Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

ओशो की बातें धर्म और समाज विरोधी हैं?

हमें फॉलो करें Osho Rajneesh
जन्मदिन (11 दिसम्बर) पर विशेष
चन्द्र मोहन जैन ऊर्फ ओशो रजनीश खुद को भगवान कहते थे। दुनिया उन्हें धर्म विरोधी और सेक्स गुरु कहती है। 20वीं सदी के महान विचारक तथा आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश आज भी प्रासंगिक है तो उनके चाहने और उनके विरोधियों के कारण। कहते हैं कि अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करवाकर जेल में डाल दिया था और बाद में अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत उनको जहर देकर छोड़ दिया गया।
 
11 दिसम्बर, 1931 को कुचवाड़ा गांव, बरेली तहसील, जिला रायसेन, राज्य मध्यप्रदेश, देश भारत में उनका जन्म हुआ था। अपने 11 भाई बहनों में वे सबसे बड़े थे। उनकी माता का नाम सरस्वती जैन और पिता का नाम बाबूलाल जैन था।

उनके पिता तारणपंथी दिगंबर जैन थे। उन्होंने ओशो को अपने ननिहाल में छोड़ दिया था। ननिहाल में उनके नाना और नानी ने उन्हें पालापोसा। ओशो जब 7 वर्ष की उम्र के थे तब उनके नाना का निधन हो गया। उसके बाद का जीवन गाडरवाडा और जबलपुर में बीता।
 
 
ओशो ने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिए। उनके प्रवचन पुस्तकों, ऑडियो कैसेट तथा वीडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। जब कोई व्यक्ति ओशो की किताबें पढ़ता या प्रवचनों की कैसेट सुनता है तो लोग सलाह देते हैं कि 'पढ़ो, पर उनकी बातें मानना मत। वे जैसा कहें, वैसा करना मत।' दरअसल, यह ऐसी बात हुई कि आप लोगों से कहें कि 'गुड़ तो खा लें लेकिन गुलगुले से परहेज करें।'
 
 
ओशो के ऐसे कई विचार आपको उनके प्रवचनों में मिल जाएंगे जो कि धर्म, समाज और देश विरोधी माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दू धर्म और देवी देवताओं की खूब जमकर आलोचना की है। हालांकि उन्होंने बौद्ध धर्म को छोड़कर सभी धर्मों की खूब जमकर आलोचना की है। इसका मतलब यह कि वे बौद्ध धर्म के फालोअर थे? आओ जानते हैं कि उन्हीं में से कुछ, मात्र रत्तीभर विचार ओशो के...
 

#
कुछ कहते हैं कि ओशो की बातें समाज विरोधी है। वे परिवार, समाज, देश, धर्म और नैतिकता में विश्वास नहीं करते हैं। उनके प्रवचनों से ऐसे कई उदाहण प्रस्तुत किए जा सकते हैं जिसमें उन्होंने, उक्त सभी विषयों का मखौल उड़ाया है। वे चाहते हैं कि व्यक्ति अराजक और अनैतिक जीवन जीए ताकी उसको खुद समझ में आए की व्यवस्थित और नैतिक जीवन क्या होता है...लेकिन यहां कहना होगा कि यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो फिर उसके सही रास्ते पर लौटने की संभावना कितने प्रतिशत होगी?

#
यदि कोई व्यक्ति शराब पीना शुरू करे और फिर उसे लत लग जाए तो वह कब सही रास्ते पर आएगा? चलो आ भी गया तो तब तक उसके जीवन का महत्वपूर्ण समय खत्म हो जाएगा। फिर तो जिंदगी एक समझौता बनकर ही रहने वाली है। सेक्स की लत हो गई तो क्या वे छूटेगी? अधिक सेक्स करने के बाद भी व्यक्ति की सेक्स की आदत नहीं जाती। कुछ लोग कहते हैं कि ओशो कैसे धर्म विरोधी हैं जबकि उन्होंने तो सभी धर्मों के पाखंड को उजागर किया था। वे तो धर्मों द्वारा किए जा रहे पाखंड और आतंक के खिलाफ है न की धर्म के। उन्होंने तो धर्म को तो पहली दफे सही रूप से परिभाषित कर प्रत्येक धर्म के क्रीम को अपने प्रवचनों में जगह दी है।

