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मोक्ष के द्वार की चाबी योगिनी एकादशी, पढ़ें पावन कथा

योगिनी एकादशी के रहस्य: भक्तिपथ की एक प्रेरणादायक कथा

WD Feature Desk
गुरुवार, 19 जून 2025 (14:25 IST)
Yogini ekadashi vrat katha: हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ मास की योगिनी एकादशी 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देती हैं। यह एकादशी हर संकट से मुक्ति दिलाने वाली, उपद्रव, दरिद्रता तथा समस्त पापों का नाश करने वाली मानी गई है। यह इतनी अधिक महत्व की हैं कि यह सभी तरह की मनोकामना पूर्ण करने के साथ-साथ मोक्ष दिलाने में कारगर तथा तथा श्राप से मुक्ति भी दिलाती है। आइए यहां जानते हैं पौराणिक व्रत कथा...ALSO READ: योगिनी एकादशी व्रत के 10 चमत्कारी फायदे
 
कथा : 
 
योगिनी एकादशी व्रत की कथा के अनुसार स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिवभक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। 
 
हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया, लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा। 
 
इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया। हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ उपस्थित हुआ। 
 
राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिव जी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।’
 
कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा। रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिव जी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा। ALSO READ: योगिनी एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा, क्या है इसका महत्व?
 
एक दिन घूमते हुए वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था। हेम माली वहां जाकर उनके पैरों में पड़ गया। उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। हेम माली ने सारा वृत्तांत कह सुनाया। 
 
यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूं। यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे। यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। 
 
इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पुराने स्वरूप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। अतः इस व्रत से प्रभाव से समस्त पापों का नाश होकर अंतिम समय में स्वर्ग प्राप्त होता है तथा हर तरह के श्राप से मुक्ति मिलती है। 
 
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