में पुस्तकाकार प्रकाशित किए गए।
 
वर्ष 1885 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन के साथ सर लेपेल ग्रिफिन का लालाजी ने ग्रुप फोटो लिया। लेडी डफरिन का भी फोटोग्राफी संबंधी कुछ कार्य लालाजी ने किया और वे उस कार्यसे परम संतुष्ट हुईं। फलस्वरूप लालाजी को वायसराय का फोटोग्राफर नियुक्त किया गया।
 
होलकर महाराजा द्वारा लालाजी का काम इतना पसंद किया गया कि महाराजा ने खुश होकर उन्हें जागीर प्रदान की। धार महाराजा ने भी उनके कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। ग्राफिक ने तीन पृष्ठों में लालाजी के देहली केम्प ऑफ एक्सरसाइज के फोटो छापे और बाद में समय-समय पर भी 'ग्राफिक' में उनके फोटो छपते रहे।
 
लालाजी के द्वारा लिए गए चित्र जनता द्वारा बहुत पसंद किए गए एवं उनकी मांग बढ़ जाने से लालाजी ने अपना काम पूरा करने के लिए 2 साल की छुट्टी ली। शिमला में उन्होंने वायसराय लॉर्ड डफरिन और परिवार एवं लेजिस्लेटिव कौंसिल के ग्रुप फोटो लिए। 1887 में ड्‌यूक ऑफ कनाट ने महू कैम्प का दौरा किया तब लालाजी उनके साथ फोटोग्राफर के रूप में थे।
 
उनके कार्य को बेहद पसंद किए जाने एवं 2 साल की अवधि में भी उनका फोटो संग्रह पूरा न हो सकने एवं विशिष्ट व्यक्तियों के प्रोत्साहन एवं संरक्षण के फलस्वरूप उन्होंने सरकारी नौकरी से 1886 में निवृत्ति लेकर अपना पूरा समय और शक्ति अपने काम में लगा दी और 'इंडिया व्यूज' नाम से अपना संग्रह तैयार किया। वर्ष 1888 के लगभग उन्होंने इंदौर, बंबई और सिकंदराबाद में अपने फोटो स्टूडियो खोले।
 
लॉर्ड डफरिन का पत्र लेकर जब लालाजी हैदराबाद के निजाम के पास पहुंचे, उनका उच्च कोटि का कार्य देख निजाम अभिभूत हो गए और उनको 'राजा' और 'मसवीर जंग' की उपाधियों से विभूषित किया। निजाम ने उनको इंदौर के बदले हैदराबाद में बसने को राजी किया। वहां उन्होंने अपना स्टूडियो भी खोला। संभवतया वहां उन्होंने एक जनाना स्टूडियो भी खोला था जहां का सब कार्य महिलाएं ही करती थीं और जहां पर्दानशीं महिलाएं बिना हिचक के आकर फोटो खिंचवा सकती थीं।
 
वर्ष 1905-06 में प्रिंस और प्रिंसेस ऑफ वेल्स के दौरे में भी लालाजी उनके साथ गए थे।

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