- मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता, SC के फैसले को चुनौती देगा AIMPLB
-
मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का SC का फैसला शरीयत के खिलाफ
-
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा- मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस्लामी कानून के खिलाफ
Supreme Court On Alimony: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम महिलाओं का पक्ष लेते हुए एक फैसला दिया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को पति की तरफ से गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए। लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के इस का विरोध किया है। गुजारा भत्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को AIMPLB ने शाह बानो केस जैसा बताया है।
बोर्ड ने अपने अध्यक्ष को इस फैसले को पलटने के लिए सभी संभव कानूनी उपाय तलाशने के लिए अधिकृत किया शीर्ष अदालत ने कहा- धर्म तटस्थ प्रावधान सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
AIMPLB क्यों कर रहा विरोध : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को आजीवन गुजारा भत्ता देने का विरोध कर रहा है। रविवार को AIMPLB की बैठक में 6 प्रस्ताव पारित किए गए। इन प्रस्तावों में सबसे पहला प्रस्ताव गुजारा भत्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को लेकर रहा। AIMPLB ने प्रस्ताव में लिखा गया है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के गुजारा भत्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला शरिया कानून के खिलाफ है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे 39 साल पुराने शाह बाने केस जैसा फैसला बताया है।
SC के फैसले को लेकर पर्सनल लॉ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी कर रहा है। AIMPLB का कहना है कि वो सभी तरह के कानूनी और लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल कर इस फैसले को रोलबैक करने की कोशिश करेगा।
क्या है AIMPLB के प्रस्ताव में: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि देश की सर्वोच्च अदालत का ये फैसला इस्लामिक कानून यानी शरिया के खिलाफ है। इस्लाम में तलाक को अच्छा नहीं माना गया है, लेकिन अगर तमाम कोशिशों के बावजूद साथ रहना मुश्किल हो जाए तो अलग होना ही सही विकल्प होगा। बोर्ड ने प्रस्ताव में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को महिलाओं के हित में बताया है लेकिन इससे मुस्लिम महिलाओं का जीवन बदतर हो जाएगा। बोर्ड का तर्क है कि जब रिश्ता ही नहीं रहा तो तलाकशुदा महिला के भरण पोषण की जिम्मेदारी पुरुषों पर कैसे डाली जा सकती है।
AIMPLB ने अपने प्रस्ताव में इस बात पर जोर दिया है कि भारत में जिस तरह हिंदुओं के लिए हिंदू कोड कानून है उसी तरह मुसलमानों के लिए शरिया एप्लीकेशन एक्ट, 1937 है। साथ ही संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के सभी नागरिकों को अपने मजहब का पालन करने की आजादी देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा था : सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने तेलंगाना के एक मुस्लिम शख्स की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि CrPC की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता लेने का अधिकार हर धर्म की महिलाओं को है। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का उतना ही अधिकार है, जितना अन्य धर्म की महिलाओं को। इस मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि समय आ गया है कि भारतीय पुरुष पत्नी के त्याग को पहचानें। उन्होंने पति-पत्नी का ज्वाइंट अकाउंट खोलने और नियमित वित्तीय सहायता देने पर भी जोर दिया।
क्या है शाह बानो कनेक्शन : गुजारा भत्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को AIMPLB ने शाह बानो केस जैसा बताया है। दरअसल करीब 40 साल पहले इंदौर की 62 साल की महिला शाह बानो को उनके पति ने दूसरी शादी के बाद तलाक दे दिया था जिसके बाद उन्हें गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। शाह बानो की याचिका पर सुनवाई करते हुए इंदौर हाईकोर्ट उनके पति को 179 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का फैसला दिया।
बता दें कि शाह बानो का पति मोहम्मद अहमद खान पेशे से वकील था, उसने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। वर्ष 1985 में कोर्ट ने इस मामले में शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अहमद खान को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। इस फैसले के बाद भी देशभर के मुस्लिम संगठन खासे नाराज़ थे और उन्होंने इस पलटने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पर दबाव बनाया।
राजीव गांधी ने पलटा था फैसला : तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) कानून 1986 लाकर कोर्ट के फैसले को पलट दिया। इस कानून के मुताबिक मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को अपने पूर्व पतियों से वित्तीय सहायता प्राप्त करने का अधिकार केवल इद्दत (90 दिनों) की अवधि तक ही कर दिया गया। बता दें कि 1985 में SC ने इस मामले में शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनके पति अहमद खान को CrPC की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने नया कानून लाकर पलट दिया।
Edited By: Navin Rangiyal