- डॉ. राम श्रीवास्तव
इटली की राजधानी रोम में इन दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में 5 से 7 फरवरी, 2018 तक एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। विषय है- 'मजहब की आड़ में हो रहे महिलाओं के खतनीकरण को कैसे रोका जाए'। 6 फरवरी को हर साल संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर पूरी दुनिया में INTERNATIONAL DAY OF ZERO TOLERANCE FOR FGM (Female Genital Mutilation) मनाया जाता है। 2015 में यूएनओ ने अपना लक्ष्य निर्धारित किया है कि 2030 तक पूरी दुनिया से महिलाओं के 'खतनीकरण' को पूरी तरह समाप्त कर देंगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार, 20 करोड़ नन्ही सी मुस्लिम संप्रदाय की रोती-बिलखती कन्याओं की योनि के ऊपरी भाग भग-शिश्न (Clitoris) को बिना सुन्न करे, साधारण ब्लेड से काटकर अलग कर दिया जाता है।
पाकिस्तान सहित कुछ मुस्लिम देशों में मासिक धर्म शुरू होने के पहले ही बालिकाओं के गुप्तांग में टांके लगाकर सिल दिया जाता है, जिससे कि उन लड़कियों के निकाह के पूर्व उनके होने वाले 'खसम' इस बात की पुष्टि कर सकें कि उनकी बीबीजान का कौमार्य सुरक्षित है और उन्होंने निकाह के पूर्व किसी के साथ संभोग तो नहीं किया है।
फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन यानी महिला खतनीकरण की प्रथा चोरी-छुपे भारत में भी बड़े पैमाने पर हो रही है। मारिया ताहिर नामक एक्टिविस्ट के नेतृत्व में, जिनका 7 साल की उम्र में खतना कर दिया गया था, अब एक स्वयंसेवी संस्था ने बीड़ा उठाया है और पुरजोर आवाज उठाई जा रही है कि महिलाओं पर हो रहे इस क्रूर अत्याचार को कानून बनाकर तत्काल बंद किया जाए।
अमेरिका, यूरोप सहित दुनिया के सभी देशों में इस नृशंस कृत्य पर कानूनी बंदिश लगा दी गई है, पर पाकिस्तान सहित लगभग 27 देशों में इसे इस्लाम का जामा पहनाकर खुले तौर पर औरतों का जबरदस्ती खतना कर दिया जाता है। पाकिस्तान के देहाती कबीलों में 6-7 साल की लड़की की योनि को टांकों से बंद करना आम रिवाज है। बिना सुन्न किए योनि को सिलने से कितनी भीषण अमानवीय पीड़ा उन लड़कियों को होती है, उनकी चीखें, तड़पन इन धर्म के अंधे मौलवियों के राक्षसी रूप को बताती हैं।
पाकिस्तान में ऐसा होता है, समझ में आता है, क्योंकि वहां पर तो आदमी की खोल में राक्षसी प्रवृत्ति के दानव रहते हैं, पर भारत में हमें क्या हो गया है? आजादी के 70 साल बाद भी कन्याओं के 'खतना' करने के अमानवीय कर्म को हम कानूनी तौर पर क्यों नहीं रोक रहे हैं? शायद हमारे कानून बनाने वाले सभी नेता चाहे किसी भी दल के हों, इस मसले के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें अपने वोट बैंक के खतरे में पड़ने का डर है।