#
ओशो सिर्फ बौद्ध धर्म के समर्थक हैं:-
*यदि आपने ओशो को सुना और पढ़ा है तो आपको एक बात यह समझ में आ जाएगी कि वे अपने हर प्रवचनों में भगवान बुद्ध को जरूर कोड करते हैं। वे कुछ भी कहें लेकिन वे आपके मन को बुद्ध की ओर बड़े ही सुंदर तरीके से मोड़ने में सक्षम हैं। उनकी नजर में गौतम बुध से बड़कर पहले कोई न तो हुआ और न ही होगा। ओशो बुद्ध के प्रेमी हैं यह बात उन्होंने अपने कई प्रवचनों में स्पष्ट कर दी है। वे कहते भी हैं कि गौतम बुद्ध इस संसार का अंतिम सत्य और दर्शन है। उनका ही धर्म अंतिम धर्म है।

 
*ओशो ने आदि शंकराचार्य का बहुत जगह विरोध किया। ओशो के अनुसार शंकराचार्य ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनके कारण इस देश में बौद्ध धर्म नहीं फैल पाया।...अब यदि आप शंकराचार्य के जीवन को पढ़ेंगे तो मात्र 32 साल की उम्र में उन्होंने देह त्याग दी थी। 11 वर्ष की उम्र में घर छोड़ा था। 32 में से 11 घटा दें तो 21 वर्ष उन्होंने धर्म की सेवा की। इस दौरान वे संपूर्ण भारत में पैदल ही भ्रमण करते रहे। पैदल भ्रमण में कितना समय लगता है आप अनुमान लगा सकते हैं। मतलब जिंदगी का आधा समय पैदल भ्रमण में ही निकल गया। 

भ्रमर के दौरान वे चतुर्मास में जहां भी रुके वहां उन्होंने वैदिक सनातन धर्म के बारे में प्रवचन उन लोगों को ही दिए जो हिन्दू ही थे। उन्होंने किसी बौद्ध राजा या अनुयायियों को धर्मान्तरित करने का काम नहीं किया। 21 वर्ष में उन्होंने दसनामी संप्रदाय का गठन किया, चार मठों के पास अपने चार पीठ स्थापित किए थे बस। संभवत: ओशो को इतिहास की जानकारी नहीं होगी इसलिए वे ऐसा बोल गए होंगे। बौद्ध धर्म इस देश से कैसे नष्ट हो गया इसके लिए आपको मुगलों का इतिहास पढ़ना चाहिए। तक्षशिला और नालंदा के विद्यालय किसी शंकराचार्य के शिष्य ने नहीं तोड़े थे। तक्षशिला में 10 हजार भिक्षुओं का कत्लेआम किसी शंकराचार्य के शिष्यों ने नहीं किया था।

#
हिन्दू धर्म के विरोधी हैं ओशो:-
*ओशो ने हिन्दुओं की संन्यास पद्धति और संन्यासियों का खूब मजाक उड़ाया। उन्होंने अपने 'नव-संन्यास' की नींव ही इस आधार पर रखी कि व्यक्ति को कहीं हिमालय, जंगल, आश्रम या गुफा में बैठकर ध्यान करने की जरूरत नहीं। किसी को भी घर छोड़कर मोक्ष के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं यहीं ग्रहस्थ में रहकर ही मोक्ष पाया जा सकता है। यहीं ओशो संन्यासियों के बीच रहकर नाच-कूदकर मोक्ष पाया जा सकता। लेकिन हमने देखा है कि ओशो संन्यासी वर्षों से नाचते-कूदते आएं हैं लेकिन हमें तो कोई मोक्ष प्राप्त व्यक्ति नजर नहीं आया।

