Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

इंग्लैंड के नए प्रधानमंत्री के समक्ष भीषण चुनौतियां

हमें फॉलो करें इंग्लैंड के नए प्रधानमंत्री के समक्ष भीषण चुनौतियां
webdunia

शरद सिंगी

ब्रिटेन इस समय कठिन दौर से गुज़र रहा है। यह देश दशकों पूर्व यूरोपीय संघ का सदस्य बना था। किसी भी संगठन का सदस्य बनना यानी जवाबदेही के साथ वित्त व्यवस्था में भी भागीदारी। कुछ वर्षों से इंग्लैंड की जनता को लगने लगा कि इस संगठन के सदस्य बने रहने से लाभ कम नुकसान अधिक हैं, तो राष्ट्रव्यापी मतदान के बाद निश्चित हुआ कि यूरोपीय संगठन से इंग्लैंड को बाहर हो जाना चाहिए। संगठन से बाहर निकलने की प्रक्रिया को मीडिया ने ब्रेक्सिट नाम दे रखा है।

यह प्रक्रिया दशकों से उलझी हुई गुत्थी को सुलझाने की प्रक्रिया है। निश्चित ही जटिल तो है ही किन्तु इस संगठन से बाहर आने की शर्तें भी ब्रिटेन के हित में नहीं है और कीमत भी बड़ी चुकानी पड़ेगी। मोल-तोल हो रहा है। चूंकि पूर्व प्रधानमंत्री थेरेसा मे यूरोपीय संघ से कोई संतोषजनक सौदा कर नहीं पाईं इसलिए उनको अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। जितने बड़े बोल बोलकर वे सत्ता में आई थीं, उतनी ही बेरुखी से उन्हें चुपचाप बाहर खिसकना पड़ा।

इंग्लैंड दूसरी तरफ धंसा हुआ है अमेरिका के साथ। राष्ट्रपति ओबामा और उनसे पहले तक अमेरिका और ब्रिटेन दोनों एक ही थाली में खाना खाते थे और एक के निर्णय को दूसरे का पूरा समर्थन प्राप्त होता था। ट्रंप के आने के बाद स्थितयां बदल चुकी हैं। ट्रंप को किसी का लिहाज़ नहीं है इसलिए उनके साथ दोस्ती तो किसी की हो नहीं सकती, ऊपर से इंग्लैंड के अमेरिकी राजदूत की ट्रंप के ऊपर की गई अभद्र टिप्पणियां, सरकारी स्रोतों से लीक हो गई। इंग्लैंड सरकार को शर्मिंदगी उठाना पड़ी और बात को किसी तरह दबाया, किंतु ट्रंप उनके विरुद्ध की गई कोई टिप्पणी सुनकर चुप रहने वालों में नहीं है। उन्होंने भी दो-चार बातें पूर्व प्रधानमंत्री थेरेसा मे को सुना दी।

तीसरी तरफ से इंग्लैंड फंसा है ईरान के साथ। इस वर्ष 4 जुलाई को ब्रिटेन की रॉयल नौसेना ने जिब्राल्टर के तट से ईरानी कच्चे तेल से लदे एक सुपर टेंकर जहाज को जब्त कर लिया था इस आरोप में कि ईरान, सीरिया में तेल भेजकर यूरोपीय संघ द्वारा लगाए प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहा है। ईरान ने बदले की कार्यवाही करने की धमकी दी और 10 जुलाई को ब्रिटेन के एक जहाज को अगवा करने की कोशिश भी की, किन्तु विफल रहा।

जहाज पीछे मुड़कर पुनः सऊदी अरब के पोर्ट पर चला गया, परन्तु 19 जुलाई को 'स्टेना इम्पेरो' नामके इंग्लैंड के एक टैंकर जहाज को ईरानी सेना (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड) ने जब्त कर लिया, इस आरोप के साथ कि यह जहाज तेल की तस्करी कर रहा था। इस जहाज पर भारतीय नाविक भी थे, जिनको भारत सरकार ने छुड़वा लिया, किन्तु जहाज अभी भी ईरान के कब्जे में है।

इंग्लैंड द्वारा यूरोपीय संगठन से बाहर आने की मंशा दिखाने के पश्चात् उसे यूरोप का उतना साथ मिल नहीं रहा जैसे कुछ वर्षों पूर्व मिलता था। अमेरिका की दोस्ती में भी अब पुरानी बात नहीं रही। इंग्लैंड को अपने जहाज को छुड़ाना मुश्किल हो रहा है। उसने अपने दो युद्धपोत होर्मुज की खाड़ी में भेज दिए हैं। विवाद की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो दिन पहले तक इंग्लैंड की नौसेना के सामने ईरान की नौसेना कोई 85 बार चेतावनी के दायरे में आ चुकी है।

इन सब गुत्थियों और समस्याओं के बीच इंग्लैंड के नए प्रधानमंत्री के रूप में बोरिस जॉनसन ने शपथ ले ली है। इन्हें जूनियर ट्रंप माना जा रहा है, जिसकी चर्चा हम अगले अंक में करेंगे। राजनीतिक माहौल अस्थिर होने से इंग्लैंड की मुद्रा पौंड चारों खाने चित हो चुकी है। ब्रेक्सिट के पहले डेढ़ डॉलर में मिलने वाला पौंड अब सवा डॉलर में बिक रहा है।

ब्रेक्सिट, ईरान, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच पिसते हुए इंग्लैंड को ऐसे नए प्रधानमंत्री बोरिस मिले हैं, जिनकी छवि विवादास्पद रही है। यदि बोरिस कोई रास्ता निकालने में सफल रहे तो अमर हो जाएंगे अथवा थेरेसा मे की तरह बाहर जाने में देर भी नहीं लगेगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बाबरी मस्जिद विवाद में अब आगे क्या होगा?