30 सितंबर को विजयादशमी पर्व है। असत्य पर सत्य की, बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। विजयादशमी के ही दिन मर्यादा पुरुषोत्तम् भगवान राम ने रावण का वध किया था। इसी दिन को स्मरण करने लिए प्रतिवर्ष हम विजयादशमी का उत्सव मनाते हैं जिसमें रावण के पुतले का दहन किया जाता है।
रावण के पुतले के दहन के साथ हम यह कल्पना करते हैं कि आज सत्य की असत्य पर जीत हो गई और अच्छाई ने बुराई को समाप्त कर दिया। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो पाता है! सनातन धर्म की यह परम्पराएं केवल आंख मूंद कर इनकी पुनुरुक्ति करने के लिए नहीं हैं। बल्कि यह परम्पराएं तो हमें इनके पीछे छिपे गूढ़ उद्देश्यों को स्मरण रखने एवं उनका अनुपालन करने के लिए बनाई गई हैं।
आज हम ऐसी अनेक सनातनधर्मी परम्पराओं का पालन तो करते हैं किन्तु उनके पीछे छिपी देशना एवं शिक्षा को विस्मृत कर देते हैं। हमारे द्वारा इन सनातनी परम्पराओं का अनुपालन बिल्कुल यन्त्रवत् होता है। विजयादशमी भी ऐसी एक परम्परा है। जिसमें रावण का पुतला दहन किया जाता है। रावण प्रतीक है अहंकार का, रावण प्रतीक है अनैतिकता का, रावण प्रतीक है सामर्थ्य के दुरुपयोग का एवं इन सबसे कहीं अधिक रावण प्रतीक है- ईश्वर से विमुख होने का।
रावण के दस सिर प्रतीक हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि अवगुणों के। रावण इन सारे अवगुणों के मिश्रित स्वरूप का नाम है। रावण के बारे में कहा जाता है कि वह प्रकाण्ड विद्वान था। किन्तु उसकी यह विद्वत्ता भी उसके स्वयं के अन्दर स्थित अवगुण रूपी रावण का वध नहीं कर पाई। तब वह ईश्वर अर्थात् प्रभु श्रीराम के सम्मुख आया। मानसकार ने ईश्वर के बारे में कहा है-"सन्मुख होय जीव मोहि जबहिं। जनम कोटि अघ नासहिं तबहिं॥ इसका आशय है जब जीव मेरे अर्थात् ईश्वर के सम्मुख हो जाता है तब मैं उसके जन्मों-जन्मों के पापों का नाश कर देता हूं।
हम मनुष्यों में और रावण में बहुत अधिक समानता है। यह बात स्वीकारने में असहज लगती है, किन्तु है यह पूर्ण सत्य। हमारी इस पंचमहाभूतों से निर्मित देह में मन रूपी रावण विराजमान है। इस मन रूपी रावण के काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर,वासना,भ्रष्टाचार,अनैतिकता इत्यादि दस सिर हैं। यह मन रूपी रावण भी ईश्वर से विमुख है। जब इस मन रूपी रावण का एक सिर कटता है तो तत्काल उसके स्थान पर दूसरा सिर निर्मित हो जाता है।
ठीक इसी प्रकार हमारी भी एक वासना समाप्त होते ही तत्क्षण दूसरी वासना तैयार हो जाती है। हमारे मन रूपी रावण के वध हेतु हमें भी राम अर्थात् ईश्वर की शरण में जाना ही होगा। जब हम ईश्वर के सम्मुख होंगे तभी हमारे इस मनरूपी रूपी रावण का वध होगा। विजयादशमी हमें इसी सँकल्प के स्मरण कराने का दिन है। आइए हम प्रार्थना करें कि प्रभु श्रीराम हमारे मन स्थित रावण का वध कर हमें अपने श्रीचरणों में स्थान दें। जिस दिन यह होगा उसी दिन हमारे लिए विजयादशमी का पर्व सार्थक होगा।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
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