दिवाली के पांच दिनी उत्सव में पहला दिन धनतेरस का और दूसरा दिन रूप चौदस का रहता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन जल्दी उठकर स्नान करने से रंग-रूप में निखार आ जाता है और नरक के भय से मुक्ति मिलती है। इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। आओ जानते हैं कि किस तरह इस दिन स्नान करें।
1. रूप चौद कार्तिक माह की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन स्नान करके के पूर्व कार्तिक अहोई अष्टमी के दिन एक तांबे के लौटे में जल भरकर रखा जाता है और उसे रूप चौदस के दिन स्नान के जल में मिलाकर स्नान किया जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
2. इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान किया जाता है। यदि आप नदी या किसी जलाशय में स्नान नहीं कर रहे हैं तो घर में ही शुद्ध जल से स्नान करें।
3. ब्रह्म मुहूर्त में या सूर्योदय से पहले उठ जाएं और दिनचर्या से निवृत्त होकर हल्दी, चंदन, बेसन, शहद, केसर और दूध का उबटन करें, फिर स्नान करके पूजन करें। इससे सकारात्मकता बढ़ेगी और शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
4. स्नान के दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करें और उसके बाद औधषीय पौधा अपामार्ग अर्थात चिरचिरा को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाने का प्रचलन है। अर्थात आज के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग की पत्तियां जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है।
5. स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से संपूर्ण वर्ष के पापों का नाश हो जाता है।
6. सिर्फ उबटन और स्नान ही न करें बल्कि इत्र लगाएं और अच्छी तरह से तैयार हों। इस दिन विशेष रूप से सौंदर्य पर ध्यान दें, ताकि साल भर आपका सौंदर्य बरकरार रहे।
7. चतुर्दशी की रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक अवश्य जलाएं, इससे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
8. चतुर्दशी के दिन नए पीले रंग के वस्त्र पहन कर यम का पूजन करें। इससे अकाल मृत्यु एवं नरक में जाने का भय नहीं रहता।