एक प्रसिद्ध कहावत है 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता'। यानी अकेला व्यक्ति दुनिया नहीं बदल सकता। किन्तु यदि हम पिछली कुछ सदियों के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि हकीकत इस कहावत के कुछ विपरीत ही है। दुनिया में ऐसे अनेक लोगों के उदाहरण हैं जिन्होंने अकेले अपने ही दम पर सदा सदा के लिए दुनिया को बदल दिया। ये लोग कभी सामाजिक परपम्पराओं को धराशायी कर सामाजिक क्रांति के जनक बने तो कभी प्रचलित राजनैतिक मान्यताओं को ध्वस्त कर राजनीति के शिखर पर पहुंच गए। विज्ञान के मान्य सिद्धांतों को चुनौती देकर मानवता के विकास के नायक बन गए।
वैसे तो इनकी संख्या सैकड़ों में हैं किन्तु यहाँ इनमे से कुछ लोगों के उल्लेख भर से ही शायद आप मेरे इस कथन से सहमत नज़र आएंगे। भारत के गांधीजी, अफ्रीका के नेल्सन मंडेला और अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग जैसे नेताओं ने अकेले ही सामजिक चेतना को जगाया और राष्ट्र की विचारधारा को परिवर्तित कर दिया। चीन के माओ, रूस के लेनिन, क्यूबा के फिदेल कास्त्रो, म्यांमार की सू ची, सिंगापूर के ली कुआन आदि ऐसे महान नेता थे जिन्होंने अपने ही दम पर देश की राजनैतिक व्यवस्था को रूपतान्तरित कर दिया।
विज्ञान के क्षेत्र में देखें तो बिजली का बल्ब बनाने वाले थॉमस एडिसन जिनके नाम पर एक हज़ार से अधिक आविष्कार है , भाप का इंजन बनाने वाले जेम्स वाट, टेलीफ़ोन वाले ग्राहम बेल आदि ऐसे महामानव हैं जिन्होंने अपने नन्हें आविष्कारों से दुनिया को बदल दिया। एक अकेला आइंस्टीन ही चाहिए दुनिया के वैज्ञानिक सिद्धांतों को तहस नहस करने के लिए और उन्हें नई दिशा देने के लिए।
वर्तमान में देखना है तो बिल गेट्स को देखिये जिसने कंप्यूटर को घर-घर का खिलौना बना दिया और विश्व के आधुनिक स्वरूप को ही बदल दिया। एप्पल के स्टीव जॉब्स भी इसी श्रेणी में आते हैं। टिम बर्नर्स को कैसे भूल सकते हैं, जिन्होंने इंटरनेट का प्रोटोकॉल देकर पूरी दुनिया को एक छोटे से कंप्यूटर के अंदर सहेज दिया।
हमारा स्वतंत्रता दिवस, जश्न के साथ हमें कुछ ऐसे लोगों को भी याद करने का अवसर देता है जिन्होंने अपने अकेले के दम पर ही भारत की तस्वीर बदल दी। गांधीजी को तो विश्वस्तर पर मान्यता मिली। किन्तु यदि हम भारत के अन्य नेताओं की बात करें तो तिलक ने राष्ट्रवाद का अलख जगाया। जवाहरलाल ने औद्योगिक क्रांति और लाल बहादुर ने हरित क्रांति को सार्थक किया। भारत के वर्तमान स्वरूप का श्रेय इन महापुरुषों को है।
हाल ही की बात करें तो अमूल के संस्थापक कुरियन वर्गिस श्वेत क्रांति (दूध) के लिए मशहूर हुए। अकेले टी एन शेषन ने भारतीय चुनाव आयोग का चेहरा बदल दिया। धीरूभाई अम्बानी जैसे उद्योगपति जमीन से उठकर, कड़े अवरोधों को पार करते हुए, तात्कालिक स्थापित व्यावसायिक घरानों को पीछे छोड़ते हुए शिखर पर पहुँच गए और नए व्यवसायियों के लिए उदाहरण बन गए।
इस तरह हम देखेंगे कि हमारे आस पास ही ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं जो निकले तो अकेले थे किन्तु देश की आत्मा और कारवां इनके साथ जुड़ता चला गया। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो क्या हमें अपने वर्तमान प्रधानमंत्री इस राह का नेतृत्व करते हुए नहीं दिखते?
मोदीजी से पहले भी लाल किले की प्राचीर से हमने अनेक सम्बोधन सुने हैं। कुछ नीरस थे, कुछ औपचारिक और कुछ ओजस्वी। किन्तु कौनसा ऐसा सम्बोधन था जो राष्ट्र की ऊर्जा को आव्हान करता हो ? कौनसा ऐसा भाषण था जो राष्ट्र की आत्मा और उसकी चेतना को आंदोलित करता हो?
पन्द्रह अगस्त का सम्बोधन मात्र वार्षिकनामा नहीं है। औपचारिकता भी नहीं है। यह राष्ट्र को सम्बोधन नहीं राष्ट्र को उद्बोधन है जो आगामी वर्षों के लिए राष्ट्र की दिशा को आलोकित करता है। राष्ट्र की अन्तर्निहित समवेत ऊर्जा का पथ प्रदर्शन करता है ताकि पूरा राष्ट्र एक ही दिशा में अपनी ऊर्जा को व्यय कर सके। 26 जनवरी को हम अपनी शक्ति और सम्प्रभुता का प्रदर्शन करते हैं तो 15 अगस्त को हम राष्ट्र की चेतना को प्रकाशित करते हैं।
मोदीजी यदि अपने साथ कारवाँ जोड़ने में सफल रहे हैं तो निश्चित ही उनमे कुछ ऐसे गुण तो हैं जो उन्हें आम नेताओं से उन्हें पृथक करते हैं। ऊपर वर्णित उदाहरणों में हमने देखा कि भाड़ फोड़ने के लिए तो एक चना ही पर्याप्त है। देखना अब हमें यह है कि क्या हम एक नए इतिहास के साक्षी बनने जा रहे हैं?
लाल किले से होने वाले इस वर्ष के उद्बोधन पर पुनः इस देश की आत्मा, आँख और कान गड़े रहेंगे कि देश का नेता अब राष्ट्र को किस दिशा में चलने का आव्हान करता है? आज तो राष्ट्र और सच पूछिए तो हम सब भी उसी दिशा में चलने को आतुर बैठे हैं। आइये हम सब अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा और शक्ति से उस धारा में सम्मिलित हो जाएँ। यही इस लेख के सन्देश की और स्वतंत्रता दिवस की सार्थकता है।