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कौन उतारेगा कोरिया के जिन्न को बोतल में?

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शरद सिंगी

विश्व एक बार पुन: एक ऐसी शैतानी शक्ति के सामने बेबस नजर आ रहा है, जो परमाणु युद्ध के लिए बेकरार है। बात हम यहां कर रहे हैं उत्तरी कोरिया की जिसे किसी भी चेतावनी, धमकी या प्रतिबंध की परवाह नहीं है। वह निरंतर अपने आयुधों को प्रयोगों से परिष्कृत कर रहा है और दुनिया की ताकतों को ठेंगा बताते हुए अपनी मिसाइलों को मनचाही दिशा में उड़ा देता है। 
 
अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान का कट्टर दुश्मन उत्तरी कोरिया, चीन द्वारा पोषित एक जिन्न है, जो आकृति में कम होकर भी आकार में अविराम बढ़ता ही जा रहा है। मुश्किल से ढाई करोड़ की आबादी और लगभग गुजरात के बराबर क्षेत्रफल वाला यह पिद्दी देश अमेरिका पर खुलेआम परमाणु बम गिराने की धमकी देता है। अभी तक विश्व जो उसकी धमकियों को गीदड़भभकी से अधिक नहीं मानता था उसके अब पसीने छूटने लगे हैं। 
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मजे की बात यह है कि उत्तरी कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन अपने बयानों से लगातार अमेरिका को धमका रहा है और बड़ी दक्षता से बहस करने वाले राष्ट्रपति ट्रंप उसके जाल में उलझकर उसके बयानों पर अनर्गल प्रतिक्रिया दे रहे हैं। अभी तो किम का मकसद राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मुखाग्र उलझना है जिसमे वह सफल होता दिखाई दे रहा है। 
 
ट्रंप की धमकाने वाली प्रतिक्रियाओं से किम के मंसूबों को और हवा मिलती है। ट्रंप ने कुछ दिन पहले कहा था कि यदि उत्तरी कोरिया कोई गुस्ताखी करेगा तो उसे अमेरिका का भीषण प्रकोप भुगतना होगा और वह ऐसी आग उगलेगा जिसको कभी दुनिया ने देखा नहीं होगा। जवाब में उत्तरी कोरिया ने प्रशांत महासागर में अमेरिका के गुवाम द्वीप पर 4 मिसाइलें दागने की घोषणा कर दी। गुआम प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की सैन्य छावनी है, जहां हजारों अमेरिकी सैनिकों और उनके परिवारों के घर है। 
 
आर्थिक रूप से कंगाल होते हुए भी उत्तरी कोरिया की सेना में 10 लाख से अधिक पैदल सैनिक, 1 लाख से अधिक वायुसैनिक और 60 हजार नौसैनिक हैं। हजारों में टैंक और कई बमवर्षक हैं और इस गैरजिम्मेदार शक्ति के साथ कोई खेल खतरे से खाली नहीं है।
 
जैसा कि हम जानते हैं कि प्रतिष्ठित व्यक्ति बेइज्जती से डरता है और मुफलिस को डर नहीं लगता। यहां भी यही हो रहा हो। अमेरिका या विश्व की अन्य शक्तियां उसे घेरकर नेस्तनाबूत तो कर सकती हैं किंतु बाद में जब देश लावारिस हो जाता है, वह भी ऐसा देश जिसकी सत्ता में दूसरी पंक्ति में कोई नेता नहीं है तो विश्व के लिए वह एक घोर संकट खड़ा कर देता है। 
 
अफगानिस्तान, इराक, लीबिया आदि उसके उदाहरण हैं। ये देश अन्य देशों पर आर्थिक बोझ तो बनते ही बनते हैं किंतु उस देश के भीतर अराजकता और आतंक को नियंत्रित करना चुनौती बन जाता है इसलिए कोई भी देश कितना भी गरीब या कमजोर क्यों न हो, अब कोई भी महाशक्ति इतनी जल्दी नेतृत्व को हटाने में भागीदार नहीं बनना चाहती। और यहां तो सिरफिरा सिरमौर है, जो यदि अपनी जान पर आई तो धमाके करने से नहीं डरेगा। ऐसे में पड़ोसी देशों में जान-माल की बड़ी हानि कर सकता है। 
 
पूर्व राष्ट्रपति ओबामा पर आरोप है कि उन्होंने समय रहते इस समस्या को नष्ट नहीं किया और अब इसने विकराल रूप ले लिया है। इस समस्या का हल आसान नहीं है किंतु इसका हल भी शीघ्र निकलना चाहिए अन्यथा विश्व के ऊपर संकट के बादल घने होते जाएंगे। 
 
समस्या की जड़ में उत्तरी कोरिया के साथ चीन भी है जिसका अनुग्रह और अनुमोदन दोनों उत्तरी कोरिया को प्राप्त है इसलिए वह अमेरिका सहित अन्य देशों को दांत दिखा रहा है। जिस दिन चीन उसके सर से अपना हाथ उठा लेगा उस दिन अपने आप उत्तरी कोरिया अपनी औकात में चला जाएगा। भारत ने तो चीन के सामने अपना साहस दिखाया है अब जरूरत है अन्य देशों को भी चीन का सामना करने की। 
 
चीन तब तक ही उत्तरी कोरिया का इस्तेमाल करेगा, जब तक कि वह उसकी कूटनीतिक रणनीति में लाभ दे रहा है। जिस दिन उसे हानि दिखाई देगी वह उत्तरी कोरिया को दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर करेगा। इसलिए जरूरी है कि उत्तरी कोरिया की अपेक्षा चीन पर प्रतिबंध लगाए जाएं। ऐसा करते ही तुरंत चीन अपना रुख बदलेगा और जिन्न बोतल में पुन: बंद होगा। 

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