पहले पेट्रोल, फिर एलपीजी गैस, फिर आटा और अब जरूरी दवाइयों के दाम आसमान छू रहे हैं। आम आदमी हो या अस्पताल के पलंग पर अपनी सांसों से लड़ता हुआ बीमार मरीज। इन सब के ऊपर महंगाई का बोझ इतना बढ़ा है कि न सिर्फ उसका कांधा और कमर बल्कि उसका आत्मविश्वास और उम्मीद भी महंगाई के इस बोझ तले दब गई है।
इस साल अप्रैल से ऐसी जरूरी दवाओं की कीमतों में इजाफा हुआ है, जो हर दूसरे और चौथे मरीज की जरुरत है। ऐसे में मरीज या तो बीमारी को बढ़ने दे या अपने खीसे को पूरी तरह से टटोलकर खाली करे और दवाएं खरीदे। हालांकि उसके पास दूसरा विकल्प ही शेष बचा है। इन दवाओं के दामों में इतना इजाफा हुआ है कि अब सिर्फ दवाइयों का बिल ही आपके घर का बजट बिगाड़ने के लिए काफी है।
वेबदुनिया ने स्वास्थ्य जैसे मौलिक अधिकार से जुड़े इस विषय पर पड़ताल की। हमने यह देखा कि अप्रैल से किन- किन जरूरी दवाइयों की कीमतें कितने प्रतिशत तक बढ़ी है। इस बढ़ोतरी से किस तरह की बीमारियों के मरीज प्रभावित होंगे और कौन कौन सी जरूरी दवाओं पर इसका असर होगा। जानिए क्या कहते हैं इंदौर के डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर संचालक।
1 अप्रैल से बुखार, खांसी-जुकाम, शुगर, बीपी, अस्थमा,इन्फेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर और एनीमिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां महंगी हो गई। पैरासिटामॉल, फेनोबार्बिटोन, फिनाइटोइन सोडियम, एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन हाइड्रोक्लोराइड और मेट्रोनिडाजोल जैसी दवाओं की कीमतें भी बढ़ गईं।
दरअसल, सरकार ने शेड्यूल दवाओं के लिए 10 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी की अनुमति दी है। जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में 875 से ज्यादा दवाएं शामिल हैं, जिनमें डायबिटीज के इलाज, कैंसर की दवाओं, हेपेटाइटिस, हाई ब्लड प्रेशर, गुर्दे की बीमारी आदि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीरेट्रोवायरल शामिल हैं।
बता दें कि नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने शेड्यूल दवाओं में 10.9 प्रतिशत दाम बढ़ने की सिफारिश की थी, जिसके बाद सरकार ने अथॉरिटी को दवाओं में 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की अनुमति दी है। इसके बाद अथॉरिटी ने दाम बढ़ोतरी की घोषणा की। दवाइयों पर नई प्राइज हाईक 1 अप्रैल 2022 से लागू हो चुकी है। जिन दवाओं के दाम बढ़ने की घोषणा की गई है, ये सारी दवाइयां जरूरी मेडिसिन की सूची में शामिल हैं।
किन बीमारियों की दवाएं शामिल?
