विश्व पृथ्वी दिवस : हर दिन पृथ्वी दिवस है क्योंकि....

डॉ. संदीप भट्ट
विश्व पृथ्वी दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है। हर साल 22 अप्रैल, वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। यूं तो हर दिन पृथ्वी दिवस है क्योंकि हमारी धरती पर ही जीवन के लिए जरूरी वातावरण मौजूद है। लेकिन पृथ्वी दिवस के दिन हमें अपनी धरती की सेहत के बारे में भी जरूर सोचना चाहिए। आज पर्यावरणीय चुनौतियों ने हमारे इस ग्रह पर पूरे वातावरण को बुरी तरह विषाक्त बना दिया है। वायु हो या जल, हर तरफ प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। वनों का उन्मूलन जिस तेजी से हुआ है उसके चलते पूरी जैव पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं। ऐसे अनेक कारण हैं जिनके चलते हमारी पृथ्वी के लिए वर्तमान परिस्थितियाँ बहुत ही चुनौतीपूर्ण बन चुकी हैं। पृथ्वी पर उपलब्ध इसके संसाधनों के लगातार दोहन से पूरी दुनिया में जबरदस्त पर्यावरण संकट छा चुका है। बीते कुछ दशकों में बढ़ते प्रदूषण ने हमारी धरती की मुश्किलें बहुत हद तक बढ़ा दी हैं। आज ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्या एक गंभीर वैश्विक खतरा बन गया है। इसके चलते प्रकृति के नियमित चक्र भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
 
धरती पर बढ़ते असंतुलन के चलते आज हम देखते हैं कि मौसमों के चक्र प्रभावित हो रहे हैं। दुनिया में किसी कोने में भीषण गर्मी हो रही है तो कहीं भयानक जल प्रलय जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। कहीं रेतीले रेगिस्तान आसपास के इलाकों को निगल रहे हैं तो कहीं समंदर हमारे तटीय शहरों को अपनी गहराइयों में समाते जा रहे हैं। जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेकों प्रजातियां खत्म हो रही हैं या खात्मे की कगार पर हैं। धरती और प्रकृति में आए ये बदलाव अचानक से नहीं आए हैं। इनके पीछे सालों से मानव की प्रकृति और उसके नियमों की अनदेखी जिम्मेदार है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर हमें धरती को रहने लायक बनाए रखना है तो इसके लिए तुरंत ही आगे आना होगा। पृथ्वी दिवस का असल उद्देश्य है कि आम लोग पृथ्वी और इसके पर्यावरण को समझें और इसके संसाधनों की निरंतरता बनाए रखने के लिए साझे प्रयास करें। इसकी आज सचमुच बहुत जरूरत भी महसूस की जा रही है। इसीलिए पृथ्वी दिवस जैसी पहल पूरी दुनिया ने एक साथ शुरू की। 
 
दरअसल धरती की अनमोल प्राकृतिक संपदाओं से ही हमारा जीवन चल सकता है। इसलिए इन संसाधनों को सतत बनाए रखना जरूरी है। पिछली कुछ सदियों में जिस विशाल पैमाने पर औद्योगीकरण और नगरीकरण पूरे विश्व में हुए हैं, उसके चलते धरती पर जबरदस्त दबाव का एक वातावरण बन गया है। प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के से उपजे बाढ़, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, समुद्री तूफान, भूस्खलन आदि दुष्परिणामों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। इन संकटों से हर साल दुनियाभर में लाखों लोग प्रभावित होते हैं। वन और उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं के प्राकृतिक आवास भी इन संकटों के चलते खत्म हो जाते हैं या खतरे में पड़ जाते हैं।वैज्ञानिक अध्ययनों ने साफ कर दिया है कि ये सभी समस्याएं धरती और इसके संसाधनों की तरफ हमारी उदासीनता का नतीजा हैं। अब विश्व समुदाय इस दिशा में सोचने लगा है। दरअसल हमारी धरती के चक्रों और इसके तत्वों में संतुलन कायम रखने के लिए सारे विश्व में जनसमुदाय को इनकी अहमितय समझनी जरूरी भी है। 
मानव समुदाय का जानना और समझना बहुत आवश्यक है कि हमारे आसपास के जिस परिवेश और पर्यावरण में हम रहते हैं, उसमें उपस्थित नदियों,पर्वतों,घाटियों, पठारों, छोटी-छोटी वनस्पतियों, विशाल पेड़ों और समस्त जीव जंतुओं का हमारी धरती पर विशिष्ट महत्व है। धरती के सभी जैविक या अजैविकर संसाधन बहुमूल्य है। ये सीमित हैं और इन्हें मानव तैयार नहीं कर सकता। जल, जंगल, हवा हो या कोई जीव-जंतु, यदि एक भी संसाधन खत्म हो गया तो प्रकृति का पूरा चक्र गड़बड़ा जाएगा। जल संकट को ही लें तो पूरी दुनिया में कहा जाता है कि तीसरा विश्वयुद्ध संभवतया पानी के लिए ही होगा। दुनियाभर में मौजूद जलस्रोतों पर गहरा संकट मंडरा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं और हमेशा बहने वाली नदियों के इकोलाजिकल तंत्र प्रभावित हुए हैं। विश्लेषक मानते हैं कि धरती पर निकट भविष्य में जल संकट की भयंकर तस्वीर सामने आने वाली है। पर बड़ा प्रश्न यह है कि हम अपने रोज के जीवन व्यवहार में पानी बचाने के लिए कितने सजग रहते हैं। क्या हमने जलसंरक्षण को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है।
 
अगर हम हवा याने अपनी धरती पर वायु की सेहत को देखें तो भी हालात गंभीर हैं। हाल ही में विश्व में वायु की स्वच्छता की एक ग्लोबल रिर्पोट बताती है कि किस तरह अनेक  देशों में हवा में प्रदूषण की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। भारत के भी अनेक छोटे या मंझले किस्म के कई शहरों में वायु प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। खेती में बढ़ते उर्वरकों और रसायनों के इस्तेमाल से जानलेवा रसायन सीधे हमारे शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। कुल मिलाकर देखें तो हमारी धरती इस मौजूदा वक्त में कई तरह के संकटों से जूझ रही है। हमें ध्यान रखना होगा कि धरती से ही हम मानवों का अस्तित्व है। यदि धरती खतरे में घिरी है तो मानव प्रजाति भी सुरक्षित नहीं है। हमें धरती को जीवन योग्य बनाए रखने के लिए सतत प्रयासरत रहना होगा। 

उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों को रिसाइकिल करने की तरफ ध्यान देना आवश्यक है। इसके साथ ही यदि हम संसाधनों को रीयूज याने उनका अधिकतम बार इस्तेमाल कर सकें तो इससे भी बहुत फर्क आ सकता है। ऐसे संसाधनों का इस्तेमाल रिड्यूज याने कम करना होगा जो बहुत ही सीमित मात्रा में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के बदले कुछ वैकल्पिक व्यवस्था को तैयार करना होगा। इस बारे में सतत संवाद कर पृथ्वी और इसके पर्यावरण को बचाना होगा। अपनी धरती के पर्यावरण को बचाने के लिए हमें मौजूदा पीढ़ी में प्रकृति से एक स्वाभाविक लगाव पैदा करने का प्रयत्न करना होगा। मौजूदा वक्त में हमें तुरंत ही अपने घरों से धरती को बचाने की शुरूआत करनी होगी।

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