जासूस पर हमले से तनातनी, शीतयुद्ध की वापसी

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लंदन। ब्रिटेन में एक पूर्व रूसी जासूस पर नर्व एजेंट के हमले के मामले में अभी कोई ठोस सबूत भी नहीं हैं पर पूरा यूरोपीय संघ रूस के खिलाफ खड़ा हो गया है। 20 मार्च की सुबह कूटनीतिक नंबर-प्लेट वाली तीन बसें लंदन स्थित रूसी दूतावास के परिसर से बाहर निकलीं। उनमें रूसी दूतावास के वे राजनयिक बैठे हुए थे, जिन्हें ब्रिटेन ने 14 मार्च को 'अवांछित' घोषित करते हुए एक सप्ताह के भीतर ब्रिटेन छोड़कर चले जाने के लिए कहा था।
 
 
ब्रिटिश सरकार को संदेह ही नहीं वरन पूरा विश्वास है कि दक्षिण-पश्चिम इंग्लैंड के साल्सबरी में 66 वर्षीय सेर्गेई स्क्रीपाल और उनकी 33 वर्षीय बेटी यूलिया स्क्रीपाल को जिस रासायनिक विष का शिकार बनाया गया, उसके पीछे रूस की सरकार का ही हाथ है। यह चार मार्च की बात है और उसी दिन से वे साल्सबरी के एक अस्पताल में बेहोश पड़े हैं और अपनी मृत्यु से लड़ रहे हैं। रूस के 23 राजनयिकों के निष्कासन से नाराज रूस ने भी अपने यहां के 23 ब्रिटिश राजनयिकों को चले जाने का आदेश दिया है।
 
डबल क्रॉस का चक्कर : विदित हो कि सेर्गेई स्क्रीपाल 1980 और 90 वाले दशक में यूरोप में रह कर पहले भूतपूर्व सोवियत संघ की सैनिक गुप्तचर सेवा ‘जीआरयू’के लिए और सोवियत संघ के बिखर जाने के बाद उसके उत्तराधिकारी रूस के लिए जासूसी किया करते थे। बाद में शायद 1999 या 2000 में उन्होंने रूसी गुप्तचर सेवा से नाता तोड़ लिया और रूस में ही रह कर ब्रिटेन की वैदेशिक गुप्तचर सेवा 'एमआई6' के लिए जासूसी करने लगे।
 
2004 में सेर्गेई स्क्रीपाल को अचानक गिरफ्तार कर लिया गया। कहा जाता है कि उन्होंने 'एमआई6' को उन एजेंटों का भेद बता दिया है जो 1990 के बाद से यूरोप में रूस के लिए काम कर रहे थे। यह भी कि इस 'देशद्रोह' के लिए उन्हें एक लाख डॉलर मिले हैं। 2006 में उन्हें 13 साल की सश्रम सजा दी गई थी, लेकिन अमेरिका के साथ जासूसों की अदला-बदली के एक समझौते अंतर्गत 2010 में उनको रिहा कर दिया गया।
 
बीएमडब्ल्यू कार की तलाश : रिहाई और अदला-बदली के बाद से ही सेर्गेई स्क्रीपाल ‘एमआई6' की छत्रछाया में ब्रिटेन के छोटे-से शहर साल्सबरी में रह रहे हैं। बेटी यूलिया स्नायविक विष (नर्व एजेंट) से मारने के प्रयास के एक ही दिन पहले पिता से मिलने मॉस्को से आई थीं। माना जा रहा है कि विष या तो यूलिया के ही सूटकेस में छिपाया गया था या फिर उस बीएमडब्ल्यू कार में, जिसमें चार मार्च को दुर्भाग्यपूर्ण दिन में दोनों को बैठे देखा गया था। ब्रिटेन में इस कार को तलाशा जा रहा है।
 
