प्रात:काल देवपूजन-
दीपावली के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। स्नान के पश्चात् मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का तोरण बांधे, द्वार के दोनों ओर केले पत्ते लगाएं, तत्पश्चात् देवताओं का आवाहन कर धूप, दीप, नैवेद्य आदि पँचोपचार-विधि से पूजन करें। पूजन में सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करें क्योंकि गणेश जी मां लक्ष्मी के दत्तक-पुत्र हैं।
स्थिर लग्न में करें लक्ष्मी-पूजन-
देवताओं के आवाहन-पूजन के पश्चात् स्थिर लग्न में या किसी शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी का षोडषोपचार-विधि से पूजन करें। मां लक्ष्मी स्वभाव से चंचल हैं इसलिए स्थिर लग्न में उनका पूजन किए जाने से विशेष लाभ होकर स्थाई लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
स्थिर-लग्न-
वृष, सिंह,वृश्चिक व कुंभ स्थिर लग्न हैं। इन लग्नों में लक्ष्मी पूजन करना श्रेयस्कर होता है।
श्रीयन्त्र स्थापना-
षोडषोपचार पूजन के उपरान्त श्रीयन्त्र का पूजन व स्थापना करें। श्रीयन्त्र का केसरयुक्त गौदुग्ध से अभिषेक करें। अभिषेक करते समय श्रीमन्त्र का जाप (श्रीं) करते रहें। श्रीयन्त्र दस महाविद्याओं में से एक मां त्रिपुरसुन्दरी का यन्त्र है। मां त्रिपुरसुन्दरी जिन्हें ललिता देवी भी कहा जाता है ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। दीपावली के दिन स्फ़टिक या पारद श्रीयन्त्र का पूजन व स्थापना करना विशेष लाभकारी रहता है। जिस घर या प्रतिष्ठान में श्रीयन्त्र की स्थापना व नित्य पूजन होती है वहां कभी धन का अभाव नहीं रहता।
श्रीसूक्त का पाठ-
श्रीयन्त्र की पूजा के उपरान्त श्रीसूक्त के यथासामर्थ्य पाठ करें। कम से कम ग्यारह पाठ करें तो अति उत्तम है।
सरस्वती पूजन-
लक्ष्मी-पूजन के उपरान्त विद्या की देवी मां सरस्वती का षोडषोपचार-विधि से पूजन करें। व्यापारीगण अपने बही-खातों पर हल्दी व केसर से स्वास्तिक अंकित करें। तत्पश्चात् लेखनी का पूजन करें।
कुबेर यन्त्र व लक्ष्मीकारक वस्तुओं का पूजन करें-
सरस्वती-पूजन के उपरान्त कुबेर-यन्त्र व लक्ष्मीकारक वस्तुओं जैसे हत्थाजोड़ी, एकाक्षी नारियल, काली हल्दी, नागकेसर, आदि की पूजन कर इन्हें अपनी तिजोरी में स्थापित करें।
दीपमाला प्रज्जवलन
सूर्यास्त के पश्चात् मां लक्ष्मी के समक्ष दीपमाला का प्रज्जवलन करें। घर के मुख्य द्वार पर दीपमाला लगाएं। दीपमाला प्रज्जवलन के समय निम्न मन्त्र का उच्चारण करें।
मन्त्र- "शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुख सम्पदाम।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते॥"
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
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