#
इस नव-संन्यास में संन्यासी को कोई भगवा या गेरुए वस्त्र पहनने की जरूरत नहीं। माला और नियमों का पालन करने की जरूरत भी नहीं। पूजा-पाठ, ईश्वर-प्रार्थना आदि करने की जरूरत नहीं। यम, निमय का पालन करने की जरूरत भी नहीं। वे आचरण की शुद्धता पर भी बल नहीं देते हैं। ओशो ने हिन्दुओं के संन्यास को पाखंड बताया है। वे जोरबा-टू-बुद्ध जैसे संन्यास की बात करते हैं। 'जोरबा' का अर्थ होता है- एक भोग-विलास में पूरी तरह से डूबा हुआ व्यक्ति और 'बुद्धा' का अर्थ निर्वाण पाया हुआ। अब सोचीए क्या यह संभव है। इंद्रियों को भोग-विलास की आदत हो जाएगी तो वह कैसे मोक्ष की ओर मुड़ेगी? ऊपर हम कामी और शराबी का उदाहरण दे आए हैं।

#
दलितों के समर्थक और ब्राह्मण विरोधी ओशो:-
*ओशो पर आरोप है कि उन्होंने अपने तर्कों से हिन्दू धर्म का विरोध कर दलितों को भड़काने का कार्य भी खूब किया है। वे कहते हैं कि मोची समाज के लोग तो जन्मजात ही बौद्ध होते हैं, जबकि ओशो को मोची समाज के इतिहास के बारे में रत्तीभर भी जानकारी नहीं है कि वे मोची कैसे और कब बन गए। वे पहले से ही या प्राचीनकाल से ही मोची नहीं थे। जब चमड़े के चप्पल और जूते का अविष्कार हुआ तभी तो वे मोची बने होंगे? इसके पहले वे क्या थे इस पर कोई विचार नहीं करता है। मुगल और अंग्रेज काल का सही से जिसे इतिहास नहीं मालूम वह वर्तमान को देखकर ही अपने विचारगढ़ता है। 
 
ओशो कहते हैं कि ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों ने दलितों पर 10 हजार वर्षों तक अत्याचार किए है तो निश्चत ही उन्हें 10 हजार वर्षों तक तो आरक्षण मिलना ही चाहिए।.... यदि ओशो सच बोलते और वह धर्म की राजनीति नहीं करते तो निश्चित ही वह यह कहते हैं कि ब्राह्मण या मनुवाद जैसा कोई वाद नहीं होता है। प्राचीनकाल में ऐसे कई लोग राजा, पुरोहित या संन्यासी हुए हैं जिन्हें वर्तमान के युग में प्रचलित धारणा के अनुसार दलित समाज का माना जाएगा। ऐसे कई ऋषि कुमार, राजपुत्र थे जो कि दलित थे।
 
भारतीय राजनीति में सेक्युलरवादियों ने जिन दो शब्दों का सर्वाधिक उपयोग या दुरुपयोग किया वह है 'मनुवाद और ब्राह्मणवाद।' इन शब्दों के माध्यम से हिन्दुओं में विभाजन करके दलितों के वोट कबाड़े जा सकते हैं या उनका धर्मान्तरण किया जा सकता है। मनुवाद की आड़ में धर्म और राजनीति की रोटियां सेंकी जा सकती है।
 
अधिकांश लोगों में भ्रम है कि मनु कोई एक व्यक्ति था जो ब्राह्मण था। जबकि तथ्य यह है कि मनु एक राजा थे। इसके अलावा मनु एक नहीं अब तक 14 हो गए हैं। इनमें से भी स्वयंभुव मनु और वैवस्वत मनु की ही चर्चा अधिक होती है। इन दोनों में से स्वयंभुव मनु से ही मनु स्मृति को जोड़ा जाता है।
 
