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Sunday, 18 May 2025
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मोक्षदा एकादशी उपवास से पूर्वजों को मिलता है मोक्ष, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पारण का समय और व्रत कथा

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महत्व- इस बार मंगलवार, 14 दिसंबर 2021 को मोक्षदा एकादशी (Mokshada ekadashi) है। यह एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल ग्यारस के दिन मोक्षदायिनी एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इस तिथि को पितरों को मोक्ष दिलाने वाली एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। मान्यतानुसार मार्गशीर्ष एकादशी व्रत रखने से व्रतधारी तथा उनके पितरों के लिए भी मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

इसका धार्मिक महत्व भक्तवत्सल भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को बताया था। इस व्रत का महत्व सुनने मात्र से मनुष्य का यश संसार में फैलने लगता है, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की यह एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने और मोक्ष देने वाली होने के कारण ही इसका नाम मोक्षदा है। इस दिन भगवान श्री विष्णु की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिभाव से पूजन करने से चारों दिशाओं से यश तथा विजय की प्राप्ति होती है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। 
 
मोक्षदा एकादशी का मुहूर्त- mokshada ekadashi muhurat
 
मार्गशीर्ष शुक्ल एकदशी तिथि का प्रारंभ, दिन सोमवार 13 दिसंबर 2021 को रात्रि 9.32 मिनट से हो रहा है और मंगलवार, 14 दिसंबर 2021 को रात्रि 11.35 मिनट पर एकदाशी तिथि समाप्त होगी।  
व्रत पारण टाइम- बुधवार, 15 दिसंबर को प्रातः 07.5 मिनट से प्रातः 09.09 मिनट तक रहेगा। 
 
mokshada ekadashi pooja vidhi मोक्षदा एकादशी व्रत-पूजा विधि- 
 
- एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर व्रत शुरू करने का संकल्प लें।
 
- तत्पश्चात घर के मंदिर की साफ-सफाई करें। 
 
- फिर पूरे घर में गंगा जल का छिड़क दें। 
 
- अब भगवान को गंगा जल से स्नान करवाकर वस्त्र अर्पित करें। 
 
- प्रतिमा को रोली अथवा सिंदूर का टीका लगाएं।
 
- तुलसी के पत्ते और पुष्प चढ़ाएं।
 
- पूजन के शुरुआत में श्री गणेश की आरती करें। 
 
- भगवान श्री विष्णु का विधि-विधान से पूजन करें।
 
- फिर एकादशी की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
 
- शुद्ध देशी घी का दीप प्रज्ज्वलित करें। 
 
- लक्ष्मी देवी के साथ श्रीहरि विष्णु जी की आरती करें। 
 
* भगवान को प्रसाद के रूप में फल और मेवे अर्पित करें। 

mokshada ekadashi 2021 date n time
Ekadashi Worship 2021
 
कथा- Mokshada ekadashi 2021 Katha 
 
गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि- हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। 
 
मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूं? राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सकें। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। 
 
ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे। यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से कुशलता के समाचार लिए। 
 
राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा। तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। 
 
मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नरक से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुंब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया।

इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत चिंतामणी के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला तथा मोक्ष देता है। 

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