पंकज शुक्ला
तुम्हारे आंगन का पेड़ हूं। कैसे हो? आजकल बहुत मसरूफ रहते हो शायद, इसीलिए न कभी अपनी कहते हो और न कभी हमारी सुनते हो। मान लेता हूं कि सबकुछ ठीक होगा लेकिन यह मानने का मन नहीं कर रहा। आजकल तुम आते-जाते बड़ी चिंता में दिखलाई देते हो? सुना है, राशन और दफ्तर की चिंता के साथ तुम्हें बदलता मौसम भी परेशान करता है।
कल ही तो तुम अपने मित्र से कह रहे थे कि ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के उपाय होने चाहिए। मुझे तो बड़ी हंसी आई तुम पर। तुम अब भी नादान ही रहे, बचपन की तरह! दुनिया बचाने की चिंता कर रहे हो अपने आँगन-मोहल्ले को भुलाए बैठे हो! अब ऐसे क्या देख रहे हो, जैसे मैंने कोई अजूबी बात कह दी हो।
तुम्हें अपने घर-आंगन की खबर ही कहां है? तुम तो यह भी भूल गए कि परसों नुक्कड़ के उस पेड़ को काट दिया गया जिसकी इमलियाँ तुम रोज अपने जेब में भर कर ले जाते थे और उन्हीं के कारण स्कूल में कई दोस्त बने थे तुम्हारे। हां, सड़क बनाने के लिए उस पेड़ को काट दिया। फुर्सत मिले तो देखना, कल तक जहां हरियाली थी आज खाली आसमान नजर आएगा। पिछले साल मुझे भी तो काट डाला था न, घर की छत बढ़ाने के लिए। तुम्हीं बताओ, अब बच्चों को झूले डालने के लिए कहां मिलती हैं हमारी शाखाएं जैसी तुम्हें मिलती थीं।
तुम धरती बचाने की फिक्र करते हो और उन कारणों को भूल जाते हो जिनके कारण धरती का अस्तित्व खतरे में पड़ा। तुम्हीं तो खेतों में रासायनिक खाद का ढेर लगाते हो, जहरीले कीटनाशक डालते हो, वायु को प्रदूषित करते हो, पानी को बर्बाद करते हो, जंगल उजाड़ते हो और वन्य प्राणियों को खत्म करते हो। अब बताओ, ऐसे क्या पृथ्वी बची रहेगी? ऐसे क्या तुम बचे रहोगे?
तुम जानते हो, 3 हजार कागज बनाने के लिए एक पेड़ को काटा जाता है। एक टन कागज की बर्बादी रोक कर तुम 17 पेड़ों को कटने से बचा सकते हो। अपने घर को रोशन करने के लिए 41 सौ किलोवॉट बिजली बच सकती है और 26 हजार गैलन पानी बचाया जा सकता है।
तुम्हारे आंगन में पेड़ होंगे तो उन पर गौरेया घोंसला बनाएंगी...झूले डालने को शाखाएं बची रहेंगी...फल बचे रहेंगे...और तुम्हारे बच्चों का बचपन बचा रहेगा, संस्कृति बची रहेगी और पोषित होती रहेंगी परंपराएं जो पेड़ के साये में पल्लवित होती हैं। पेड़ बचे रहेंगे तो बची रहेगी पृथ्वी...तुम सुन रहे हो ना?