पिता-पुत्री जिस विष के कारण मौत से लड़ रहे हैं, वह युद्ध में इस्तेमाल होने वाले और रूसी वैज्ञानिकों द्वारा 1970 से 1990 के बीच विकसित ‘नोविचोक’ वर्ग का एक बहुत ही जहरीला और प्राणघातक रासायनिक विष है। ‘नोविचोक’ वर्ग के विष त्वचा और सांस के रास्ते से शरीर में पहुंच कर तंत्रिकातंत्र (स्नायुतंत्र/ नर्वस सिस्टम) को इस तरह क्षतिग्रस्त कर देते हैं कि हृदय सहित शरीर की सभी मांसपेशियों में सिकुड़न पैदा होने लगती है और प्रभावित व्यक्ति की शरीर अकड़ने, दम घुटने से मौत होने में देर नहीं लगती।
 
ब्रिटिश विदेश मंत्री की नाराजगी : जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका शुरू से ही रूस पर लगाए जा रहे बिटिश सरकार के आरोपों का समर्थन कर रहे हैं। 19 मार्च को ब्रसेल्स में हुए यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन ने भी ब्रिटेन के साथ एकजुटता दिखाते हुए उसके आरोपों का समर्थन किया। इस सम्मेलन में ब्रिटिश विदेशमंत्री बोरिस जॉन्सन ने रूसी खंडनों को सरासर बेतुका बताया। उनका कहना है कि रूसी ‘राई बराबर सच्चाई को झूठों के पहाड़ तले छिपाने में लगे हैं।’
 
लेकिन यूरोपीय संघ के विदेशमंत्रियों के सम्मेलन के साझे बयान में यह नहीं कहा गया कि ब्रिटेन की तरह यूरोपीय संघ भी साल्सबरी वाली घटना के पीछे, रूस का ही हाथ देखता है। इसकी बजाय कहा गया है कि संघ ब्रिटेन के मत को 'अत्यंत गंभीरता' के साथ ले रहा है। बयान में यह भी नहीं कहा गया कि ब्रिटेन की तरह यूरोपीय संघ भी रूस के विरुद्ध दंडात्मक कदम उठाने की सोच रहा है।  
 
शिखर सम्मेलन की रूस को धमकी : यूरोपीय संघ के विदेशमंत्रियों के इस साझे बयान के विपरीत संघ के सभी 28 देशों के शासनाध्यक्षों ने, 22 मार्च की रात ब्रसेल्स में हुए अपने विशेष शिखर सम्मेलन में रूस को कड़े शब्दों में कोसना-धिक्कारना अधिक ठीक समझा। यूरोपीय संघ की सबसे अहम आवाज जर्मन चांसलर अंगेला मर्केल ने भी इसी बात को दोहराया कि ‘इस बारे में हमने लंबी बहस की, लेकिन अंत में एकमत से माना कि सारी संभावना यही है कि इस ज़हरीले हमले का संबंध रूस से ही है।’
 
पुतिन को कड़ा संदेश : शिखर सम्मेलन वाली विज्ञप्ति की भाषा, विदेशमंत्रियों वाले सम्मेलन की भाषा की अपेक्षा काफी कठोर है। इस मामले पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे, जर्मन चांसलर अंगेला मेर्कल और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों के बीच अलग से एक बैठक हुई थी। इसमें तय हुआ कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इस बार एक कड़ा संदेश मिलना चाहिए। 
 
इस कड़े संदेश के पहले कदम के तौर पर मॉस्को में यूरोपीय संघ के राजदूत को तुरंत वापस बुला लिया गया। संभव है कि अगले दिनों में यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी अपने-अपने राजदूतों को वापस बुलाना शुरू कर दें। चांसलर मेर्कल ने पत्रकारों से कहा, 'हमने तय कर लिया है कि इस भाषा के साथ और आवश्यकतानुसार दूसरे कदमों के साथ भी हम मिलकर जवाब देंगे।'
 
यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन से तीन ही दिन पहले हुए विदेशमंत्री सम्मेलन में ग्रीस (यूनान) की यह बात मान ली गई थी कि रूस के विरुद्ध अभी से कोई कदम उठाना जल्दबाज़ी होगी। पहले प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए कि नीदरलैंड (हॉलैंड) में हेग स्थित 'रासायनिक अस्त्र प्रतिबंधक संगठन' (ओपीसीडब्ल्यू) के निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ साल्सबरी में प्रयुक्त विष की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में क्या कहते हैं। लेकिन यूरोपीय संघ के शासना प्रमुखों ने निष्पक्ष विशेषज्ञों की रिपोर्ट की कोई परवाह नहीं की।
 
निरीक्षकों की टीम ब्रिटेन में : इस संगठन का काम रासायनिक किस्म के हथियारों पर लगे प्रतिबंधों के अमल पर नजर रखना और जरूरत पड़ने पर अपनी निगरानी में उन्हें नष्ट करना भी है। उसके निरीक्षकों की एक टीम, ब्रिटेन के अनुरोध पर, साल्सबरी में इस्तेमाल विष के नमूने लेने के लिए सोमवार, 19 मार्च को वहां पहुंची थी। इन नमूनों को अलग-अलग देशों की प्रयोगशालाओं में भेज कर उनकी जांच-परख की जाएगी। अनुमान है कि कोई परिणाम आने में कम से कम दो सप्ताह का समय लग सकता है। लेकिन ब्रिटिश विदेश मंत्री बोरिस जॉन्सन का दावा है कि उनकी सरकार के पास ऐसे प्रमाण हैं जिनसे सिद्ध होता है कि रूस पिछले दस वर्षों से ‘नोविचोक’ बना रहा है और आम लोगों को मारने के लिए उसका इस्तेमाल भी करता है।
 
लेकिन उजबेकिस्तान में ब्रिटेन के ही एक पिछले राजदूत क्रेग मरे जैसे लोगों का कहना है कि रूस के पास ‘नोविचोक’ होने की तुलना इराक के पास जनसंहारक हथियार होने के अमेरिका के उस झूठ जैसी है, जिसके बहाने से अमेरिका ने 2003 में इराक पर हमला बोल दिया था। मरे ने एक लेख ‘नोविचोक कथा वास्तव में एक और इराक़ी जनसंहारक अस्त्र-कांड है’ (द नोविचोक स्टोरी इज इन्डीड एनअदर इराकी डब्लयूएमडी स्कैम) में यह लिखा है। उन्होंने यह भी लिखा है कि ब्रिटिश सरकार की ‘रूसी नोविचोक कथा’ उस जैव-रासायनिक अस्त्र सुविधा (प्रयोगशाला) से आई है, जो साल्सबरी से कुछ ही किलोमीटर दूर पोर्टन डाउन में स्थित है।
 
ऐसे में ‘नोविचोक’ के अस्तित्व को लेकर ही भ्रम है जिसे किसी ऐसे कारगर ‘नर्व एजेंट’ (स्नायु-विष) का रूप दिया गया हो। एक असंतुष्ट रसायनशास्त्री वी मिर्जानायेव का कहना है कि जिस किसी के पास सही रासायनिक संयंत्र हों, वह ‘नोविचोक’ के लिए आवश्यक यौगिक भी बना सकता है। यदि ऐसा है तो जरूरी नहीं कि ब्रिटेन में रूस के दोहरे जासूस और उनकी बेटी को मारने के लिए जिस रासायनिक विष का प्रयोग किया गया, वह रूस में ही बना हो या वहीं से आया हो। वह कहीं भी बना हो सकता है। ब्रिटेन में भी!
 
जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने ब्रिटिश संसद में बोलते हुए रूस को 24 घंटे के अन्दर अपने पास ‘नोविचोक’होने के बारे में जवाब देने का अल्टीमेटम दिया, तब रूसी विदेश मंत्री ने प्रस्ताव रखा था कि ब्रिटेन के पास यदि सचमुच ‘नोविचोक’ के कथित नमूने हैं, तो वह उनमें से कुछ को जांच-परख के लिए रूस को भी दे। रूस ‘ओपीसीडब्ल्यू’ के स्तर पर भी ब्रिटेन के साथ सहयोग करने को तैयार है। लेकिन, ब्रिटेन ने रूसी अनुरोध का कोई उत्तर नहीं दिया।
 
‘नोविचोक’ कहीं भी हो सकता है : 2004 से 2006 तक संयुक्त राष्ट्र के जैविक अस्त्र निरोधक संगठन के एक निरीक्षक और 2009 से 2017 जर्मन संसद के सांसद रहे यान फान आकन ने भी इस सिलसिले में एक अहम बात कही है। उन्होंने कहा कि नोविचोक यदि अस्तित्व में है तो वह आज के रूस ही नहीं, भूतपूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे कुछ देशों में भी हो सकता है, अमेरिका के पास भी हो सकता है....मैं तो कहूंगा कि जर्मन सेना ने भी कम से कम एक बार उसकी कुछ मात्रा यदि नहीं बनाई है, तो वह अपना काम ठीक से नहीं कर रही है।’
 
फान आकन के मुताबिक जर्मन सेना को भी यह तो मालूम होना ही चाहिए कि उसे भी कभी ‘नोविचोक’ से बचाव करने की जरूरत पड़ सकती है। उनका कहना था कि रूस अपने दोहरे जासूस स्क्रीपाल को यदि मारना ही चाहता था, तो उसके लिए यह बहुत बुद्धिमत्ता की बात नहीं होती कि वह ‘सारीन’ जैसे किसी दूसरे रासायनिक हथियार के बदले ‘नोविचोक’ का उपयोग करता।
 
कहना गलत नहीं होगा कि सेर्गेई स्क्रिपाल और उनकी बेटी यूलिया को रासायनिक विष से मार डालने के प्रयास के पीछे रूस का या जिस किसी देश, गिरोह अथवा व्यक्ति का हाथ होगा, उसे सारे संदेहों से परे प्रमाणित कर सकना बहुत ही टेढ़ी खीर सिद्ध होगा। लेकिन रूस के खिलाफ एक हुए अमेरिका, ब्रिटेन समेत 18 देशों ने 100 रूसी राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है। ब्रिटेन पहले ही 23 रूसी राजनयिकों को निष्कासित कर चुका है।
 
विदित हो कि निष्कासित राजनयिकों पर खुफिया अधिकारी के रूप में काम करने का आरोप है। जबकि रूस के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को संकल्प किया कि अमेरिका और कनाडा द्वारा उसके राजनयिकों के निष्कासन का वह जवाब देगा। अमेरिका के इस फैसले ने शीत युद्ध की यादें ताजा कर दी हैं। निष्कासित राजनयिकों में से लगभग 12 संयुक्त राष्ट्र में रूस के स्थायी मिशन में पदस्थ हैं।
 
रूस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि रूसी राजनयिकों को निष्कासित करने के यूरोपीय संघ और नाटो के कुछ देशों के फैसले पर हम निर्णयात्मक विरोध जताते हैं। मास्को ने इसे ‘उकसावे वाला कदम' बताया। मास्को ने संकल्प लिया, ‘इस समूह के देशों के इस गैर-मित्रवत कदम को यूं ही नहीं जाने दिया जाएगा, हम इसका जवाब देंगे।' उन्होंने आरोप लगाया कि जिन देशों ने निष्कासन का फैसला लिया है उन्होंने ऐसा ब्रिटेन के अधिकारियों को खुश करने के लिए किया है और ‘जो हुआ उसकी परिस्थितियों को देखने की जहमत नहीं उठाई।’
 
इस तरह दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया अतिरंजित और पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, जिसके चलते किसी समुचित और तर्कसंगत निष्कर्ष पर पहुंच पाना संभव नहीं है।
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