पैरासिटामोल, एंटीबायोटिक्स, एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग्स, कान-नाक और गले की दवाएं, एंटीसेप्टिक्स, पेन किलर, एंटी-वायरस, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल मेडिसिन, एंटी फंगल, कई विटामिन, खून बढ़ाने वाली दवाएं, मिनरल, डायबिटीज के इलाज, कैंसर की दवाओं, हेपेटाइटिस, हाई ब्लड प्रेशर, गुर्दे की बीमारी दवाएं शामिल हैं। इसके अलावा इनमें बुखार, संक्रमण, त्वचा व हृदय रोग, एनीमिया, किडनी रोग, एंटी एलर्जिक, विषरोधी, खून पतला करने, कुष्ठ रोग, टीबी, माइग्रेन, पार्किंसन, डिमेंशिया, साइकोथेरैपी, हार्मोन और पेट के रोग की दवाएं भी शामिल हैं। कुल मिलाकर इनमें 875 तरह की दवाइयां शामिल हैं।
आपको बता दें कि भारत में डायबिटीज और कैंसर जैसी घातक बीमारियों के मरीजों की संख्या बहुत है, ऐसे में कितने बड़े वर्ग पर दाम बढ़ोतरी का असर होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
प्रमुख दवाएं जिनकी कीमत में इजाफा
कैंसर, डायबिटीज, हेपेटाइटिस, हाई ब्लड प्रेशर, गुर्दे की बीमारी, बुखार, संक्रमण, त्वचा, हृदय रोग, एनीमिया, किडनी रोग, एंटी एलर्जिक, विषरोधी, खून पतला, कुष्ठ रोग, टीबी, माइग्रेन, पार्किंसन, डिमेंशिया, साइकोथेरैपी
हार्मोन, पैरासिटामोल, एंटीबायोटिक्स, एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग्स, एंटीसेप्टिक्स, पेन किलर, एंटी-वायरस, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, एंटी फंगल, मिनरल, विटामिन, पेट रोग की दवाएं, खून पतला करने की दवाएं, कान-नाक, गला की दवाएं.
875 दवाओं में ये भी शामिल-
दवा |
कीमत (रुपए) |
एजिथ्रोमाइसिन |
120 |
सिप्रोफ्लोक्सासिन |
41 |
मैट्रोनिडाजोल |
22 |
पैरासिटामोल- (डोलो 650) |
31 |
फेनोबार्बिटोन |
19.02 |
फिनाइटोइन सोडियम |
16.90 |
अनुमान था 2 फीसदी का, बढ़ोतरी हुई 10.9 प्रतिशत23 मार्च को भारत में दवाइयों की कीमतों को नियंत्रित करने वाली सरकारी नियामक एजेंसी नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने कंपनियों से थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के आधार पर कीमतें बढ़ाने के लिए जरूरी दस्तावेज जमा करने को कहा था। तब अनुमान लगाया गया था कि 1 अप्रैल से सभी जरूरी दवाओं के दाम करीब 2 फीसदी तक बढ़ सकते हैं, लेकिन वास्तव में यह इजाफा 10.9 तक पहुंचा।
दरअसल, जो कंपनियां जरूरी दवाओं की नेशनल लिस्ट का हिस्सा नहीं हैं, उन्हें अपनी कीमत सालाना 10 प्रतिशत तक बढ़ाने की अनुमति है। वर्तमान में, दवा मार्केट का करीब 30 प्रतिशत से ज्यादा डायरेक्ट प्राइस कंट्रोल के अधीन है।
पहली बार इतना इजाफा
इंदौर के दवा बाजार में मेडिकल स्टोर संचालक रवि गुप्ता का कहना है कि इस बार जरूरी दवाओं के दामों में जो इजाफा हुआ है, वो पहले कभी नहीं हुआ। हालांकि, दवाओं की कीमतों में हर साल बढ़ोतरी होती है, लेकिन इस हुई बढोतरी अब तक की सबसे ज्यादा है। जहां तक कीमतों में इजाफे का सवाल है तो हर साल 1 से 2 फीसदी ही बढ़ोतरी की जाती थी। साल 2019 में एनपीपीए ने दवाओं की कीमतों में 2 फीसदी और इसके बाद साल 2020 में दवाओं के दाम में 0.5 फीसदी की वृद्धि करने की अनुमति दी थी। अब 2022 में यह वृद्धि 10 प्रतिशत हुई है।
2019 में एनपीपीए ने दवाओं की कीमतों में 2 फीसदी इजाफा
2020 में दवाओं के दाम में 0.5 फीसदी की वृद्धि
2022 में मडिसिन में 10 प्रतिशत इजाफा
कैसे बढ़ते हैं मेडिसिन के दाम?