 
मनु के बारे में दूसरा भ्रम मनु संहिता को मनुवाद बना देना है। दरअसल यह मनुवाद शब्द पिछले 70 वर्षों में प्रचारित किया गया शब्द है। संहिता और वाद में बहुत अंतर होता है। संहिता का आधार आदर्श नियमों से होता है जबकि वाद दर्शनशास्त्र का विषय है। जैसे अणुवाद, सांख्यवाद, मार्क्सवाद, गांधीवाद आदि। उल्लेखनीय है कि यह दलित शब्द भी पिछले कुछ वर्षों में ही प्रचलित किया गया। इससे पहले हरिजन शब्द महात्मा गांधी ने प्रचलित किया था। इससे पहले शूद्र शब्द अंग्रेजों के काल में प्रचलित हुआ और इससे पहले क्षुद्र शब्द प्रचलन में था। ठीक इसी तरह मनुवाद और ब्राह्मणवाद भी वामपंथियों की देन है।
 
 
जिस तरह मनुवाद जैसा कोई वाद नहीं है उसी तरह ब्राह्मणवाद भी कोई वाद नहीं। लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि किसी नियम, कानून या परम्परा के तहत जब किसी व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म, कुल, रंग, नस्ल, परिवार, भाषा, प्रांत विशेष में जन्म के आधार पर ही किसी कार्य के लिए योग्य या अयोग्य मान लिया जाए तो वह ब्राह्मणवाद कहलाता है। जैसे पुजारी बनने के लिए ब्राह्मण कुल में पैदा होना। ब्राह्मणवाद के बारे में आम जनता की सोच यहीं तक सीमित है।
 
 
आजकल यही हो रहा है आरक्षण के नाम पर किसी जाति, धर्म, कुल, रंग, नस्ल, परिवार, भाषा, प्रांत विशेष में जन्म के आधार पर ही आरक्षण दिया जा रहा है। यही तो ब्राह्मणवाद का आधुनिक रूप है। इस तरह का प्रत्येक वाद ब्राह्मणवाद ही है। फिर चाहे वह नारीवाद हो, किसानवाद हो, अल्पसंख्यक वाद हो, वंशवाद हो; सभी के सभी ब्राह्मणवाद ही है क्योंकि इनका निर्धारण योग्यता से नहीं जन्म से होता है।

#
विवाह संस्था के विरोधी ओशो:-
*ओशो के कारण ही विश्वभर में 'लिव इन रिलेशनशिप' का प्रचलन शुरू हुआ। यह एक घातक प्रचलन है जिसके चलते समाज में बिखराव और अराजकता फैल रही है। ओशो कहते हैं कि परिवार की परंपरा को समाप्त कर कम्यून की अवधारणा को स्थापित करना चाहिए। ओशो की नजर में जब परिवार की जरूरत नहीं तो विवाह गौण हो जाता है।

 
ओशो कहते हैं कि एक-एक परिवार में कलह है। जिसको हम गृहस्‍थी कहते हैं, वह संघर्ष, कलह, द्वेष, ईर्ष्‍या और चौबीसों घंटे उपद्रव का अड्डा बनी हुई है। ओशो के अनुसार हमने सारे परिवार को विवाह के केंद्र पर खड़ा कर दिया है। ओशो चाहते हैं कि लोग बगैर विवाह करे अपनी मर्जी से, प्रेम से साथ-साथ भले ही रहे। विवाह की कोई जरूरत नहीं। विवाह होगा तो समाज होगा, समाज होगा तो देश होगा। देश होगा तो सभी तरह के उपद्रव भी होंगे। यह विवाह प्रथा खत्म होना चाहिए।

#
ईश्वर विरोधी या नास्तिक हैं ओशो:-
*ओशो कहते हैं कि ईश्‍वर है तो उसके साथ सभी तरह का पाखंड जुड़ा रहेगा- पाप-पुण्‍य, स्‍वर्ग-नरक, अवतारवाद, पैगम्बर, पूजा-पाठ, धर्मांतरण, धर्मग्रंथ, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि सभी तरह के पाखंड जुड़े रहेंगे। प्रॉफेट और धर्मग्रंथों के बगैर ईश्‍वर की कल्पना मुश्किल है। ओशो ने ईश्‍वरवादी विचारधाराओं का विरोध किया। ओशो की नजर में ईश्वर कोई बाह्य सत्य नहीं है।
 
