पुत्रदा एकादशी कब है, संतान प्राप्ति के लिए शुभ है यह व्रत, जानिए कथा और सरल पूजा विधि

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13 जनवरी 2022 को पुत्रदा एकादशी व्रत है, आइए जानें इस दिन किस कथा के सुनने से मनोवांछित संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति तपस्वी तथा विद्वान होता है, उत्तम संतान पाकर अपार धन-संपत्ति का मालिक बनता है।
 
पुत्रदा एकादशी कथा
 
भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुती होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था। 
 
वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। जिस घर में पुत्र न हो, उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। 
 
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उसके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था। 
 
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया, परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है।
 
इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?
 
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया। 
 
राजा को देखकर मुनियों ने कहा- हे राजन्! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। 
 
राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहा आए हैं? कृपा करके बताइए।
 
मुनि कहने लगे कि हे राजन्! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।
 
यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज, मेरे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। 
 
मुनि बोले- हे राजन्! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। 
 
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और 9 महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ।
 
वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। श्रीकृष्ण बोले- हे राजन्! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
 
पुत्रदा एकादशी पूजा विधि- 
 
* पुत्रदा एकादशी व्रत रखने वालों एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।
 
* दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
 
* अगले दिन सूर्योदय से पहले जागकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्नानादि करके शुद्ध व स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके श्री विष्‍णु का ध्यान करना चाहिए।
 
* अगर संभव हो तो पानी में गंगा जल मिलाकर उस पानी से नहाना चाहिए।
 
* इस पूजा के लिए श्री विष्णु की फोटो के सामने दीया जलाकर व्रत का संकल्प लेकर कलश स्थापना करनी चाहिए।
 
* फिर कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें।
 
* भगवान विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहनाएं।
 
* तत्पश्चात धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्री विष्णु की पूजा-अर्चना तथा आरती करें तथा नैवेद्य और फलों का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें।
 
* श्री विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार पुष्प, ऋतु फल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित करें।
 
* एकादशी की रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए समय व्यतीत करें।
 
* पूरे दिन निराहार रहे तथा सायंकाल कथा सुनने के पश्चात फलाहार करें।
 
* पारण वाले या दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा देकर खुद को बाद पारणा करना चाहिए।
 
* एकादशी के दीपदान करने का बहुत महत्व है। अत: इस दिन दीपदान अवश्य करें।
 

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