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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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शिकारियों के 'पंजों' में छटपटाता 'टाइगर स्‍टेट'; गुना, भोपाल से लेकर देवास-इंदौर तक जंगलों में सक्रिय हैं अवैध शिकारी

आखिर कैसे वन-भक्षकों से मुक्‍त होगा वन्‍य संपदा से हरा-भरा प्रदेश?

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नवीन रांगियाल

मध्‍यप्रदेश के गुना में वन्य पशुओं के शिकारियों द्वारा 3 पुलिसकर्मियों की बर्बर हत्‍या के बाद देश के दिल, मध्यप्रदेश में बाघ और जंगली जानवरों के शिकारी (पोचर्स) गिरोह की सक्रियता एक बार फिर से चर्चा में है।दरअसल, वन्‍य जीव और वन संपदा से हरा-भरा प्रदेश, भारत का प्रसिद्ध टाइगर स्‍टेट मध्‍यप्रदेश शिकारियों के चंगुल में फंसा नजर आता है। शिकारियों के जाल प्रदेश की राजधानी भोपाल, होशंगाबाद, इंदौर से लेकर देवास जिले और गुना-ग्‍वालियर जिलों के जंगलों में फैले हैं। कोरोना काल में तो शिकारियों ने वन्‍य जीवों पर तबाही मचा दी। इस दौरान सबसे ज्‍यादा बाघों की मौत और शिकार हुए। एनटीसीए की रिपोर्ट तो कहती है कि मध्यप्रदेश में भोपाल, होशंगाबाद, पन्ना, मंडला, सिवनी, शहडोल, बालाघाट, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शिकारियों की पनाहगाह बन गए हैं।
सागौन के सघन वनों में बाघों के शिकार और सागौन व चंदन सहित कई कीमती लकड़ियों की तस्‍करी और शिकारियों के गिरोह की परतें उतनी ही गहरी हैं, जितने मध्‍यप्रदेश के जंगल। गुना की घटना के बाद भले ही सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सक्रिय शिकार गिरोह से सख्‍ती से निपटने के निर्देश जारी कर दिए हों, लेकिन यह उतना भी आसान नहीं है, क्‍योंकि जानवरों के भक्षक प्रदेश के जंगलों की डाल-डाल और पात- पात पर बैठे हैं। प्रदेश का वन्‍य एवं पर्यावरण विभाग अब गुना की घटना के बाद वन्‍य संरक्षण के लिए योजनाओं और समीक्षाओं की बात कर रहा है। लेकिन यह कब लागू होगीं और कितनी कारगर साबित होगी ये तो वक्‍त ही बताएगा

वेबदुनिया ने शिकार गिरोह की इन्‍हीं घनी परतों को उजागर करने के लिए वन्‍य मंत्री विजय शाह के साथ ही इंदौर, देवास के डीएफओ और भोपाल में पीसीसीएफ और वाइल्‍ड लाइफ के अधिकारियों से चर्चा कर जानने का प्रयास किया कि वन्‍य जीवों के संरक्षण और कीमती सागौन और चंदन की तस्‍करी पर रोक और शिकार गिरोह पर काबू पाने के लिए क्‍या प्रयास किए जा रहे हैं।
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इंदौर जिला: कैसे बंद कर दी तेंदुओं की मौत की फाइलें
इंदौर से सटे मानपुर में एक घायल तेंदुआ मिला था, बाद में उसकी मौत हो गई, उसके साथ क्‍या हुआ आज तक पता नहीं चल सका। वहीं जुलाई 2010 इंदौर रेंज के नयापुरा में घायल तेंदुआ मिला था, पहले कहा गया कि उसके साथ हादसा हुआ है, क्‍योंकि वो अंधा हो चुका था। बाद में सीटी स्‍कैन में खुलासा हुआ कि उसके सिर में बंदूक के करीब 42 छरे धंसे मिले हैं।
घटना के बाद वनविभाग सक्रिय तो हुआ, लेकिन किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। करीब छह महीनों के बाद 4 शिकारी पकड़े गए, जो किसी दूसरे मामले से संबंधित थे, उन पर घायल तेंदुए का आरोप लगा दिया गया, जबकि असल आरोपी अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। बता दें कि इंदौर रेंज में 4 महीने के भीतर 5 तेंदुओं की मौत हो चुकी हैं। इनमें से वन विभाग ने 2 को हादसा बता दिया तो बाकी को फॉरेस्‍ट की टेरेटरी फाइट में घायल होकर मर जाने का मानकर फाइलें बंद कर दीं।

