शराब की बिक्री राज्य सरकारों के लिए कमाई का एक बडा माध्यम होती है, लेकिन अवैध शराब का कारोबार करने वालों से शासन-प्रशासन और पुलिस के लोग जो उगाही करते हैं, वह भी मामूली नहीं होती। इसलिए कोई भी पार्टी सत्ता में रहे, शराब माफिया पर इसका कोई असर नहीं होता। यही वजह है कि अवैध शराब का कारोबार हमेशा धड़ल्ले से चलता रहता है और इसीलिए देश के किसी न किसी कोने से आए दिन जहरीली शराब से लोगों के मरने की खबरें आती रहती हैं।
ताजा घटना उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश की है जहां जहरीली शराब पीने से मरने वालों की संख्या 125 तक पहुंच चुकी है और कई लोगों की स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है। इस हादसे पर दोनों राज्यों की सरकारों ने जैसा रुख अपनाया है, वह बताता है कि इतनी मौतें भी उन्हें अपनी अंतर्रात्मा में झांकने के लिए बाध्य कर सकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
आमतौर पर ऐसे हादसे होने पर जैसा कि हमेशा होता आया है, इस बार भी दोनों राज्यों की सरकारों ने हादसे के बाद संबंधित विभागों के अधिकारियों के खिलाफ कडी कार्रवाई करने की बात कहते हुए अपने को गंभीर दिखाने का प्रयास किया है, लेकिन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ तो यहां भी अपनी आदत के मुताबिक इस हादसे पर दलगत राजनीतिक बयानबाजी करने से बाज नहीं आए।
उन्होंने बगैर किसी आधार के इस हादसे के लिए समाजवादी पार्टी को जिम्मेदार ठहरा दिया। गनीमत है कि उन्होंने या उनके किसी मंत्री ने यह नहीं कहा कि फरवरी के महीने में कच्ची शराब पीने से लोग मरते ही हैं। याद कीजिए, जब गोरखपुर के एक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से कई बच्चों की मौत हो गई थी तो उत्तरप्रदेश सरकार के एक मंत्री ने कहा था कि अगस्त महीने में तो इस तरह की मौतें होती ही रहती हैं।
बहरहाल, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने राज्य पुलिस बल की एक स्पेशल टीम (एसआईटी) के गठन का भी ऐलान किया है, जिसने विभिन्न जिलों में अवैध शराब की बिक्री के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया है। मगर यह अभियान कितने दिन चलेगा और अवैध शराब के कारोबार पर कितनी रोक लगेगी, कोई नहीं जानता। अब तक का अनुभव बताता है कि सांप के गुजर जाने के बाद लकीर पीटने वाली ऐसी कवायदें तभी तक चलती है, जब तक अस्पताल में दम तोडते मरीजों की तस्वीरों और खबरों को मीडिया में जगह मिलती रहती है। अपने देश में गरीब की जान इतनी सस्ती है कि ऐसी घटनाएं सुर्खियों में आकर भी जन मानस में कोई हलचल नहीं पैदा कर पाती और इनका खबर में रहना भी बमुश्किल एक-दो दिन की बात होती है। स्वाभाविक है कि सरकारें भी जहरीली शराब के कहर पर ऐसी रस्मी कवायदों से आगे बढ़ना जरूरी नहीं मानतीं।
यह सचमुच विचित्र है कि पूरी दुनिया शराब को बाकी हजारों चीजों की तरह सिर्फ एक उत्पाद भर मानती है, लेकिन भारत में आम लोगों से कहीं ज्यादा राज्य सरकारें इसे नैतिकतावादी नजरिए से देखने का पाखंड करती हैं। गुजरात और बिहार जैसे राज्यों की सरकारें शराबबंदी के नाम पर पुलिसिया सख्ती से इसका प्रयोग पूरी तरह बंद कर देने की खुशफहमी में पाले हुए हैं, जबकि जिन राज्यों में शराबबंदी नहीं है, वहां ज्यादा से ज्यादा टैक्स के जरिए इसे ज्यादा से ज्यादा महंगी करने का रुझान देखा जा रहा है। नतीजा यह है कि शराब के शौकीन अमीर लोग तो अपना शौक हर कीमत पर पूरा कर लेते हैं, लेकिन गरीबों को उन अवैध भट्टियों का ही आसरा रहता है, जो शराब के नाम पर अक्सर मौत ही बेचती हैं।
जहां शराबबंदी हो, वहां तो अवैध शराब का कारोबार चलना समझ में आता है, लेकिन शराब पर प्रतिबंध न होने के बावजूद ऐसे राज्यों में अवैध शराब के समानांतर तंत्र का अस्तित्व में होना हैरान करता है। आख़िर, देसी शराब बनाने से लेकर ठेकों तक पहुंचाने और वहां 20-25 रुपए से लेकर 40-50 रुपए तक अलग-अलग दामों पर बेचने का काम बडे पैमाने पर होता रहे और पुलिस को और प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी भनक भी न हो, ऐसा तो हो नहीं सकता।
शराब के नाम पर जो कुछ बनाया और बेचा जा रहा है, उसे जहर के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इसे बनाने के लिए इथेनॉल, मिथाइल एल्कोहल समेत ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन और यूरिया, आयोडेक्स जैसी तमाम खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। कहीं-कहीं तो शराब को ज्यादा नशीला बनाने के लिए उसमें सांप और छिपकली का जहर तक मिला दिया जाता है। कई बार अवैध शराब बनाने के लिए डीजल, मोबिल ऑयल, रंग-रोगन के खाली ड्रम और जंग लगे पुराने कडावों का भी इस्तेमाल किया जाता है और गंदे नाले के पानी को इसमें मिलाया जाता है।
उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश जैसी हर घटना के बाद संबंधित राज्य सरकारें अपने पुलिस और आबकारी विभागों के जरिए डंडे के दम पर अवैध शराब की भट्टियों में थोडी-बहुत तोड-फोड करा देती हैं, लेकिन शराब से जुड़ी अपनी समझ पर फिर से सोच-विचार के लिए हरगिज तैयार नहीं होतीं। यही वजह है कि ऐसी त्रासदियों का दोहराव होते रहता है। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)