मूल्य निर्धारण प्राधिकरण की तरफ से ज्ञापन में कहा गया है, जैसा कि आर्थिक सलाहकार (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) द्वारा पुष्टि की गई है, कैलेंडर वर्ष 2016 के दौरान थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में वार्षिक परिवर्तन 2015 की इसी अवधि की तुलना में 1.97186% है
दवा मूल्य नियंत्रण आदेश के अनुसार, दवा कंपनी के WPI में बदलाव के आधार पर नियामक की तरफ से जरूरी दवाओं की कीमत में बदलाव किया जाता है। दवाओं की कीमतें, जो जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय लिस्ट का हिस्सा हैं, सरकार की तरफ से किसी विशेष खंड में सभी दवाओं पर न्यूनतम 1 प्रतिशत की बाजार हिस्सेदारी के साथ साधारण औसत पर दवाओं की अधिकतम कीमतों को सीमित करके सरकार की तरफ से सीधे नियंत्रित किया जाता है।
एक साल तक फिक्स है रेट
दरअसल, रॉ मटेरियल महंगा होने की वजह से नॉन शेड्यूल दवाई जिसका रेट तय करना सरकार के हाथ में नहीं होता वो पहले से ही महंगी हैं। जो शेड्यूल दवाइयां होती हैं इसका रेट सरकार होल सेल प्राइस इंडेक्स के आधार पर तय करती है। शेड्यूल दवाइयों के रेट पर सरकार का कंट्रोल होता है। पिछली साल का होल सेल प्राइस इंडेक्स 10.7 था। इस वजह से इस बार 800 दवाइयों पर 10% से 12% तक की बढ़ोत्तरी की गई। सरकार जो रेट तय करती है वह एक साल तक ही फिक्स रहता है।
कच्चा माल महंगा इसलिए अब...
गैर सूचीबद्ध दवाओं के दाम भी बढ़ाने की मांग
अब मीडिया रिपोर्ट तो यह भी कहती है कि अब फार्मा सेक्टर ने भी गैर सूचीबद्ध (जो दवाएं आवश्यक सूची में शामिल नहीं है) के दामों में इजाफे की मांग की है। फार्मा कंपनियों का तर्क है कि दवाओं के कच्चे माल की कीमत 15 से 150 प्रतिशत तक बढ़ी हैं। सिरप, ओरल ड्रॉप्स, संक्रमण में उपयोगी प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन, सॉल्वेंट के दाम 250 प्रतिशत तक बढ़े। ट्रांसर्पोटेशन, पैकेजिंग, रख-रखाव भी महंगा हुआ है। ऐसे में उन्हें भी अपनी दवाओं के दाम बढ़ाने होंगे। उन्होंने करीब 20 फीसदी तक इजाफा करने की मांग की है।
क्या है (NPPA) कैसे करता है काम?
राष्ट्रीय औषधि उत्पाद मूल्य प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority-NPPA) को 29 अगस्त, 1997 में स्थापित की गई थी। यह फार्मास्युटिकल दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती है। यह औषधि उत्पाद विभाग (DoP), Ministry of Chemical Products and Fertilizers के अधीन स्वतंत्र कार्यालय के रूप में काम करता है।
महंगाई में डिस्काउंट का तड़का
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जब चारों तरफ दवाओं के महंगे होने का बोझ इस कदर बढ़ा तो कुछ ऐसे भी मेडिकल स्टोर हैं, जो मरीजों को दवाइयों में छूट दे रहे हैं, तो वहीं कुछ ऑनलाइन वेबसाइट्स ने भी मरीजों के लिए विकल्प तैयार किए।
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हमने इंदौर के उन मेडिकल स्टोर संचालकों से बात की जो दवाइयों में 15 से 20 प्रतिशत तक की छूट दे रहे हैं।
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इसके साथ ही ऑनलाइन में 1mg, NetMeds, PharmEasy, LifCare, MyraMed जैसी कई वेबसाइट हैं, जो दवाइयां डिस्काउंट रेट पर देती हैं।
कंपनियों के ऑफर्स कैसे कैसे?
