Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Dussehra 2021: इस बार दशहरा पर बन रहा शुभ संयोग, जानें तिथि, महत्व और पूजा विधि

हमें फॉलो करें Dussehra 2021: इस बार दशहरा पर बन रहा शुभ संयोग, जानें तिथि, महत्व और पूजा विधि
इस बार दशहरा पर बहुत ही शुभ संयोग बन रहे हैं। ग्रह गोचर के हिसाब से भी अच्छा योग है। प्रतिवर्ष आश्‍विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को दशहरा मनाया जाता है। इस बार 15 अक्टूबर 2021 को विजयादशमी अर्थात दशहरे का त्योहार मनाया जाएगा। आओ जानते हैं शुभ संयोग, तिथि, महत्व और पूजा विधि के बारे में।
 
 
शुभ संयोग : इस बार दशमी पर श्रवण नक्षत्र में सर्वार्थसिद्धि योग, अभिभीज मुहूर्त और विजयी मुहूर्त का संयोग बन रहा है। 
 
दशमी तिथि : यह तिथि 14 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को शाम 06 बजकर 52 मिनट से प्रारंभ होकर 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को शाम 06 बजकर 02 मिनट पर समाप्त होगी। अत: विजय दशमी का त्योहार 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।
 
सर्वार्थसिद्धि योग : प्रात: 06:21:33 से 09:16:50 तक रहेगा।
 
ग्रह गोचर : इस दिन चंद्रमा मकर राशि और श्रवण नक्षत्र रहेगा। इस दिन मकर राशि में तीन ग्रहों की युति बनेगी। गुरु, शनि और चंद्रमा का गोचर मकर राशि में होगा।
 
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक। इस मुहूर्त में की गई पूजा से सभी ओर जीत मिलती है।
 
विजय मुहूर्त : दोपहर 2 बजकर 01 मिनट 53 सेकंड से दोपहर 2 बजकर 47 मिनट और 55 सेकंड तक। 
 
अपराह्न मुहूर्त : 1 बजकर 15 मिनट 51 सेकंड से 3 बजकर 33 मिनट और 57 सेकंड तक तक। दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में दशहरा पूजा की जाती है। यह समय सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक रहता है।
 
नोट : स्थानीय पंचांग के अनुसार तिथियों और मुहूर्त के समय में थोड़ी-बहुत घट-बढ़ होती है। 
 
पूजा विधि :
 
1. दशहरा के पूजा अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।
 
2. घर के ईशान कोण में पवित्र और शुभ स्थान पर यह पूजा करें। 
 
3. उस स्थान को स्वछ करके चंदन का लेप करके 8 कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र बनाएं।
 
4. अब संकल्प मंत्र का पाठ करें और देवी अपराजिता से परिवार की सुख और समृद्धि की कामना करें।
 
5. अब अष्टदल चक्र के मध्य में 'अपराजिताय नमः' मंत्र के साथ मां देवी की प्रतिमा विराजमान करके उनका आह्वान करें।
 
6. अब मां जया को दाईं और और विजया को बाईं और विराजमान करके उनके मंत्र क्रियाशक्त्यै नमः और उमायै नमः से उनका आह्वान करें।
 
7. अब तीनों माताओं की शोडषोपचार पूजा करें। इसमें 1. पाद्य 2. अर्घ्य 3. आचमन 4. स्नान 5. वस्त्र 6. आभूषण 7. गन्ध 8. पुष्प 9. धूप 10. दीप 11. नैवेद्य 12. आचमन 13. ताम्बूल 14. स्तवन पाठ 15. तर्पण 16. नमस्कार किया जाता है।
 
8. शोडषोपचार में अपराजिताय नमः, जयायै नमः, और विजयायै नमः मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है।
 
9. उक्त पूजा के बाद श्रीराम और हनुमानजी की पूजा भी करें।
 
10. अंत में माता की आरती उतारकर सभी को प्रसाद बांटें।
 
11. आरती के बाद माता से क्षमा मांगे और कहें कि हे देवी माँ! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार संपूर्ण की है। जाने अनजाने मुझसे कोई गलती हुई हो तो क्षमा करें और जाने से पूर्व मेरी पूजा स्वीकार करें। पूजा संपन्न होने के बाद प्रणाम करें।
 
12. हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम। मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।
 
13. अब सभी कन्याओं की पूजा करके उन्हें भोजन कराएं और दान दक्षिणा देकर उन्हें प्रसन्नता से विदा करें।
 
14. इसके बाद सभी परिवार के सदस्य भोजन करें और अंत में रावण दहन के लिए बाहर जाएं।
 
15. रावण दहन के बाद लौटकर शमी की पूजा करें और सभी को शमी के पत्ते बांटने के बाद बच्चों को दशहरी दें। 
 
16. माता की पूजा के बाद सैनिक या योद्धा लोग शस्त्रों की पूजा करते हैं, पूजा पाठ करने वाले पंडितजन मां सरस्वती और ग्रंथों की पूजा करते हैं। व्यापारी लोग अपने बहीखाते और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अन्य लोग अपने औजारों की पूजा के सात माता पार्वती और काली की पूजा करते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दशहरा पर शमी के पेड़ की पूजा करने से होंगे ये 5 चमत्कारिक लाभ