देवास में 1 महीने में शिकार की 3 घटनाएं
देवास जिले में पिछले एक महीने में ही शिकार की तीन घटनाएं सामने आई थी, जिनमें एक नीलगाय और हिरण का शिकार किया गया। वहीं एक जगह शिकार के दौरान किसान पर शिकारियों द्वारा गोली चलाई गई। कुछ समय पहले डबलचौकी से उदयनगर की ओर जाने वाले रास्ते पर बाघ का शव संदिग्ध हालत में मिला था, जिसके दांत, नाखून गायब थे।
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वनरक्षक की हत्‍या : देवास जिले में तो शिकारियों के सक्रिय गिरोह वनरक्षकों की हत्‍या करने से भी नहीं चूकते हैं, पिछले साल फरवरी में देवास के पुंजापुरा क्षेत्र के जंगल में वनरक्षक मदनलाल वर्मा की शिकारियों की हत्या कर दी थी। शिकारी एक जलस्रोत के पास इकठ्ठे हुए थे, क्‍योंकि इसी स्‍थान पर जानवर पानी पीने के लिए आते हैं। वनरक्षक मदनलाल वर्मा ने उन्‍हें चेताया तो एक शिकारी ने बंदूक से फायर कर दिया, जिससे वर्मा की मौत हो गई थी।
शिकार में तीर, करंट का इस्‍तेमाल : पिछले साल (नवंबर 2021) में उदयनगर क्षेत्र में तेंदुए के शिकार की घटना सामने आई थी, जिसमें इंदौर की पुलिस ने आरोपियों को पकड़ा था। जिले में हिरण, नीलगाय आदि जंगली जानवरों के शिकार की घटनाएं आम हैं। शिकारी जानवरों के शिकार के लिए हथियार, तीर और इलेक्‍ट्रिक शॉक या बिजली के करंट का इस्‍तेमाल करते हैं। खासतौर से शिकारी जलस्‍त्रोतों के आसपास बाघों और अन्‍य जानवरों को अपना शिकार बनाते हैं, क्‍योंकि इन्‍हीं स्‍थानों पर गर्मी के दिनों में जानवर पानी पीने के लिए आते हैं।

क्‍या कहते हैं जिम्‍मेदार : दरअसल, इंदौर से सटे देवास जिले में सघन वन क्षेत्र है। देवास का वन क्षेत्र इंदौर के वन क्षेत्र से काफी बड़ा और गहरा है। यहां वन्‍यजीवों की संख्‍या भी ज्‍यादा है और इसीलिए यहां शिकारी गिरोह भी सक्रिय है, हालांकि जिले के डीएफओ पीएन मिश्रा का कहना है कि फिलहाल यहां कोई संगठित गिरोह सक्रिय नहीं है। उनका कहना है कि दरअसल घटनाएं दो तरह से होती हैं, एक संगठित अपराध के तौर पर और दूसरी आम लोगों की गलती से। ऐसे में हम वन्‍यजीव खतरे में न आए, इसके लिए किसानों और आम लोगों को जागरूक कर रहे हैं। घटनाएं रोकने के लिए गुप्तचरों को सक्रिय किया है। तेज गर्मी में जानवर पानी पीने के लिए जलस्रोतों पर पहुंचते हैं, यहां पर विशेष नजर रखी जा रही है।

