देवगड़ बरिया के रेहमाबाद में बसाई गई पुनर्वास कालोनी में वे लोग रह रहे हैं, जिनकी दुनिया गोधरा ट्रेन नरसंहार के बाद भड़के दंगों की भेंट चढ़ गई थी। गुजरात विधानसभा चुनावों ने उनके घावों को फिर ताजा कर दिया है।
दाहोद जिले के इस विधानसभा क्षेत्र के रेहमाबाद निवासी यूसुफ कहते हैं हमारे लिए चुनाव का क्या मतलब है। हमारे वोट की परवाह किसे है। हमें तो डर है कि कहीं फिर नया हादसा न हो जाए।
अहमदाबाद से करीब 200 किमी दूर बसाई गई इस पुनर्वास कालोनी में रांधिकपुर के करीब 76 मुस्लिम परिवार रह रहे हैं। यह वे लोग हैं जो 2002 में भड़के दंगों के दौरान हत्यारी भीड़ से बचने के लिए अपना सब कुछ पीछे छोड़ आए थे।
फरवरी 2002 में रांधिकपुर की बिल्किस बानो के पेट में पाँच माह का गर्भ था। उसके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया गया और उसके परिवार के 14 सदस्य मौत के घाट उतार दिए गए।
बिल्किस हालाँकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों के लिए एक केंद्र बिंदु बन गई, जिसके हक के लिए वे कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं और दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिश कर रहे हैं।
रेहमाबाद के निवासी इस आशंका में बिल्किस से कोई ताल्लुक नहीं रखते कि कहीं उनके खिलाफ कोई बदले की कार्रवाई न हो जाए।
बिल्किस बानो का मामला तीन साल पहले उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण गुजरात से मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया।
एक अन्य निवासी ने बताया बिल्किस हालाँकि गाँव में ही रहती है लेकिन हममें से कोई भी व्यक्ति उससे या उसके परिवार के सदस्यों से बातचीत नहीं करता।
रांधिकपुर के ग्रामीण कहते हैं कि बिल्किस कालोनी में रहती थी लेकिन फिलहाल वहाँ नहीं है। लेकिन रेहमाबाद के निवासी इस दावे को नहीं मानते।
सामाजिक कार्यकर्ता अमर कहते हैं कि वे यहीं रहती थी, लेकिन कोई यह मानने के लिए तैयार नहीं होगा। लोग इस डर के कारण किसी बाहरी आदमी को उससे मिलने नहीं देना चाहते कि कहीं वे उसे मामले में मुकर जाने के लिए बाध्य न कर दे या उसे कोई नुकसान न पहुँचाए।
कालोनी के निवासी कहते हैं कि उनके गाँव में बिजली और पानी की सुविधा नहीं है लेकिन समीपवर्ती गाँव में यह सुविधा है।
दंगों में अपने बेटे और अन्य संबंधी को खो चुकी एक महिला कहती है आप कौन से विकास के बारे में बात करते हैं। न तो हमारे पास बिजली है न पानी हैं।