Dussehra tradition: 24 अक्टूबर 2023 को दशहरा का पर्व मनाए जाएगा। इस दिन श्रीराम ने रावण का वध किया था जबकि माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इसी की स्मृति में विजयी उत्सव मनाया जाता है। दशहरा का पर्व हिन्दू सनातन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना गया है। आओ जानते हैं कि इस दिन सुबह से लेकर रात तक क्या कार्य करते हैं।
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दशहरा पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर घर को सजाया जाता है।
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इसके बाद पूजा स्थल को साफ करके माता दुर्गा और देवी अपराजिता की पूजा की तैयारी करके उनकी पूजा की जाती है।
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दशहरे पर सुबह वाहन, शस्त्र, राम लक्ष्णम, सीता व हनुमान, माता दुर्गा, अपराजिता और शमी वृक्ष का पूजन किया जाता है।
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पूजा के माता यदि मां दुर्गा की स्थापना और घट स्थापना की गई है तो उसका विसर्जन किया जाता है।
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सैनिक समाज शस्त्र पूजा, पंडित पुरोहित शास्त्र की पूजा, व्यापारिवर्ग बहिखातों की पूजा, कारिगर अपने औजारों की पूजा करते हैं।
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इसके बाद अच्छे पकवान बनाकर खाए जाते हैं और शाम को दशहरा मनाने की तैयारी करते हैं।
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इस दिन यदि वाहन या अन्य कोई वस्तु खरीदने की योजना है तो बगैर मुहूरत देखे भी खरीद सकते हैं।
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इस दिन नए वस्त्र एवं आभूषणों को धारण कर लोग रावण दहन देखने जाते हैं।
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दशहरे के दिन घर से रावण दहन देखने के लिए जाते समय तिलक लगाकर जाएं और रावण दहन का आनंद लें।
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रावण दहन से लौटते समय शमी के पत्ते लें और उन्हें लोगों को देकर दशहरे की बधाई दें। घर लौटने वाले की आरती उतारकर उनका स्वागत किया जाता है।
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रावण दहन के बाद लोग एक-दूसरे के घर जाकर, गले मिलकर, चरण छूकर बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
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दशहरे के दिन सभी स्वर्ण के प्रतीक शमी पत्तों को एक-दूसरे को बांटते हैं।
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इस दिन बच्चों को 'दशहरी' देने का भी प्रचलन हैं। दशहरी के रूप में बच्चों को रुपए, वस्त्र या मिठाई देते हैं।
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इस दिन खासतौर पर गिल्की के पकौड़े और गुलगुले (मीठे पकौड़े यानी भजिए) बनाने का प्रचलन है।
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इन दिन दुर्गा सप्तशति या चंडी पाठ भी किए जाने की परंपरा है।
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दशहरे के दिन पीपल, शमी और बरगद के वृक्ष के नीचे और मंदिर में दीया लगाने की परंपरा भी है।
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इस दिन घर को भी दीए से रोशन करना चाहिए।
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इस दिन अपने भीतर की एक बुराई को भी छोड़ने का संकल्प लेने की परंपरा है।
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इन दिन सारे गिले-शिकवे दूर करके अपनों को गले लगाकर उसने पुन: रिश्ता कायम किए जाने का भी प्रचलन रहा है।