13 जून को निर्जला एकादशी, देती है आयु, आरोग्य और स्वर्ग में स्थान

Webdunia
गुरुवार, 13 जून 2019 को निर्जला एकादशी मनाई जा रही है। भारतीय उपासना में निर्जला एकादशी का बहुत अधिक महात्म्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मास कोई न कोई महान व्रत आता ही रहता है। इसी दौरान ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है तथा द्वादशी को परायण करके व्रत खोला जाता है। भीषण गर्मी के बीच निर्जला व्रत करना बहुत अनूठा है। इसमें दान-पुण्य एवं सेवा भाव का भी बहुत बड़ा महत्व शास्त्रों में बताया गया है। 
 
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है, परंतु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। यह एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और तपस्या से की जाती है। अतः अन्य एकादशियों से इसका महत्व सर्वोपरि है। 
 
इस एकादशी के करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुसार अधिक माससहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशियां न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है। 
 
वृषस्थे मिथुनस्थेऽर्के शुक्ला ह्येकादशी भवेत्‌
ज्येष्ठे मासि प्रयत्रेन सोपाष्या जलवर्जिता।
 
निर्जला व्रत करने वाले को अपवित्र अवस्था में आचमन के सिवा बिंदू मात्र भी जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि किसी प्रकार जल उपयोग में ले लिया जाए तो व्रत भंग हो जाता है। निर्जला एकादशी को संपूर्ण दिन-रात निर्जल व्रत रहकर द्वादशी को प्रातः स्नान करना चाहिए तथा सामर्थ्य के अनुसार वस्तुएं और जलयुक्त कलश का दान करना चाहिए। इसके अनन्तर व्रत का पारायण कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। 
 
कथा का महात्म्य : इस बारे में एक कथा आती है कि पांडवों में भीमसेन शारीरिक शक्ति में सबसे बढ़-चढ़कर थे, उनके उदर में वृक नाम की अग्नि थी इसीलिए उन्हें वृकोदर भी कहा जाता है। वे जन्मजात शक्तिशाली तो थे ही, नागलोक में जाकर वहां के दस कुंडों का रस पी लेने से उनमें दस हजार हाथियों के समान शक्ति हो गई थी। इस रसपान के प्रभाव से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख भी बढ़ गई थी। 
 
सभी पांडव तथा द्रौपदी एकादशियों का व्रत करते थे, परंतु भीम के लिए एकादशी व्रत दुष्कर थे। अतः व्यासजी ने उनसे ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत निर्जल रहते हुए करने को कहा तथा बताया कि इसके प्रभाव से तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा।

व्यासजी के आदेशानुसार भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया। इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। चूंकि यह एकादशी गुरुवार को आ रही है तो इसका महत्व अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि गुरुवार श्रीहरि विष्‍णुजी का दिन है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Shraddha Paksha 2024: पितृ पक्ष में यदि अनुचित जगह पर श्राद्ध कर्म किया तो उसका नहीं मिलेगा फल

गुजरात के 10 प्रमुख धार्मिक स्थलों पर जाना न भूलें

Sukra Gochar : शुक्र का तुला राशि में गोचर, 4 राशियों के जीवन में बढ़ जाएंगी सुख-सुविधाएं

Vastu Tips for Balcony: वास्तु के अनुसार कैसे सजाएं आप अपनी बालकनी

सितंबर 2024 : यह महीना क्या लाया है 12 राशियों के लिए, जानें Monthly Rashifal

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: क्या लाया है आज का दिन आपके लिए, पढ़ें 21 सितंबर का दैनिक भविष्यफल

16 shradh paksha 2024: श्राद्ध पक्ष पितृपक्ष में महाभरणी का है खास महत्व, गया श्राद्ध का मिलता है फल

21 सितंबर 2024 : आपका जन्मदिन

21 सितंबर 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

16 shradh paksha 2024: पितृ पक्ष का पांचवां दिन : जानिए चतुर्थी श्राद्ध तिथि पर क्या करें, क्या न करें

अगला लेख
More