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अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद का इतिहास

हमें फॉलो करें अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद का इतिहास

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 29 अक्टूबर 2018 (11:22 IST)
भगवान राम की नगरी अयोध्या हजारों महापुरुषों की कर्मभूमि रही है। यह पवित्र भूमि हिन्दुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां पर भगवान राम का जन्म हुआ था। यह राम जन्मभूमि है।
 
 
राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। आधुनिक शोधानुसार भगवान राम का जन्म आज से 7122 वर्ष पूर्व अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। पौराणिक शास्त्रों के जानकारों के अनुसार राम का जन्म आज से लगभग 9,000 वर्ष (7323 ईसा पूर्व) हुआ था। चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
 
 
इतिहासकारों के अनुसार 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। बाबर एक तुर्क था। उसने बर्बर तरीके से हिन्दुओं का कत्लेआम कर अपनी सत्ता कायम की थी। मंदिर तोड़ते वक्त 10 हजार से ज्यादा हिन्दू उसकी रक्षा में मारे गए थे।
 
 
यह विवाद 1949 का नहीं है जबकि बाबरी ढांचे के गुम्बद तले कुछ लोगों ने मूर्ति स्थापित कर दी थी। यह विवाद तब का (1992) का भी नहीं है जबकि भारी भीड़ ने विव‍ादित ढांचा ध्वस्त कर दिया था। वस्तुत: यह विवाद अब से 486 वर्ष पूर्व (1528 ई) का है, जब एक मंदिर को तोड़कर बाबरी ढांचे का निर्माण कराया गया। दूसरे शब्दों में विवाद का मूल 1528 की घटना में है, जबकि 10 हजार से ज्यादा हिन्दू शहिद हो गए थे।
 
 
फैसला वस्तुतः 1528 की घटना का होना है न कि 1949 या 1992 की घटना का। 1949 और 1992 की घटनाएं 1528 की घटना से उत्पन्न हुए शताब्दियों के संघर्ष के बीच घटी तमाम घटनाओं के बीच की मात्र दो घटनाएं हैं, क्योंकि विवाद अभी भी समाप्त नहीं हुआ है और फैसला कोर्ट को करना है।
 
 
अयोध्या विवाद केवल जमीन के किसी एक टुकड़े के मालिकाना हक का विवाद नहीं है। सच कहें तो यह हिन्दू-मुसलमानों के बीच का कोई मजहबी विवाद भी नहीं है और यह ऐसा विवाद भी नहीं है, जो 1949, 1984 या 1992 में पैदा हुआ हो। यह 1528 का विवाद है, जब एक विदेशी आक्रांता ने इस देश की सांस्कृतिक अस्मिता व अभिमान को कुचलने के लिए उसके सबसे बड़े प्रतीक को ध्वस्त करके उसकी जगह अपनी विजेता शक्ति का प्रतीक ढांचा कायम किया।
 
 
भारत सरकार को यह याद होना चाहिए कि वर्ष 1994 में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में शपथपूर्वक कहा था कि यदि ‘यह सिद्ध होता है कि विवादित स्थल पर 1528 के पूर्व कोई हिन्दू उपासना स्थल अथवा हिन्दू भवन था, तो भारत सरकार हिन्दू भावनाओं के अनुरूप कार्य करेगी’ इसी प्रकार तत्कालीन मुस्लिम नेतृत्व ने भारत सरकार को वचन दिया था कि ऐसा सिद्ध हो जाने पर मुस्लिम समाज स्वेच्छा से यह स्थान हिन्दू समाज को सौंप देगा।

 
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पूर्ण पीठ द्वारा घोषित निर्णय से स्पष्ट हो गया है कि वह स्थान ही श्रीराम जन्मभूमि है, जहां आज रामलला विराजमान हैं तथा 1528 के पूर्व इस स्थान पर एक हिन्दू मंदिर था जिसे तोड़कर उसी के मलबे से तीन गुम्बदों वाला वह ढांचा निर्माण किया गया था।
 

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