क्या है सच! : एनटीसीए के मुताबिक, इस साल मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 44 बाघों की मौत हुई है। इतनी बड़ी संख्या में बाघों की मौत के लिए एरिया डॉमिनेशन के लिए होने वाली आपसी लड़ाई, अवैध शिकार और दुर्घटना को जिम्मेदार माना जाता है। परंतु पूरे मप्र में सक्रिय हैं शिकारियों के गिरोह। बहुत दुखद बात तो यह है कि तमाम इंतजामों के बाद गुना ही नहीं, इंदौर, देवास सीहोर, हरदा, खंडवा, खरगोन जिलों में शिकारी गिरोह सक्रिय हैं। इसके साथ ही प्रदेश के दूसरे जंगलों की तुलना में देवास बेहद घना जंगल है, इसलिए यहां के उदयनगर, पीपरी, पुंजापुरा, बागली, कांटाफोड़, सतवास, कन्नौद, हरणगांव, खातेगांव क्षेत्र के जंगलों में शिकारियों के कई गिरोह सक्रिय हैं।
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देश के राज्‍यों में बाघों की मौत का आकड़ा
2021 में भारत में सबसे ज्‍यादा बाघों की मौत। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के मुताबिक साल 2021 में भारत में सबसे ज्‍यादा 126 बाघों की मौत हो गई। एनटीसीए के मुताबिक, इस साल मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 44 बाघों की मौत हुई। उसके बाद 26 मौतों के साथ महाराष्ट्र दूसरे और 14 मौतों के साथ कर्नाटक तीसरे नंबर पर रहा।
महाराष्‍ट्र और कर्नाटक की स्‍थिति
  • महाराष्ट्र में 26 बाघों की मौत
  • कर्नाटक में 14 बाघों की मौत
मध्‍यप्रदेश की स्‍थिति
  • देश में मध्‍यप्रदेश में सबसे ज्‍यादा 526 बाघ हैं
  • पिछले साल 42 से 44 बाघों की मौत हुई
  • इस साल 18 बाघों की मौत
  • 2012 से 2021 के बीच देश में हर साल औसतन 98 बाघों की मौत
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ये भी फैक्‍ट हैं
  1. प्रदेश में ती प्रमुख नेशनल पार्क कान्‍हा, पेंच और बांधवगढ टाइगर रिजर्व में शिकार की घटनाओं में इजाफा हुआ है।
  2. बांधवगढ में 2 साल के भीतर 3 बाघिन और 3 शावकों का शिकार हो गया।
  3. शहडोल संभाग के जंगलों में शिकारियों के फंदे में फंसकर 5 साल के अंदर 10 से ज्‍यादा बाघों की जान चली गई।उमरिया जिले में खेतों में फैलाए गए करंट से 2 साल में 7 से ज्‍यादा तेंदुए मारे गए।
  4. पेंच नेशनल पार्क में भालू, चीतल की जान जा रही है। पेंच प्रबंधन के मुताबिक 1 जनवरी 2020 से अब तक 10 मामलों में 7 में करंट फैलाकर जान ली गई।
  5. कान्‍हा में साल 2019 से मार्च 2021 तक शिकारियों ने 6 सांभर, एक जंगली सुअर और एक सेही का शिकार किया।
ठंडे बस्‍ते में स्‍पेशल टाइगर्स प्रोटेक्‍शन फोर्स
बाघों के शिकार के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2012 में स्‍पेशल टाइगर्स प्रोटेक्‍शन फोर्स के गठन के निर्देश दिए थे। जिससे कान्‍हा, पेंच और बांधवगढ़ में बाघों की शिकार को रोका जा सके। इसके लिए सरकार 100 प्रतिशत फंड देने को भी तैयार थी, लेकिन राज्‍य सरकार ने इस पर कोई ध्‍यान नहीं दिया। इतने साल बीत जाने के बाद भी स्‍पेशल टाइगर्स प्रोटेक्‍शन फोर्स ठंडे बस्‍ते में ही है।
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क्‍या कहते हैं प्रदेश के वनमंत्री : मध्यप्रदेश के वनमंत्री कुंवर विजय शाह वेबदुनिया से कहते हैं कि इस मामले पर वे सीएम से मिलेंगे और समीक्षा करेंगे।
"आसाम, त्रिपुरा, कर्नाटक, उत्‍तराखंड, कश्‍मीर समेत कई दूसरे प्रदेशों में वन विभाग को पुलिस की तरह अधिकार प्राप्‍त हैं, हम कोशिश कर रहे हैं कि एमपी में भी ऐसे ही अधिकार मिले। इसके लिए मुख्‍यमंत्री से मिलने वाले हैं, 27 मई को समीक्षा भी करेंगे। वन विभाग के लिए कुछ योजनाएं हैं, जिन पर काम चल रहा है। इन योजनाओं को लागू कर प्रदेश में वन्‍य जीव और वन संपदा को सुरक्षित किया जाएगा।