फार्मइजी मेडिकल स्टोर पर दवाइयों पर कुल 18 तरह के ऑफर दिए जा रहे हैं। फॉर्मइजी का ऐप डाउनलोड करने वाले नए यूजर्स को 18 प्रतिशत ऑफ, दूसरे सभी यूजर्स को भी 18 प्रतिशत तक ऑफ और एडिशनल ऑफर्स के तहत केशबैक और शॉपिंग वाऊचर्स के इस्तेमाल का भी ऑफर है।
महंगाई की मार में मरीज के पास सस्ती दवाओं के विकल्प
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निजी मेडिकल स्टोर के अलावा सरकारी अस्पतालों के स्टोर में दवाइयां मिलती हैं, मरीजों को चाहिए कि वे सरकारी अस्पताल से सस्ती दवाई लें।
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मेडिकल स्टोर पर भी दो तरह की दवाइयां होती है, एक ब्रांडेड और दूसरी सामान्य यानी (जेनेरिक) दवाई। ऐसे में मरीज सामान्य (जेनेरिक) दवाई ले सकते हैं। जेनेरिक सस्ती पड़ती है।
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सरकार ने सस्ती दवा के लिए हर जिले में जन औषधि केंद्र खोले हैं, जहां से मरीज सस्ती दवाई ले सकते हैं।
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देश में अभी तक लगभग 8 हजार 600 से ज्यादा जनऔषधि केंद्र खोले जा चुके हैं।
क्या कहते हैं डॉक्टर और मेडिकल संचालक?
मेडिसिन की गुणवत्ता भी जरूरी
अगर मेडिसिन की कॉस्ट बढ़ेगी तो उसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कीमत भी बढ़ेगी, साथ ही रॉ मटेरियल भी बाहर से आता है। मरीजों पर बोझ तो बढ़ेगा, हालांकि डॉक्टर्स मरीज को अच्छी दवा लिखते हैं, लेकिन दवाओं की कीमत डॉक्टरों का विषय नहीं है।
डॉ अखिलेश जैन, कॉर्डियोलॉजिस्ट, अपोलो हॉस्पिटल इंदौर
अफोर्डेबल हो दवा के दाम
महंगाई बढ़ रही है, ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी चीजों में इजाफा नहीं होना चाहिए, इससे मरीजों पर बोझ बढ़ेगा। मरीजों को दवाइयां अफोर्डेबल दामों में मिले तो बेहतर होगा, जिससे सभी को स्वास्थ्य सेवाएं मिल सके।
डॉ अरविंद किंगर, ईएनटी विशेषज्ञ, इंदौर
10 प्रतिशत दाम बढ़े
दो साल से से रेट नहीं बढ़े थे, चूंकि रॉ मटेरियल के दाम बढ़े हैं तो सरकार ने दवाइयों के दाम बढ़ाने की अनुमति दी हैं, जो मेडिसिन डीपीसीओ के तहत आती हैं, उनके 10 प्रतिशत तक दाम बढ़े हैं।
-विनय बाकलीवाल, अध्यक्ष, इंदौर केमिस्ट एसोशिएशन
हम रॉ मटेरियल के लिए चीन पर निर्भर
हम रॉ मटेरियल के लिए पूरी तरह से चीन पर निर्भर हैं। 80 प्रतिशत रॉ मटेरियल चीन से आता है, चीन अभी बंद है। इसलिए मेडिकल स्टोर संचालकों पर 3 प्रतिशत का बोझ आया है और अप्रैल से ही नहीं, 2020 से मेडिसिन का हर लॉट महंगा आ रहा है।-पवन खंडेलवाल, मेडिकल स्टोर संचालक, गीता भवन, इंदौर
हमसे ज्यादा कस्टमर पर बढ़ा बोझ
कीमतों का बोझ हमसे ज्यादा कस्टमर पर बढ़ा है। हमारा 20 प्रतिशत मार्जिन तय है, लेकिन कीमतें बढ़ने से मरीज की जेब खाली हो गई है। जो दवा 50 में आती थी, अब वो 75 तक हो गई।– अनुज जैन, मेडिकल स्टोर संचालक, विजय नगर, इंदौर