दीप पर्व कार्तिक मास में आता है इसलिए इसका सर्वोच्च स्थान है। कार्तिक माह के पुष्य नक्षत्र, धन त्रयोदशी, रूप चौदस, महालक्ष्मी पूजन, अन्नकूट, भाईदूज, सूर्य षष्ठी, अक्षय नवमील देव प्रबोधनी एकादशी, वैकुंठ चतुर्दशी प्रमुख हैं। इन सबमें पर्वराज दीपावली है। कार्तिक मास में आने वाले इन शुभ दिनों में हम ऐसे कुछ अनुभूत प्रयोगों की चर्चा करेंगे जिससे व्यक्ति सामर्थ्यवान होकर अपनी कामनाओं की पूर्ति करने में सक्षम होगा।
धन त्रयोदशी या धन्वंतरि जयंती के दिन प्रातःकाल उठकर पवित्र होकर शिवजी के ऊपर गंगा या पवित्र स्थान का जल शुद्ध जल में मिलाएं, साथ में कच्चा दूध व शहद भी मिलाएं। इस पेय पदार्थ से चम्मच से 'जय-जय शंकर' बोलकर 501 चम्मच डालें फिर चढ़े हुए जल से घर का तथा घर के सदस्यों पर डाल करके स्वयं पर छिड़कें ऐसा करने से वर्षभर आरोग्यता रहती है।
रूप चतुर्दशी के दिन पवित्रता से 5 प्रकार के पुष्पों की माला में दूर्वा व बिल्वपत्र लगाकर देवी को अर्पित करें। माल्यार्पण करते समय मौन रखें यह प्रयोग प्रभावकारी होकर यश की वृद्धि करता है।
दीपावली की रात्रि में 11 बजे के बाद एकाग्रता से बैठकर के नेत्र बंद करके ऐसा ध्यान करें कि सामने महालक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हो और आप उनके ऊपर कमल पुष्प चढ़ा रहे हैं। ऐसे कुल 108 मानसिक कमल पुष्प अर्पित करें। ऐसा करने से लक्ष्मी की कृपा होती है। साथ में विष्णु सहस्रनाम या गोपाल सहस्रनाम का पाठ करें तो अति उत्तम है।
अन्नकूट के दिन भोजन बनाकर देवता के निमित्त मंदिर में, पितृ के निमित्त गाय को, क्षेत्रपाल के निमित्त कुत्ते को, ऋषियों के निमित्त ब्राह्मण को, कुल देव के निमित्त पक्षी को, भूतादि के निमित्त भिखारी को दें। साथ में वृक्ष को जल अर्पित करें, सूर्य को अर्घ्य दें, अग्नि में घी अर्पित करें, चींटियों को आटा तथा मछली को आटे की गोली देने से घर में बरकत आती है।
भाईदूज के दिन प्रातः शुद्ध पवित्र होकर रेशमी धागा गुरु व ईष्ट देव का स्मरण करके धूप दीप के बाद उनके दाहिने हाथ में यह डोरा बांधें। डोरा बांधते समय ईश्वर का स्मरण करते रहें। यह प्रयोग वर्षपर्यंत सुरक्षा देता है। सूर्य षष्ठी के दिन सायंकाल तांबे के लोटे में कुमकुम, केसर, लाल फूल डालकर सूर्य की ओर मुंह करके जल दें। जल देकर वहीं सात बार घूमें। यह तेज प्रदायक प्रयोग है
अक्षय नवमी के दिन 21 आंवले एक नारियल देवता के सामने रखकर श्रद्धा-भक्ति से प्रणाम करना चाहिए। चढ़े हुए आंवले व नारियल के साथ कपड़ा व मुद्रा रखकर बहन व ब्राह्मण को दे दें। यह दान आपके पुण्यों को अक्षय प्रदान करता है।
देव प्रबोधनी एकादशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। देवता के जागने के इस दिन से शुभ काम की शुरुआत होती है। संस्कारादि कार्यों की प्रारंभता के लिए श्रेष्ठ दिन में आप सिंदूर व गाय के घी या शुद्ध घी मिलाकर अनार की लकड़ी से यह यंत्र घर में किसी भी पवित्र स्थान पर पूर्व या उत्तर की दीवार पर लिखें।