विजय शाह, वन मंत्री, मध्‍यप्रदेश सरकार"
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क्‍या हैं वन विभाग और वाइल्‍ड लाइफ के जिम्‍मेदारों के तर्क
वन्‍य जीवों के लिए हर संभव कोशिश
वन्‍य जीवों को बचाने के लिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए हम सूचना तंत्र को मजबूत करने में लगे हैं, जिससे समय पर अवैध गतिविधियों की जानकारी मिल सके। वाइल्‍ड लाइफ क्राइम के कई प्रकरण पेंडिंग हैं, जिन्‍हें निपटाने की अपील की गई है। हमारे पास हथियार नहीं होते हैं, होते भी हैं तो उनके इस्‍तेमाल के अधिकार नहीं होते, ऐसे में हम बगैर हथियार के गिरोह से निपटने की रणनीति पर काम करते हैं। लगातार पेट्रोलिंग और निगरानी होती है। इसके साथ ही जहां सागौन, चंदन, वाइल्‍ड लाइफ, जल स्‍त्रोत और स्‍पेशल हैबिटॉट है, वहां ज्‍यादा सतर्क रहते हैं। ऐसे स्‍थानों पर मॉनिटरिंग और गश्‍त जारी रहती है।
जसवीर सिंह चौहान, पीसीसीएफ एंड चीफ वाइल्‍ड लाइफ वॉर्डन, भोपाल
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कुछ छुट-पुट घटनाएं हुई, हम कोशिश कर रहे
हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि हमारी रेंज एरिया में वन्‍य जीवों के शिकार की कोई घटना न हो। इसके लिए लगातार निगरानी और गश्‍त होती है। हालांकि पिछले दिनों कुछ छुटपुट घटनाएं हुई हैं। चोरल और मानपुर रेंज शिकारी गिरोह के सक्रिय होने के लिहाज से सबसे संवेदनशील रेंज है, यहां हम ज्‍यादा सतर्क रहते हैं। जहां तक वन्‍य जीवों की संख्‍या का सवाल है तो लेपर्ड और बाघों की संख्‍या बढ़ी है, हालांकि अभी फिगर्स नहीं आए हैं, अभी वन्‍य जीवों की गणना चल रही है और जुलाई में फिगर्स आएंगे, जिसके बाद आपको जानकारी दे सकेंगे।
नरेंद्र पंडवा, डीएफओ, इंदौर

जिले में कोई संगठित गिरोह सक्रिय नहीं
हमने आम लोगों और किसानों से संवाद बढ़ाया है, उन्‍हें वाइल्‍ड लाइफ और कीमती संपदा के बारे में जागरूक किया। अपना सूचना तंत्र मजबूत किया है। 3 साल में वॉटर रिसोर्स बढ़ाए, जिससे वन्‍यजीव जंगल से बाहर न आए। फिलहाल देवास जिले में ऐसा कोई संगठित गिरोह सक्रिय नहीं है। हमने पूरी तरह से कंट्रोल कर रखा है।
पीएन मिश्रा, डीएफओ, देवास जिला
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हमारी PCCF सक्रिय है
शिकारियों से निपटने के लिए गश्ती बढ़ाना होगी, हालांकि टीम लगातार वॉच करती है, स्‍पेशल टीम इस पर काम करती है। पानी के सोर्सेस बढ़ाने के साथ ही पानी वाले स्‍थानों की सुरक्षा बढ़ानी होगी। वन संरक्षकों को ट्रेनिंग और संसाधन देने होंगे। अभी स्‍टाफ भी कम है, फिर भी हमारी प्रिंसिपल चीफ कन्‍जर्वेटर ऑफ फॉरेस्‍ट (PCCF) की टीम बहुत सर्तकता से काम करती है।
पीके सिंह, एडिशनल पीसीसीएफ, फॉरेस्‍ट वर्किंग प्‍लान, भोपाल

इस पूरे मामले पर पूर्व पुलिस अधिकारी और मध्‍यप्रदेश की कमलनाथ सरकार में मुख्‍यमंत्री के ओएसडी रह चुके प्रवीण कक्‍कड़ ने वेबदुनिया को बताया कि इन घटनाओं के लिए पिछले कुछ सालों की कानून व्‍यवस्‍था कहीं न कहीं जिम्‍मेदार है। वे कहते हैं कि पुलिस सुधार योजनाओं के लागू न होने और लचर कानून-व्यवस्था के कारण ऐसा हाल है। गुना की घटना पर भी उन्‍होंने पुलिस कर्मियों की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की थी। उल्लेखनीय है कि हाल ही में कक्‍कड़ ने पुलिसकर्मियों की सुरक्षा और विभाग में संसाधनों के अभाव को लेकर एक लेख भी लिखा था। उन्‍होंने कहा कि पुलिसकर्मी 24 घंटे ड्यूटी करते हैं, लेकिन बदले में उन्‍हें संसाधन नहीं मिलते। पुलिस सुधार की कई योजनाएं हैं, लेकिन उनका क्रियान्‍वयन नहीं हुआ है।

"जहां तक शिकारी गिरोह का सवाल है तो लंबे समय से कई प्रकरण लंबित हैं, जांच समितियां बन जाती हैं, आयोग बन जाते हैं, सालों यही चलता रहता है और कुछ हो नहीं पाता है। ये घटनाएं इसी का परिणाम है।
प्रवीण कक्‍कड़, पूर्व पुलिस अधिकारी एवं पूर्व ओएसडी, सीएम"

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