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वरुथिनी एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा, जानिए व्रत के पारण का समय और कथा

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WD Feature Desk

, रविवार, 20 अप्रैल 2025 (07:25 IST)
Varuthini ekadashi 2025 : वैशाख माह की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार वरूथिनी एकादशी का व्रत 24 अप्रैल 2025 गुरुवार को रखा जाएगा। 25 अप्रैल सुबह 05:46 से 08:23 बजे के बीच व्रत का पारण यानी व्रत को खोलने का समय रहेगा। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय दिन में 11:44 पर रहेगा।
 
वरुथिनी एकादशी पूजन विधि :
1. दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक भोजन करें। 
2. एकादशी का व्रत दो प्रकार से किया जाता है। पहला निर्जला रहकर और दूसरा फलाहार करके। 
3. एकादशी तिथि को सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
4. उसके बाद भगवान विष्णु को अक्षत, दीपक, नैवेद्य, आदि सोलह सामग्री से उनकी विधिवत पूजा करें। 
5. फिर यदि घर के पास ही पीपल का पेड़ हो तो उसकी पूजा भी करें और उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर घी का दीपक जलाएं।
6. घर से दूर है तो तुलसी का पूजन करें। पूजन के दौरान ॐ नमो भगवत वासुदेवाय नम: के मंत्र का जप करते रहें।
7. फिर रात में भी भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना करें। 
8. पूरे दिन समय-समय पर भगवान विष्णु का स्मरण करें रात में पूजा स्थल के समीप जागरण करें। 
9. एकादशी के अगले दिन द्वादशी को व्रत खोलें। यह व्रत पारण मुहुर्त में खोलें। व्रत खोलने के बाद ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन कराएं।
 
वरुथिनी एकादशी व्रत के नियम :
कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा।
शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।।- भविष्योत्तर पुराण
1. इस दिन कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
2. मांस और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए।
3. चने का और कोदों का शाक नहीं खाना चाहिए। साथ ही शहद का सेवन भी निषेध माना गया है।
4. एक ही वक्त भोजन कर सकते हैं दो वक्त नहीं।
5. इस दौरान स्‍त्री संग शयन करना पाप माना गया है।
6. इसके अलावा पान खाना, दातुन करना, नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है।
7. इस दिन जुआ खेलना, क्रोध करना, मिथ्‍या भाषण करना, दूसरे की निंदा करना एवं कुसंगत त्याग देना चाहिए।
Varuthini Ekadashi 2025
वरुथिनी एकादशी व्रत का फल :
1. वरुथिनी एकादशी सौभाग्य देने, सब पापों को नष्ट करने तथा मोक्ष देने वाली है।
2. वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है।
3. कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है।
4. वरूथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
5. शास्त्रों में अन्नदान और कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है।
6. इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है।
7. इस दिन खरबूजा का दान करना चाहिए।
 
वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा : 
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के निवेदन करने पर इस एकादशी व्रत की कथा और महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में रेवा नदी (नर्मदा नदी) के तट पर अत्यन्त दानशील और तपस्वी मान्धाता नामक राजा का राज्य था। दानवीर राजा जब जंगल में तपस्या कर रहा था। उसी समय जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा और साथ ही वह राजा को घसीट कर वन में ले गया। ऐसे में राजा घबराया और तपस्या धर्म का पालन करते हुए उसने क्रोधित होने के बजाय भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
 
तपस्वी राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान श्री हरि वहां प्रकट हुए़ और सुदर्शन चक्र से भालू का वध कर दिया, परंतु तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। इससे राजा मान्धाता बहुत दुखी थे। भगवान श्री हरि विष्णु ने राजा की पीड़ा और दु:ख को समझकर कहा कि पवित्र नगरी मथुरा जाकर तुम मेरी वाराह अवतार के विग्रह की पूजा और वरूथिनी एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से भालू ने तुम्हारा जो पैर काटा है, वह ठीक हो जाएगा। तुम्हारा इस पैर की यह दशा पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुई है। भगवान श्रीहरि विष्णु की आज्ञा मानकर राजा पवित्र पावन नगरी मथुरा पहुंच गए और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ इस व्रत को किया जिसके चलते उनका खोया हुआ पैर उन्हें पुन: प्राप्त हो गया। और वह फिर से सुन्दर अंग वाला हो गया। 

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