Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

पापांकुशा एकादशी की पौराणिक व्रत कथा देती हैं समस्त पापों से मुक्ति, जानिए महत्व और पूजा विधि

हमें फॉलो करें पापांकुशा एकादशी की पौराणिक व्रत कथा देती हैं समस्त पापों से मुक्ति, जानिए महत्व और पूजा विधि
इस वर्ष शनिवार, 16 अक्टूबर 2021 को पापांकुशा एकादशी मनाई जा रही है। यह एकादशी पापों से मुक्ति देकर स्वर्ग प्राप्ति में सहायता कर‍ती है। प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्रि की समाप्ति के बाद और विजयादशमी पर्व के अगले दिन आश्विन शुक्ल एकादशी को 'पापांकुशा एकादशी' मनाई जाती है। इस दिन श्रीहरि विष्णु का पूजन किया जाता है। 
 
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? अब आप कृपा करके इसकी विधि तथा फल कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! पापों का नाश करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। हे राजन! इस दिन मनुष्य को विधिपूर्वक भगवान पद्‍मनाभ की पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी मनुष्य को मनोवांछित फल देकर स्वर्ग को प्राप्त कराने वाली है।
 
मनुष्य को बहुत दिनों तक कठोर तपस्या से जो फल मिलता है, वह फल भगवान गरुड़ध्वज को नमस्कार करने से प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य अज्ञानवश अनेक पाप करते हैं परंतु हरि को नमस्कार करते हैं, वे नरक में नहीं जाते। विष्णु के नाम के कीर्तन मात्र से संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है। जो मनुष्य शार्ङ्‍ग धनुषधारी भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं, उन्हें कभी भी यम यातना भोगनी नहीं पड़ती।

 
जो मनुष्य वैष्णव होकर शिव की और शैव होकर विष्णु की निंदा करते हैं, वे अवश्य नरकवासी होते हैं। सहस्रों वाजपेय और अश्वमेध यज्ञों से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी के व्रत के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होता है। संसार में एकादशी के बराबर कोई पुण्य नहीं। इसके बराबर पवित्र तीनों लोकों में कुछ भी नहीं। इस एकादशी के बराबर कोई व्रत नहीं। जब तक मनुष्य पद्‍मनाभ की एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, तब तक उनकी देह में पाप वास कर सकते हैं।
 
 
यहां पढ़ें पापांकुशा एकादशी की पौराणिक एवं प्रामाणिक व्रत कथा-
 
कथा- इस व्रत की कथा के अनुसार प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में बीता। जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिए को लेने आए और यमदूत ने बहेलिए से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे।
 


यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत रखने के लिए कहा।
 
महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी संचित पाप नष्‍ट हो गए तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
 
महत्व- हे राजेन्द्र! यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर स्त्री तथा अन्न और धन की देने वाली है। एकादशी के व्रत के बराबर गंगा, गया, काशी, कुरुक्षेत्र और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं। हरिवासर तथा एकादशी का व्रत करने और जागरण करने से सहज ही में मनुष्य विष्णु पद को प्राप्त होता है। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के करने वाले दस पीढ़ी मातृ पक्ष, दस पीढ़ी पितृ पक्ष, दस पीढ़ी स्त्री पक्ष तथा दस पीढ़ी मित्र पक्ष का उद्धार कर देते हैं। वे दिव्य देह धारण कर चतुर्भुज रूप हो, पीतांबर पहने और हाथ में माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को जाते हैं।
 
हे नृपोत्तम! बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में इस व्रत को करने से पापी मनुष्य भी दुर्गति को प्राप्त न होकर सद्‍गति को प्राप्त होता है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की इस पापांकुशा एकादशी का व्रत जो मनुष्य करते हैं, वे अंत समय में हरिलोक को प्राप्त होते हैं तथा समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी तथा जूती दान करने से मनुष्य यमराज को नहीं देखता।
 
जो मनुष्य किसी प्रकार के पुण्य कर्म किए बिना जीवन के दिन व्यतीत करता है, वह लोहार की भट्टी की तरह सांस लेता हुआ निर्जीव के समान ही है। निर्धन मनुष्यों को भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए तथा धन वालों को सरोवर, बाग, मकान आदि बनवा कर दान करना चाहिए। ऐसे मनुष्यों को यम का द्वार नहीं देखना पड़ता तथा संसार में दीर्घायु होकर धनाढ्‍य, कुलीन और रोगरहित रहते हैं। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है।

महत्व : विजयदशमी के बाद भगवान राम का अपने भाई भरत से मिलाप इसी एकादशी को हुआ था...
 
भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। चंद्रमा के खराब प्रभाव को रोका जा सकता है। साथ ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है...पाप रूपी हाथी को पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा...
 
कैसे रखें एकादशी का व्रत
पापांकुशा एकादशी व्रत को श्रद्धा एवं भक्ति भाव से करने वाले व्यक्ति पर भगवान विष्णु प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं और उसे सुख, संपत्ति, सौभाग्य और मोक्ष प्रदान करते हैं. पापांकुशा एकादशी व्रत वाले दिन साधक को प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के पश्चात् सबसे पहले श्री हरि विष्णु का ध्यान करके व्रत को पूरा करने का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद ईशान कोण में भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को पीले कपड़े पर रखें और उनका स्नान कराएं. ध्यान रहे कि भगवान विष्णु की पूजा में चावल का प्रयोग न करें. चावल की बजाय गेहूं की ढेरी पर भगवान का कलश रखकर उसमें गंगा जल भरें और उस पर पान के पत्ते और श्रीफल यानी नारियल रखें. कलश में रोली से ओम और स्वास्तिक बनाएं. इसके बाद भगवान विष्णु को विशेष रूप से पीले पुष्प और पीले फल आदि चढ़ाएं. यदि संभव हो तो अजा एकादशी की रात्रि को जागरण करते हुए भगवान का कीर्तन करना चाहिए. व्रत के दूसरे दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें. व्रत वाले दिन साधक को अपने सामर्थ्य के अनुसार पूजा.पाठ, भजन तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए.
 
ध्यान रहे कि इस व्रत को करने वाले साधक को एकादशी के एक दिन पहले रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए. व्रत वाले दिन भी अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए. दूसरे दिन व्रत का पारण करने के बाद ही अन्न ग्रहण करना चाहिए. व्रत वाले दिन भूलकर भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए.
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आज सावधान रहें ये राशियां, किसे मिलेगा कष्ट ,किसे मिलेगी खुशियां 16 October Horoscope