Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

तेल के भावों के उतार-चढ़ाव का अंतरराष्ट्रीय गणित

हमें फॉलो करें तेल के भावों के उतार-चढ़ाव का अंतरराष्ट्रीय गणित
webdunia

शरद सिंगी

, सोमवार, 24 सितम्बर 2018 (17:18 IST)
कच्चे तेल का भाव इस समय भारत ही नहीं, अपितु उन सभी देशों के लिए एक चुनौती बन चुका है, जो आयातित कच्चे तेल पर निर्भर हैं। भारत जितने तेल का उपभोग करता है उसका मात्र 20 प्रतिशत ही अपनी धरती से उलीच पाता है। 80 प्रतिशत तेल उसे बाहर से खरीदना पड़ता है। अमेरिका और चीन के बाद भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
 
 
वैसे तो उपभोग की सारी वस्तुएं अर्थशास्त्र के मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर चलती हैं अर्थात यदि मांग अधिक और उत्पादन कम हो तो वस्तु के दाम बढ़ेंगे और यदि उत्पादन मांग से अधिक है तो भाव गिरेंगे। किंतु तेल के संदर्भ में ये सीधा-सरल सिद्धांत काम नहीं करता। तेल, अंतरराष्ट्रीय सट्टेबाजों की प्रिय वस्तु है और बड़े देशों के लिए यह एक कूटनीतिक हथियार भी। मांग और आपूर्ति का सिद्धांत समझने के लिए तो सीधा-सादा है इसलिए इस आलेख में इसकी चर्चा न करते हुए हम दूसरे दो कारकों की चर्चा करेंगे।
 
एक होता है वायदा बाजार, जहां एक देश की सरकार अथवा कोई कंपनी तेल उत्पादक देश की किसी कंपनी अथवा सरकार से लंबे समय तक के लिए तेल की आपूर्ति के लिए किसी निश्चित दर पर अनुबंध करती है, जो दोनों के लिए एक बाध्यकारी समझौता होता है। यह अनुबंध पूर्व निर्धारित कीमत पर बैरल द्वारा तेल खरीदने का अधिकार देता है। इस वायदा अनुबंध के तहत खरीददार और विक्रेता दोनों निर्दिष्ट तारीख पर लेन-देन करने के लिए बाध्य होते हैं। इस समझौते से क्रेता और विक्रेता दोनों को अपने खर्च की योजना बनाने में आसानी होती है।
 
उदाहरण के लिए एयरलाइंस चलाने वाली कंपनियां ऐसे अनुबंध करती हैं। किंतु इस वायदा बाजार का अधिक लाभ सटोरिए लेते हैं। विश्व में हो रहे इन अनुबंधों पर सटोरियों की नजरें रहती हैं और फिर ये आने वाले महीनों के लिए उपलब्ध तेल और मांग की गणना कर लेते हैं। तेल की उपलब्धता के अनुसार ये सटोरिये तेल के भावों में वायदे के माध्यम से कृत्रिम उछाल या गिराव लाकर भावों का अपने हक में प्रबंधन करते हैं।
 
सट्टेबाज वह व्यक्ति होता है, जो सिर्फ कीमत की दिशा का अनुमान लगाता है किंतु वास्तव में उत्पाद खरीदने का उसका कोई इरादा नहीं होता है। इस सट्टे में निवेश करने वाले भी दुनिया के धनाढ्य व्यापारी होते हैं, जो तेजी-मंदी करके स्वयं तो पैसा बनाते हैं किंतु गरीब और विकासशील देशों को चूना लगाकर। इनकी तेजी की धारणा से भावों में बढ़त और मंदी की धारणा से भावों में गिरावट आती है। इस तरह हमने देखा कि तेल की कीमतों को मांग और आपूर्ति के बजाय वास्तव में सट्टेबाज अधिक प्रभावित करते हैं।
 
शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज (सीएमई) के अनुसार अधिकांश वायदा कारोबार सट्टेबाजों द्वारा नियंत्रित किया जाता है और इस कारोबार में वास्तविक लेन-देन 3 प्रतिशत से भी कम होता है। तेल के भावों में उतार-चढ़ाव का दूसरा कारक है वैश्विक कूटनीति। कभी रूस तो कभी ईरान को दबाने के लिए अमेरिका आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा करता रहा है। नवंबर में ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों की दूसरी किस्त लागू हो जाएगी इसलिए कई देश अब ईरान के साथ नए अनुबंध नहीं कर रहे हैं। जाहिर है तेल का एक बड़ा स्रोत बाजार से निकल जाने पर तेल की कीमतों में उछाल आएगा ही और इसमें तड़का लगा रहे हैं सटोरिये।
 
किसी तेल उत्पादक देश के ऊपर यदि तेल बेचने पर प्रतिबंध लग जाए तो आर्थिक रूप से उसकी कमर टूटनी निश्चित है। यहां तेल एक कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होता है। ईरान ने अभी तक अपनी तरफ से अमेरिकी मांगों को मानने की कोई पेशकश नहीं की है अत: फिलहाल तो तेल के भावों का ऊपर जाने से रुकना मुश्किल है। तेल उत्पादक देशों का समूह यदि ये निर्णय न ले ले कि वह समूह उत्पादन बढ़ाकर ईरान के तेल से उपजी किल्लत को कम करेगा।
 
उक्त चर्चा के परिप्रेक्ष्य में अब हम भारत के तेल संबंधी हितों की चर्चा करें। आदर्श स्थिति तो यह है कि भारत को शीघ्र ही अपनी ऊर्जा की जरूरतों पर आत्मनिर्भर होना पड़ेगा। जितनी जल्दी पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहन बैटरीचालित हों, अच्छा होगा। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली सक्षम और सुविधापूर्ण होनी चाहिए ताकि निजी वाहनों की संख्या में कमी हो।
 
परमाणु ऊर्जा तथा अन्य विकल्पों से बिजली पैदा करने को प्राथमिकता देनी होगी। रेलों का शीघ्र विद्युतीकरण करना होगा इत्यादि। अन्यथा भारत जैसे विकासशील देशों को कभी सटोरियों के हाथों तो कभी कूटनीतिक कारणों से अपनी अर्थव्यवस्था को निरंतर दबाव में आते देखना पड़ेगा। 
 
इस आलेख का मंतव्य पाठकों को तेल संबंधी अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से अवगत कराना तो है ही, साथ ही तेल के भावों में निरंतर होते चढ़ाव के पीछे के कारकों और देश की मजबूरियों से भी पाठकों को अवगत कराना है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हैदराबाद को भारत में मिलाने के लिए कितना ख़ून बहा?