*ओशो कहते हैं कि धर्म या विज्ञान के रेडीमेड सत्यों से काम नहीं चलेगा। मैं संशय (दुविधा) की बात नहीं कर रहा हूं। मैं संदेह की बात कर रहा हूं। संदेह करोगे तभी सत्य तक पहुंच सकते हो। श्रद्धा और विश्वास बांधते हैं, संदेह मुक्त करता है।...ओशो के विचारानुसार यह कहना की 'विश्वास पर ही दुनिया कायम है' एक गलत वाक्य हो सकता है।

#
धर्म विरोधी ओशो:-
ओशो कहते हैं कि 'सदियों से आदमी को विश्वास, सिद्धांत, मत बेचे गए हैं, जो कि एकदम मिथ्‍या हैं, झूठे हैं, जो केवल तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं, तुम्हारे आलस्य का प्रमाण हैं। तुम करना कुछ चाहते नहीं, और पहुंचना स्वर्ग चाहते हो।' 
 
परंतु कोई पंडित-पुरोहित या तथाकथित धर्म नहीं चाहते कि तुम स्वयं तक पहुंचो, क्योंकि जैसे ही तुम स्वयं की खोज पर निकलते हो, तुम सभी तथाकथित धर्मों- हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के बंधनों से बाहर आ जाते हो। उस सभी के बाहर आ जाते हो, जो मूढ़तापूर्ण और निरर्थक हैं, क्योंकि तुमने स्वयं का सत्य पा लिया होता है।
 
धर्म तुम्हें भयभीत कर विश्‍वास करना सिखाता है ताकि तुम उनके ग्रंथों पर सवाल खड़े न करो। प्रॉफेटों पर सवाल खड़े न करो। सदियों से धर्मों ने यही किया है। दुनिया में अब धर्मों की जरूरत नहीं। धर्म का कोई भविष्‍य नहीं। मनुष्य ने अपनी पहचान को धर्म की पहचान से व्यक्त कर रखा है। कोई हिन्दू है, कोई मुसलमान, कोई सिख तो कोई ईसाई। धर्म के नाम पर आपसी भेदभाव ही बढ़े हैं। नतीजा यह है कि आज धर्म पहले है मनुष्य और उसकी मनुष्यता बाद में। ओशो कहते हैं, आनंद मनुष्य का स्वभाव है और आनंद की कोई जाति नहीं, उसका कोई धर्म नहीं।

#
दरिद्रता के विरोधी ओशो:-
*ओशो कहते हैं कि दरिद्र को 'नारायण' कहने से ही इस देश में दरिद्रता फैल गई है। यदि आप दरिद्रता और गरीबी को सम्मान देंगे तो आप कभी भी उससे मुक्त नहीं हो सकते। मेरा संन्यासी ऐसा होना चाहिए कि वह पहले धन पर ध्यान दे फिर ध्यान की चिंता करे। ओशो कभी गरीबों और गरीबी का पक्ष नहीं लेते थे।...भले ही लोग सड़क पर भूख से मर जाए? क्या गरीबों के प्रति हमें संवेदनशीन नहीं रहना चाहिए? क्या हमें भूखे को रोटी नहीं खिलानी चाहिए। यदि कोई गरीब है तो यह संपूर्ण समाज और इस देश की व्यवस्था का दोष है न की धर्म का। धर्म को ऐसे लोगों को शरण देने की बात करता है।
 
 
ओशो पर आरोप हैं कि वे सिर्फ अमीरों के गुरु हैं। उन्होंने पूंजीवाद को बढ़ावा दिया। उनके पास लगभग 100 रॉल्स रॉयस कारें थीं। वे कभी गरीबों और गरीबी का पक्ष नहीं लेते थे। ओशो कहते हैं कि दुखवादी नहीं, सुखवादी बनो। सुखी रहने के सूत्र ढूंढो तो समृद्धि स्वत: ही आने लगेगी।

