गुजरात के प्रमुख औद्यौगिक क्षेत्र जामनगर में मोदी सरकार जहाँ विकास के मुद्दे को भुनाने की कोशिश में है वहीं कांग्रेस वस्तुत: सीधे मुकाबले में भाजपा के गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में टूटे हुए वादों को केंद्रित करके वहाँ सेंध लगाने की जुगत में है।
11 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सौराष्ट के इस इलाके में चुनाव प्रचार के धीरे-धीरे गति पकड़ने के साथ ही यहाँ हर कोई एक ही बात कर रहा है कि विकास होने या नहीं होने की।
जिले की आठ विधानसभा सीटों में से 2002 के चुनावों के दौरान भाजपा ने पाँच पर जीत हासिल की थी। इस बार भी सत्तारूढ़ दल को आसानी से जीत हासिल होने की उम्मीद है।
निवर्तमान भाजपा विधायक वासुबेन त्रिवेदी ने कहा कि बढ़ी जलापूर्ति, निर्बाध बिजली और बेहतर ग्रामीण आधारभूत संरचना जैसी विकासपरक योजनाओं को हम रेखांकित कर रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस मोदी सरकार द्वारा पूरे नहीं किए गए वादों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
जामनगर (ग्रामीण) से कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. दिनेश भाई परमार ने कहा कि भाजपा नेताओं ने कहा था कि वे नर्मदा का पानी शहर और उसके ग्रामीण इलाकों तक लाएँगे। उन्होंने कंक्रीट रोड और ऐसे स्थानीय किसानों के लिए ज्यादा नौकरियों का भी वादा किया था जिनकी जमीन उद्योग स्थापित करने के लिए अधिग्रहीत कर ली गई थीं। इनमें से किसी को भी पूरा नहीं किया गया।
कांग्रेस को हालाँकि इस बात का अहसास है कि उसने काफी कम अंतर से तीन सीटें जामनगर (ग्रामीण) भनवाड़ और द्वारका जीती थीं। पार्टी जलापूर्ति और बेरोजगारी समेत किसानों के समक्ष आ रही समस्याओं को लेकर मतदाताओं के असंतोष को भुनाने की कोशिश में है।
पिछले चुनावों में हर सीट पर जीत के अंतर को लेकर भाजपा भी चिंतित है। भाजपा के गढ़ माने जाने वाले जोदिया, जामनगर, कालावाड़, जामजोधपुर और खंभालिया में जीत का अंतर पाँच हजार से दो हजार मतों के बीच था। इसलिए सत्तारूढ़ दल का चिंतित होना भी लाजिमी है।