#
समाजवाद के विरोधी ओशो:-
ओशो कहते हैं कि किसी गांव में दस हजार गरीब हो और दो आदमी उनमें से मेहनत करके अमीर हो जाएं तो बाकी नौ हजार नौ सौ निन्यानवे लोग कहेंगे कि इन दो आदमियों ने अमीर होकर हमको गरीब कर दिया। और कोई यह नहीं पूछता कि जब ये दो आदमी अमीर नहीं थे तब तुम अमीर थे? तुम्हारे पास कोई संपत्ति थी, जो इन्होंने चूस ली। नहीं तो शोषण का मतलब क्या होता है? अगर हमारे पास था ही नहीं तो शोषण कैसे हो सकता है? शोषण उसका हो सकता है जिसके पास हो। अमीर के न होने पर हिन्दुस्तान में गरीब नहीं था? हां, गरीबी का पता नहीं चलता था। क्योंकि पता चलने के लिए कुछ लोगों का अमीर हो जाना आवश्यक है। तब गरीबी का बोध होना शुरू होता है। बड़े आश्चर्य की बात है, जो लोग मेहनत करें, बुद्धि लगाएं, श्रम करें और अगर थोड़ी-बहुत संपत्ति इकट्ठा कर लें तो ऐसा लगता है कि इन लोगों ने बड़ा अन्याय किया होगा।
 
 
पूंजीवाद शोषण की व्यवस्था नहीं है। पूंजीवाद एक व्यवस्था है श्रम को पूंजी में कन्वर्ट करने की। श्रम को पूंजी में रूपांतरित करने की व्यवस्था है। लेकिन जब आपका श्रम रूपांतरित होता है, जब आपको या मुझे दो रुपए मेरे श्रम के मिल जाते हैं तो मैं देखता हूं जिसने मुझे दो रुपए दिए उसके पास कार भी है, बंगला भी खड़ा होता जाता है। स्वभावत: तब मुझे खयाल आता है कि मेरा कुछ शोषण हो रहा है। और मेरे पास कुछ भी नहीं था उसका शोषण हुआ।


#
ओशो ने महात्मा गांधी का पुरजोर विरोध किया:- 
ओशो ने अपने अधिकतर प्रवचनों में गांधीजी की विचारधारा का विरोध किया है। उनका मानना था कि यह विचारधारा मनुष्य को पीछे ले जाने वाली विचारधारा है। यह आत्मघाती विचारधारा है। ओशो कहते हैं, 'गांधी गीता को माता कहते हैं, लेकिन गीता को आत्मसात नहीं कर सके, क्योंकि गांधी की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को कहां रखेगी?...तो गांधी उपाय खोजते हैं, वे कहते हैं कि यह जो युद्ध है, यह सिर्फ रूपक है, यह कभी हुआ नहीं।'
 
 
कृष्ण की बात गांधी की पकड़ में कैसे आ सकती है? क्योंकि कृष्ण उसे समझाते हैं कि तू लड़। और लड़ने के लिए जो-जो तर्क देते हैं, वह ऐसा अनूठा है, जो कि इसके पहले कभी भी नहीं दिया गया था। परम अहिंसक ही दे सकता है, उस तर्क को। ओशो कहते हैं, मेरी दृष्टि में कृष्ण अहिंसक हैं और गांधी हिंसक। दो तरह के लोग होते हैं, एक वे जो दूसरों के साथ हिंसा करें और दूसरे वे जो खुद के साथ हिंसा करें। गांधी दूसरी किस्म के व्यक्ति थे।

 
ओशो की एक किताब है : 'अस्वीकृति में उठा हाथ'। यह किताब पूर्णत: गांधी पर केंद्रित है। ओशो कहते हैं कि महात्मा गांधी सोचते थे कि यदि चरखे के बाद मनुष्य और उसकी बुद्धि द्वारा विकसित सारे विज्ञान और टेक्नोलॉजी को समुद्र में डुबो दिया जाए, तब सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। और मजेदार बात इस देश ने उनका विश्वास कर लिया! और न केवल इस देश ने बल्कि दुनिया में लाखों लोगों ने उनका विश्वास कर लिया कि चरखा सारी समस्याओं का समाधान कर देगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नोबेल पुरस्कारों की दुनिया भी मर्दों की है